तुम्हारे इस असीम विशाल अवकाश में जो अनंत सूर्यमंडल और इस धरती पर जितने जीव-प्राणी हैं उन सभी के साथ मुझ जैसे मनुष्य को पैदा करके तुमने मुझे सत्य-असत्य का विचार करने क बुद्धि दी है। तुम्हारी आज्ञा के अनुसार सत्य का स्मरण करते हुए मैंने इस दुनिया में जो आचरण किया है, इसको तुम अच्छी तरह जानते हो। इसलिए तुम मेरा स्वीकार करोगे, यह मुझे भरोसा है। उसी तरह मेरे कुछ भाई-बहनों ने सत्य का स्मरण करते हुए आचरण करते हैं, उनको भी तुम स्वीकार करोगे। तुम्हारे सत्य का राज बढ़ता रहे।
यशवंत : मानव नारी या पुरुष के प्राण उसके शरीर से निकलते ही उसके मरे हुए शरीर का क्या करना चाहिए?
जोतीराव : उस मृत काया को घर के किसी खुले कमरे में बिछौने पर लिटा देना चाहिए और उस कमरे में मृत काया के पास किसी समझदार मनुष्य को बैठा देना चाहिए। सारे घर की हवा शुद्ध रखने के लिए मामूली-मामूली कपूर का धूप जलाते रहना चाहिए। परिवार के सभी बाल-बच्चों, महिलाओं को जोर-जोर से रोने से मना कर देना चाहिए। सभी रिश्तेदारों, दोस्तों को कमरे के बाहर खुली जगह में बैठ जाना चाहिए और मृत व्यक्ति ने आज तक हम सभी के निर्माता का स्मरण करते हुए किस तरह से सत्य का पालन किया, इसके बारे में निश्चित रूप से कुछ समय के लिए स्मरण करना चाहिए।