यशवंत : तो फिर अपने इस सूर्यमंडल के साथ ही हम जिस धरती पर रह रहे हैं, उस धरती का निर्माणकर्ता कौन है?
जोतीराव : पूरब हो, या पश्चिम, दक्खिन हो या उत्तर, दसों दिशाओं में से यदि हमने एक भी दिशा की खोज की तो उसके अंत का पता लग सकता है?
यशवंत : हमने दसों दिशाओं में से एक भी दिशा को खोजने का प्रयास किया तो हमको कुछ भी पता नहीं चलेगा, क्योंकि हमने हजारों साल भी उस दिशा को खोजने का प्रयास किया तब भी बिलकुल पता नहीं चलेगा। आखिर हम मनुष्यों की - उम्र है ही कितनी?
जोतीराव : दसों दिशाओं में से एक भी दिशा का आपको यदि पता न चले तो सभी दिशाओं की लंबाई कितनी होनी चाहिए, इसका आप अनुमान भी कर सकते हैं?
यशवंत : सारी दिशाओं की लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई और गहराव का हमें बिलकुल अंदाज नहीं होगा क्योंकि वे अनंत हैं, ऐसा हमें लगता है।
जोतीराव : अपने इस असीम विशाल अवकाश में अनंत सूर्यमंडलों की तरह ही उनके ग्रह-उपग्रह भी हैं। अपनी धरती के मानव प्राणियों की तरह ही जिसने जानवरों को, पशुओं को, पंछियों को, पेड़-पौधों को पैदा किया है, वह निर्माता कहाँ है और किस तरह का है, यह देखने की अभिलाषा हम मानव प्राणियों को बिलकुल ही नहीं करनी चाहिए; क्योंकि अपनी धरती के बहुत ही करीब के ग्रह पर क्या-क्या है, यह देखने के लिए जाने की भी शक्ति हमारे पास नहीं है। अब मैा आपको यह सूचित करना चाहता हूँ कि पूरब की ओर हो या अन्य किसी भी दिशा की ओर - हवाई जहाज से या रेल के रास्ते हजारों साल चलकर उस पार जाने पर वहाँ किसी महल में सभी का निर्माणकर्ता सारे विश्व के प्राणियों के सुख और दुख की व्यवस्था करते हुए बैठा है, इस रूप में वह आपको दिखाई देगा, इस तरह की यदि आपने कल्पना कर ली; लेकिन आप स्वयं वहाँ जाकर हम सभी के निर्माणकर्ता का दर्शन पाकर पुन: इसकी शुल खबर अपने बाल-बच्चों को (क्योंकि हम लोग छोटी उम्र के हैं, इसलिए तब तक इस दुनिया से जाने वाले नहीं) बताने के लिए यहाँ आप आ सकेंगे? या हम सभी के निर्माता ने महा लेने के लिए या आप लोगों को दर्शन देने के लिए यदि बुलाया भी तो उस अपने महापवित्र, महातेज वाले और शक्तिशाली रोशनी के सामने हमारे जैसे लोग खड़े रहकर उसका दर्शन कर पायेंगे? अपनी धरती पर कई क्षणभंगुर सार्वभौम राजा हुए हैं, उनका प्रभाव तो कुछ भी नहीं जबकि अनंत सूर्यों की रोशनी भी एक जगह इकट्ठा करने से उस महापवित्र निर्माता की बराबरी नहीं हो सकती। हम लोग कुछ भी कर लें, उसके आगे हमारी शक्ति नहीं के बराबर है। हम लोग दुर्बल, ज्ञानहीन और सभी विकारों में लिप्त हैं, हमारा पल-भर का भी कोई भरोसा नहीं।
इसलिए हम लोगों को विनम्र होकर यहीं से निष्ठा के साथ उस अपने दयासाकर निर्माणकर्ता की शरण में जाना चाहिए और बड़ी नम्रता से साष्टांग नमस्कार करना चाहिए।
यशवंत : कुछ लोगों के ग्रंथों में यह लिखा हुआ है कि बहुत ही भयंकर तपस्या की वजह से कई तपस्वियों को निर्माणकर्ता ने दर्शन दिए हैं, इसके बारे में आपका क्या कहना है?
जोतीराव : मनगढ़ंत। विष्णु की नभि के कमल से उत्पन्न ब्रह्मदेव को भी निर्माण-कर्ता ने दर्शन नहीं दिए तो फिर मानव-प्राणी का तो कहना ही क्या? क्योंकि दुनिया में कुछ धूर्त लोगों को इस तरह के पुराण - कल्पित साहित्य की रचना करके मूर्ख जीवों पर अपना प्रभाव रखने का मौका मिला। लेकिन इस सत्य-युग में उनके काल्पनिक ब्रह्म का असली-नकली रूप समझ में आने लगा है।
पूजा
बलवंतराव : अब अपने निर्माणकर्ता को फूल चढ़ाकर उसकी पूजा हम लोगों को किस प्रकार करनी चाहिए?
जोतीराव : इस विशाल अवकाश में अनंत सूर्यमंडल, उनके ग्रह-उपग्रह और इस धरती पर जितने फूल आदि सभी सुंधित पदार्थ हैं, उनको यदि निर्माता ने दयाभाव से अपने मानवों के उपभोग के लिए पैदा किया है तो उनमें से किस पदार्थ को उन्हीं को अर्पण करके हम उनकी पूजा करें? यदि सभी पदार्थ निर्माता ने ही पैदा किया है तो अपने पास अपना खुद का क्या है कि जो निर्माता को चढ़ाकर उसकी पूजा करें?
बलवंतराव : तो फिर हमें अब इन फूलों का क्या उपयोग करना चाहिए?
जोतीराव : जो लोग अपनी मेहनत से अपने परिवार का पोषण करते हैं, और रात और दिन दुनिया के कल्याण के लिए संघर्षशील हैं, मतलब अज्ञानी मानव बंधुओं को स्वार्थी तथा अपने ही हितों की बात सोचने वाले लोगों के जाल से मुक्त करने वाले जो सत्पुरूष हैं, उन्हीं को हर दिन ईश्वर के नाम से फूलों की मालाएँ समर्पित करनी चाहिए ऐसा करने में ही फूलों की सार्थकता होगी।
नामस्मरण
बलवंतराव : बार-बार निर्माणकर्ता का मात्र नामस्मरण करने से क्या किसी का कोई समाधान होगा?
जोतीराव : आप अपने घर में हैं और मैं अपने घर में। आपके नाम से आपकी किसी धातु या पत्थर की मूर्ति पर फूल चढ़ाकर अपना नाम-स्मरण किया तो उससे आपको सही में कुछ फायदा होगा? उसी तरह किन्हीं माता-पिता के दस बच्चे हुए और माता-पिता ने कड़ी मेहनत करके अपने बुढ़ापे तक उनका पालन-पोषण किया, अब उनके बूढ़े होकर अपाहिज होने पर उनके बच्चों में से बड़े लड़के ने उनके पालन-पोषण के लिए कुछ भी प्रयास नहीं किया, लेकिन - 'मेरी माँ, मेरे पिता' कहते हुए व्यर्थ स्मरण करने लगा तो उसके माता-पिता को और उसके अन्य भाइयों को भूखों मरना पड़ेगा या नहीं? लेकिन उनमें से एक लड़के ने माता-पिता का बगैर स्मरण किये ही, कड़ी मेहनत-मजदूरी करके, दौड़-धूप करके अपने माँ-बाप को और छोटे भाइयों को पाला-पोसा तो उसके माँ-बाप और उसके छोटे बहन-भाई सुखी होकर आनंद पायेंगे या नहीं? यहाँ माता-पिता का सिर्फ नामस्मरण करने वाले और दूसरी ओर मेहनत करके माता-पिता और बहन-भाइयों का पालन-पोषण करने वाले इन दोनों तरह के लड़कों में कौन सबको अच्छा लगेगा? उसी प्रकार जो अपनी मेहनत से अपना निर्वाह नहीं करते या दुनिया के कल्याण के लिए संघर्ष नहीं करते और केवल अपना पेट पालने के लिए बहुरूपिया की तरह पाखंडी-वैरागी का स्वाँग भरकर हमेशा भंग पीकर उसके नशे में अज्ञानी-भोले लोगों से पाये भोजन पर अपना गुजारा करते हैं या जो दूसरों की मेहनत पर गुलछर्रे उड़ाते हैं ऐसे लोग निर्माणकर्ता का स्मरण करते है तो निश्चित रूप से जानकार लोगों की निंदा के पात्र समझे जाते हैं।
बलवंतराव : तो फिर हम मानव-समाज के लोगों को निर्माणकर्ता का नाम भी नहीं लेना चाहिए?
जोतीराव : हम मानव समाज के लोगों को कृतज्ञता के साथ और मन से निर्माण-कर्ता का नाम नहीं लेना चाहिए, ऐसा जो लोग कहते हैं उनको अधम और अहसानफरामोश कहना चाहिए।
बलवंतराव : तो फिर हम मानव समाज के लोगों को कृतज्ञतापूर्वक निर्माता का नाम किस प्रकार और किस समय लेना चाहिए, इसके बारे में विस्तार से स्पष्टीकरण करें, तो बहुत ही अच्छा हो।
जोतीराव : जो हम मानवों को पैदा करता है और लगातार पालन-पोषण भी कर रहा है, पूरी निगरानी रख रहा है, उसके नाम का घोष केवल धर्म के लालच में करना बिल्कुल ठीक नहीं होगा। जो ब्राह्मण पुरोहित लोग चालाक सियार की तरह कई प्रकार के हथकंडे अपनाकर किसी न किसी उपाय से अनपढ़-अज्ञानी लोगों को फंसाकर अपने परिवार का निर्वाह करते हैं वह भी ठीक नहीं। जो धूर्त ब्राह्मण कीमती ठाटदार पीतांबर पहनकर रजस्वला नारी की तरह सभी कामों से अछूते रहते हैं, सुगंधित पदार्थों से जहाँ सुगंध की बाढ़ आ रही होती है, इस तरह के पूजा घर में नाक कटे अपराधियों की तरह लाचार होकर, बगुला भगत बन जाते हैं और डरपोक व्यक्ति की तरह आँखें मंद करके बहुत बड़े धार्मिक होने का दिखावा करते हुए निर्माता के नाम का घोष करते हैं तो हम सभी को परमन्यायी निर्माणकर्ता का ऐसे अटल धूर्त बहु-रूपिया मदारी द्वारा नामस्मरण करते देखकर निश्चित रूप से क्रोध आएगा या नहीं? इसीलिए निर्माता के नाम से हमेशा-हमेशा के लिए डरना चाहिए, हम लोगों को उसके नाम की याद को मन में पक्का स्थान देना चाहिए, ऐसे ही उसके पैदा किए हुए सभी मनुष्यों के साथ किसी तरह के दाँवपेंच नहीं खेलने चाहिए। सीधा और समझदारी-भरा आचरण करने से निर्माता के पवित्र नाम को सम्मान मिलेगा। निर्माता के नाम का व्यर्थ नामघोष करके उसके मन को अशांत करने से निश्चित रूप से कोई समाधान नहीं निकलेगा। निष्कर्ष रूप में, निर्माता ने हम मानव समाज के लिए जो कुछ चीजें पैदा की हैं उन्हें उपयेाग में लेकर उसके नाम से धर्म पर आधारित कुछ सिद्धांतों की स्थापना करनी होगी और हम सभी लोगों को अपनी-अपनी मेहनत के अनुसार उन वस्तुओं को बरतने की शुरूआत करनी होगी। इससे सारी दुनिया के मानव समाज में किसी भी प्रकार का फालतू टकराव नहीं पैदा होगा। यहाँ हम सभी लोग हिन-भाईयों की तरह एक-दूसरे से व्यवहार करने लगेंगे, सभी मानव प्राणी सुखी होंगे और प्रत्यक्ष में निर्माता की सत्ता कायम होगी, उसका राज कायम होगा।