तुम इस धरती की मिट्टी के निर्माता हो, उसके द्वारा ही तुम हम सभी जीव-प्राणियों का पालन करते हो। इसलिए हममें से ही एक मानव ने जब अपना प्राणत्याग दिया तब उसके मृत शरीर की मिट्टी मिट्टी में मिलाकर हम सभी तुम्हारे शाश्वत अविनाशी सत्य की राह पर चलते हैं।
बलवंतराव : मृत शरीर की व्यवस्था करते समय कुछ मानव नारी-पुरुष खुद को ही ऊँचा मानते हैं और दुनिया के सारे लोगों को नीच समझते हैं। स्वयं को अछूते रखकर बाकी सभी मानव नारी-पुरुषों के मूत शरीरों को छूते भी नहीं और उनके मृत शरीर के लिए किसी भी प्रकार की सहायता देने को अपवित्र, पाप समझते हैं। ऐसे लोगों के साथ अन्य लोगों को किस प्रकार से व्यवहार करना चाहिए?
जोतीराव : ऐसी मानव द्रोही-खोखली बड़ाई खोर जाति के लोगों के नीच व्यवहार के लिए उनको जब तक पछतावा नहीं होगा तब तक यदि वे जिन्दे हैं तो दूसरों को उनकी छाँव को भी नहीं छूना चाहिए। उसी प्रकार उनसे किसी भी तरह का लेन-देन नहीं रखना चाहिए। मतलब, ऐसे वे होश में आएँ तो अच्छा ही होगा।
बलवंतराव : अछूते रहनेवाले लोगों में से कुछ लोगों का कहना है कि हमारे मूल कुलस्वामी ऋषि का जन्म मातंगी से हुआ है। इसके बारे में आप यदि समाधान करेंगे तो बहुत ही अच्छा होगा।
जोतीराव : कोई दूसरे देशों पर जब हमला बोल देता है तो वे लोग अपने साथ अपनी औरतों को नहीं ले जाते, यह परंपरा बहुत पहले से थी। उसी प्रकार ईरान के आर्य लोगों ने जब-जब बलिस्थान पर हमले किए तब-तब उनमें से कई हमलावर ढिमरी से संभोग करने लगे, इसलिए उनके कुल को वाल्मीकि और व्यास ऋषि का कुल कहने लगे। कोई हमलावर अतिशूद्री या परवारनी से संभोग करने लगे, इसलिए उनके कुल को सांख्य, कबीलर, पाराशर और सतीर ऋषि का कुल कहने लगे। और जब कोई मलावर चमारिन से संभोग करने लगे, तो उसके कुल को टंक ऋषि का कुल कहने लगे।
बलवंतराव : लेकिन गधी, कुतिया या गीदड़ी आदि चौपाये जानवरों से ऋषियों के कुल कैसे बने?
जोतीराव : मूल ऋषियों की माताएँ गधी आदि कुछ नहीं थीं। लेकिन उन नारियों में कोई गधी की तरह आर्यों पर भौंकने वाली, उनसे नफरत करने वाली थी। कोई गीदड़ी की तरह आर्यों पर गरजने वाली थी। और कोई कुतिया की तरह आर्यों पर गुरगुराने वाली थी, इसलिए उन सभी नारियों के अलग-अलग स्वभाव के आधार पर उनके नाम भी गधी, गीदड़ी और कुतिया आदि प्रचलित हुए होंगे, इस तरह का अनुमान लगाया जा सकता है। तात्पर्य, ईरानी आर्य मानव नारी-पुरुषों से उत्पन्न खास संतानें इस बलिस्थान में बहुत ही कम होंगी।