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विमर्श

सार्वजनिक सत्यधर्म पुस्तक

जोतीराव गोविंदराव फुले

अनुक्रम मृत शरीर की अंतिम स्थिति पीछे     आगे

बलवंतराव : सभी मानव बेटे-बेटियों को अपने माता-पिता के मृत शरीर की अंतिम व्‍यवस्‍था किस प्रकार से करनी चाहिए?

जोतीराव : सभी मानव बेटे-बेटियों के माता या पिता ने अपने मरने के पहले यदि यह कहा हो या लिखकर रखा हो कि हमारे मृत शरीर की अंतिम व्‍यवस्‍था अमुक प्रकार से करना चाहिए तो उनके बेटे-बेटियों को और संबंधियों को उसी प्रकार से व्‍यवस्‍था करनी चाहिए। मानव माता-पिता ने अपने मरने से पहले अपने मृत शरीर के बारे में अपनी इच्‍छा किसी के पास यदि न प्रदर्शित की हो तो उनके परिवार में पहले से ही जो रिवाज चला आ रहा है, उसके अनुसार उसके मृत शरीर की अंतिम व्‍यवस्‍था होनी चाहिए।

बलवंतराव : मानव प्राणियों के मृत शरीर की अंतिम व्‍यवस्‍था करने के जो प्रकार हैं, उनके बारे में यदि संक्षिप्‍त में समझाएँगे तो बहुत ही अच्‍छा होगा।

जोतीराव : जमीन के भीतर के दीमक आदि कीड़े शरीर को खा लें ऐसी व्‍यवस्‍था करनी चाहिए, इस तरह की धारणाएँ सभी महाद्वीपों पर रहने वाले लोगों में आदिम काल से आज तक दिखाई देती हैं। इसीलिए सभी लोग मृत शरीर को जमीन के अंदर दफनाकर उस पर निशानी के रूप में कोई बड़ा पत्‍थर रख देते हैं या उस पर समाधि बाँध देते हैं। कुछ लोग अपने मृत संबंधी के शरीर को इसलिए पानी में बहा देते हैं कि पानी के मगरमच्‍छ आदि जंतु मृत शरीर को खा लें। कुछ लोग मृत शरीर को मामूली जलाकर के बहते पानी में डाल देते हैं। इसमें उनकी मान्‍यता है कि इस तरह मगरमच्‍छों को और अन्‍य जलप्राणियों को मृत शरीर का मांस ज्‍यादा मजेदार लगेगा। कुछ लोग अपने संबंधी के मृत शरीर के हाथ-पाँव काटकर आम रास्‍ते या चौराहे पर फेंक देते हैं। इसमें उनकी मान्‍यता यह है कि जमीन पर घूमनेवाले सियार, भेड़िया आदि चौपाये जानवरों को मृत शरीर को भोजन बनाकर खाना चाहिए। लेकिन फिलहाल उस तरह का रिवाज मैंने नहीं देखा है। फिर भी कुछ क्रूर जाति के लोग अपने संबंधी के मृत शरीर के साथ उसकी जिंदा औरत को भी जला देते हैं और इस बात के लिए उनके धर्मशास्‍त्रों में समर्थन भी किया गया है। लेकिन उसी प्रकार किसी पतिव्रता के मृत शरीर के साथ उसके जिंदा पति को भी जलाना चाहिए, इस बात का कोई समर्थन उनके धर्मशास्‍त्र में नहीं है। इससे यही सिद्ध होता है कि उनका धर्मशास्‍त्र पहले दर्जे का अधम है। आसमान के कौए, गिद्ध आदि दो पैर वाले पक्षियों को मृत शरीर का भोजन बनाकर खाना चाहिए, इसलिए कुछ लोग अपने संबंधी के मृत शरीर को जंगल में किसी विशेष स्‍थान पर रख देते हैं। कुछ लोग अपने संबंधी के मृत शरीर को अग्नि में खोर-खोरकर जलाते हैं और उसकी राख बना देते हैं। फिर बाद में जमीन के, जल के, जमीन के, ऊपर के और आसमान में विचरने वाले कीड़ों, पशुओं और पंछियों को निमंत्रण देकर उस मृत शरीर के नाम से मुट्ठी-भर भात का या आटे का पिंड बनाकर इसे कौए और अन्‍य बेजबान जानवरों को खिलाकर संतुष्‍ट करते हैं। उनकी गैर-मौजूदगी में कुश नाम की घास के नकली कौए को झूठ-मूठ ही वह पिंड अर्पण करते हैं।

बलवंतराव : यह बताइए कि मूल मानव नारी-पुरुषों को यदि यह मालूम नहीं था कि लकड़ी से अंगार कैसे पैदा होता है, तो फिर ईरानी आर्य लोगों ने कौए-गीदड़ों के मुँह का भोजन छीनकर अपने संबंधियों के मृत शरीर को कैसे जलाया होगा? इसके पीछे का मूल रहस्‍य होना चाहिए?

जोतीराव : ईरानी आर्य लोगों ने इस बलिस्‍थान में लगातार सैकड़ों साल तक हमले करके, जिनमें परशुराम आदि भी आते हैं, यहाँ के मूल निवासी दस्‍यु लोगों के कई महारथी वीरों का विध्‍वंस किया और उनकी औरतों के नवजात नन्‍हे बच्चों तक की हत्‍या की। उन्‍होंने मातंग, महार आदि लोगों को वंशपरंपरा से जब असीम कष्‍ट देना शुरू किया तब बलिस्‍थान के मूल निवासी दस्‍यु लोगों को बहुत ही परेशानी होने लगी, फिर उन्‍होंने आर्यों के मृत शरीरों को कौए, गीदड़ों के मुँह लगने नहीं दिया बल्कि उनके मृत शरीरों को जानबूझकर नष्‍ट-भ्रष्‍ट कर दिया और नफरत की भावना से खिल्‍ली उड़ाने लगे। इसी की वजह से सभी ईरानी आर्य लोग अपने सभी मरे हुए लोगों के शरीर को जलाने लगे होंगे, ऐसा अंदाज किया जा सकता है।

बलवंतराव : खैर, लेकिन आज सभी लोगों को अपने मरे हुए संबंधियों के शरीर की अंतिम व्‍यवस्‍था किस प्रकार से करनी चाहिए?

जोतीराव : मृत शरीर की अंतिम व्‍यवस्‍था करने के लिए सबसे पहले उसके बेटे-बेटियों को, रिश्‍तेदारों को उसको नहलाना चाहिए और उसके शरीर को सुगंधित तेल या इत्र लगाना चाहिए। फिर उसको कपड़े पहनाने चाहिए और उसके लिए बनाई अ‍र्थी या जनाजे में सुला देना चाहिए। फिर उसके सारे शरीर को कपड़े से ढँक देना चाहिए और उस पर फुलों की मालाएँ अर्पित कर देनी चाहिए। फिर उसके बाल-बच्चों को और सभी रिश्‍तेदारों को बारी-बारी से उस जनाजे को कंधा देना चाहिए और उसको श्‍मशान भूमि तक पहुँचा देना चाहिए। फिर उसकी अंतिम व्‍यवस्‍था किसी भी प्रकार से कर सकते हैं लेकिन उसके पहले उस मृत शरीर के कपड़े नहीं उतारने चाहिए फिर शमशन से अपने-अपने घर लौटने से पहले किसी सत्‍य पालक बुजुर्ग व्‍यक्ति को निर्माता के प्रति निम्‍न प्रकार से प्रार्थना करनी चाहिए।


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