यशवंत :
मौत किसको कहते हैं?
जोतीराव :
सभी जीव प्राणियों की काया में विद्यमान प्राण का जोगमन है, वही मौत है।
यशवंत :
कई मानव नारी-पुरुषों के नन्हे बच्चे-बच्चियों की मौत होने से पहले पीड़ा होती है, इसकी क्या वजह है? इसके बारे में कृपया संक्षिप्त में बताएँगे तो बहुत ही
अच्छा होगा।
जोतीराव :
कई नन्हे बच्चे-बच्चियों को मौत आने से पहले उनको पीड़ा होती है, इसकी वजह यह है कि उनके माता-पिता ने बच्चे पैदा होने के पहले कुछ असाधारण गलतियाँ, गलत
आचरण किया होता है, इसलिए उन दोनों के शरीर में कुछ विशेष प्रकार के रोग स्थाई रूप से अपनी जड़ मजबूत बना लेते हैं। इसलिए उनके नन्हे बच्चे मरने से पहले
पीड़ा से तड़फड़ाते हैं और मर जाते हैं।
यशवंत :
नन्हे बच्चों के बारे में इतना काफी है। लेकिन कई मानव युवा या बूढ़े नारी-पुरुषों को भी मरने से पहले पीड़ा होती है, इसकी वजह क्या है?
जोतीराव :
इसके भी कारण बता रहा हूँ, सुनिए। एक मानव नारी मानव पंचों के सामने किसी मानव पुरुष को अपना शौहर स्वीकार कर लेती है और वह जब उस पुरुष के साथ सभी कामों में
हर समय नफरत करती है, तब उसको मरने के पहले अफसोस होने से पीड़ा होती है। उसी तरह किसी मनुष्य ने मानव पंचों के सामने किसी नारी को अपनी बीवी स्वीकार कर लिया
और जब उसके साथ हर समय हर काम में दगाबाजी करता है, तब उसको मरने के पहले अफसोस होने से पीड़ा होती है। इतना ही नहीं, कई मानव पुरुष अपने स्वार्थ के लिए अपने
पड़ौसियों के साथ कई तरह की धोखेबाजी करते हैं, और कई ज्युलियस सीजर की तरह अपने को राज मिलना चाहिए इसलिए अपने अधीन जवाँमर्द फौजियों के द्वारा अपनी लाखों
प्रजा की हत्या करवा देते हैं, ऐसी हत्याएँ करनेवाले को मौत आने से पहले पछतावा होने की वजह से बहुत भारी पीड़ा होती है। अरे, किसी आदमी ने किसी मामूली आदमी
की बेवजह यदि हत्या कर दी तो हमको कितनी पीड़ा होती है! उसी तरह ज्युलियस सीजर ने लाखों लोगों की यदि हत्या की तो उसको मरने से पहले पछतावा हुआ होगा और पीड़ा
हुई होगी, यह सिद्ध कर दिखाने की यहाँ कोई आवश्यकता नहीं है।
यशवंत :
क्या ज्यूलियस सीजर को स्वाभाविक मौत आई थी?
जोतीराव :
ज्यूजियस सीजर को स्वाभाविक मौत नहीं आई थी। सबसे पहली बात यह है कि वह जनतंत्रात्मक राज्य का पूरा हिमायती था और उस काम में उसको कुछ शक्ति प्राप्त होते
ही उसने अपने रोम के जनतंत्रात्मक राज्य के सभी लोगों को गुलाम बनाकर उनका खुद राजा बन जाने का प्रयास किया। लेकिन यह बात ईश्वर को मंजूर नहीं थी। निष्पक्ष
ब्रूटस, जो उसका बड़ा प्यारा दोस्त था, की प्रेरणा से भरे दरबार में क्यास्का ने सीजर के पेट में नंगी तलवार घोंप दी। इस तरह उसको जब घायल किया गया था तब
उसको मरने से पहले कितनी पीड़ा हुई होगी, इसके बारे में तुम ही सोचो, तो पता चल जाएगा।
यशवंत :
इस धरती पर ज्यूलियस सीजर से भी ज्यादा दुष्ट कौन था!
जोतीराव :
इस धरती पर ज्यूलियस सीजर से भी ज्यादा दुष्ट आर्य ब्राह्मण परशुराम था। और प्राचीन काल में आर्यों ने जिन लोगों को पराजित करके उनको अपनी पीढ़ी-दर-पीढ़ी के
लिए दासों के दास बना लिया, ऐसे केवल अज्ञानी शूद्रादि-अतिशूद्रों को, अपाहिजों को फसाने के लिए ही बेशर्म आर्य आज परशुराम को ईश्वर का अवतार कहते हैं। लेकिन
मनुष्य का अवतार जो परशुराम था उसने इन बलिस्थान (भारत) के क्षेत्रों के मालिकों में कई क्षत्रियों की नफरत की भावना से हत्या की, और फिर उसने उन जवाँमर्द
क्षत्रियों की बेसहारा दुर्बल गर्भिणी औरतों का 'भेड़िये की तरह' पीछा करके उनके बच्चे पैदा होते ही उन बच्चों की बड़ी बेरहमी से हत्या करके इन लाचार
क्षत्रियों को शोक संतप्त करके रख दिया। वाह, कितनी अच्छी है ब्राह्मणों की अवतार की कल्पना! इस दुष्ट-बेरहम परशुराम को कोई भी आदमी शैतान का अवतार मानने के
लिए भी सहमत नहीं होगा, क्योंकि मुसलिमों ने जिन शैतानों की कल्पना की है, वे तो इस परशुराम से कई गुना अच्छे हैं, या नहीं?
यशवंत :
इस धरती पर आर्यों के जितने भगवान हुए उनमें परशुराम से भी ज्यादा अधम कौन हुआ है?
जोतीराव :
आर्यों के भगवान परशुराम से भी ज्यादा अधम कल के आर्य ब्राह्मण पांडे के चपाती विद्रोह का सूत्रधार ब्राह्मण पेशवा है, क्योंकि आर्यों के भगवान परशुराम ने
अपने इस बलिस्थान के मूल जवाँमर्द क्षत्रियों के नवजात शिशुओं की हत्या की थी, लेकिन कानपुर की छावनी में ब्राह्मणों के अधम बागी पेशवा ने जवाँमर्द अंग्रेज
फौजियों के सामने, जो अपने बीवी-बच्चों के प्यार से बँधे थे, उनकी घबराई हुई बीवियों को और उनकी छाती से लगे हुए नन्हें बच्चों को जबर्दस्ती छीनकर दिन-दहाड़े
बड़ी बेरहमी से कत्ल करवाया और अंत में अंग्रेज पुरुषों में से हर एक को, मजाक-मजाक में, बारी-बारी से बंदूक-पिस्तौल की गोलियों से उड़ा दिया। उन सभी को बेहाल
करके मौत के घाट उतार तो दिया लेकिन इसकी वजह से पेशवा को मरने के पहले पछतावा हुआ होगा और पीड़ा हुई होगी ऐसा मुझे नहीं लगता। क्योंकि आर्य लोग हमेशा
अहंब्रह्म हो जाते हैं। उनके मन को हम सभी के निर्माता का कोई डर नहीं होता है। इसलिए उन लोगों के लिए पाप-पुण्य का कोई विधि निषेध होता ही नहीं। और ऐसे असुरों
की जाति को भूदेव मानकर उनके पाँव पखारनेवाले पानी को तीर्थोदक की तरह पीते हैं, ऐसे लोगों को क्या कहना चाहिए? खैर, छोड़िए इन बातों को। लेकिन ऐसे लोगों को
उनके माता-पिता ने पैदा होते ही मार दिया होता तो सारी दुनिया के लाखों परिवारों को बेहिसाब परेशानी व कष्ट भोगने का मौका ही न मिलता और उनको अपनी मौत के पहले
पछतावा होकर पीड़ा भी न सहनी पड़ी होती।
यशवंत :
इस तरह के लोग यदि इस धरती पर हैं तो आगे वे शायद किसी समय फुफकारनेवाले जहरीले साँप की तरह भयंकर साबित होंगे। इसीलिए हम सभी लोगों को उनके बारे में हमेशा
होशियार रहना चाहिए। खैर, लेकिन किन कारणों से मानव नारी-पुरुष अपने मरने के पहले शांति से, बड़े आनंद में अपना प्राण त्याग देता है?
जोतीराव :
मानव नारी-पुरुष अपनी शादी होने के बाद निर्मल मन से सत्य का स्मरण करते हुए एक-दूसरे के प्रति हमेशा के लिए हर काम में सत्य आचरण में अपनी सारी उम्र गुजार
देते हैं। इस स्थिति में मौत आने पर वे शांति से अपना प्राण त्याग देते हैं। कई मानव नारी-पुरुष अपने पड़ौसियों की भलाई करने के लिए हमेशा प्रयास करते रहते
हैं, इसलिए उनको मरने के पहले किसी भी प्रकार की पीड़ा नहीं होती। लेकिन कई दुर्बल-डरपोक स्वभाव के लोग या भावुक मानव नारी-पुरुषों की बीमारी ने उनकी इंद्रियाँ
काफी कमजोर हो जाती हैं, वे डरते हैं, तब लोग बौखलाकर कहते हैं कि भगवान के दूत आए हैं, कई लोग कहते हैं कि यमराज के दूत आए हैं (यह डर ही दुख का कारण है।) और
कई लोग सॉक्रेटिस, युशु ख्रिस्त, मुहम्मद आदि महापुरुषों की तरह सभी मानव समाज के प्रति सत्य का आचरण करके अपना जीवन आनंद से गुजारना चाहिए, यह बात मन में
रखकर सारी उम्रभर प्रयास करते रहते हैं, इसलिए मौत आने से पहले उनके चेहरे पर शांति और आनंद के भाव दिखाई देते हैं। ऐसे सतपुरुषों को दुनिया के कल्याण के लिए
सत्य के प्रतीक मानना चाहिए, और वही हमेशा-हमेशा के लिए जिंदा रहनेवाली चीज है भी। और वे ही लोग लोगों के दिलो-दिमाग में हमेशा के लिए अपना स्थान बना लेते
हैं। इसलिए हर मानव नारी-पुरुष को इसी जीवन में सत्य को जीवन का आदर्श बनाकर उसके अनुसार आचरण करना चाहिए। उससे उसकी आदतों में अत्यंत गंभीरता आ जाती है और
उसको अपने मरने का समय नजदीक होने की कल्पना आने पर भी किसी प्रकार का डर नहीं होता है। इसलिए जब हम होश में होते हैं तब अपने बात-बच्चों को, अपने परिवार के
सभी युवाओं को हमें सत्य के प्रति जागरुक कर देना चाहिए और तब कहीं अपने रिश्तेदारों से, दोस्तों से अलविद होना चाहिए। और शांति से सत्य का स्मरण करते हुए
निम्न प्रार्थना करनी चाहिए।