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विमर्श

सार्वजनिक सत्यधर्म पुस्तक

जोतीराव गोविंदराव फुले

अनुक्रम नैवैद्य या अन्नदान पीछे     आगे

यशवंत : हम लोगों को निर्माता के सामने नैवेद्य अर्पित कर उसको कैसे तृप्‍त करना चाहिए?

जोतीराव : सारे अवकाश के अनंत सूर्यमंडल और उनके ग्रह-उपग्रह तथा धरती पर जितनी भी चीजें हैं, वह सभी मानव समाज के निर्वाह के लिए ही निर्माणकर्ता ने अपनी इच्‍छा से पैदा की हैं, तो उनमें से किस चीज को हमे उसके लिए नैवेद्य के रूप में अर्पण करना चाहिए?

यशवंत : अगर यह सही है तो हमको निर्माता को संतुष्‍ट करने के लिए किसी चीज का क्‍यों और किस तरह से उपयोग करना चाहिए।

जोतीराव : जिन सत्‍पुरूषों ने अपने परिवार को अपनी मेहनत से कमाये हुए धन से पालपोस कर दुनिया के कल्‍याण के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया है, उसको यदि वृद्धावस्‍था में किसी कठिनाई का मुकाबला करना पड़ा या कोई विपदा आयी तो उसकी मदद करनी चाहिए या दुनिया में जो अपाहिज लोग हैं उनकी या जो अनाथ हैं उनकी निर्माता के नाम से जितना हमसे संभव हो उतनी मदद करनी चाहिए। इसका मतलब ही उसको नैवेद्य अर्पण किया गया मान लेना चाहिए।

यशवंत : क्या आपका कहने का मतलब यह तो नहीं है कि आलसी या अनुपयोगी ब्राह्मण भिक्षुओं को सहस्रभेज और दक्षिणा नहीं देनी चाहिए?

जोतीराव : यह बात नहीं, ऐसे देने में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए, इसलिए सारे मानव समाज में जो भी कोई अपने परिवार को पाल-पोस करके दुनिया के कल्‍याण के लिए लगातार रात और दिन संघर्ष कर रहा है, फिर चाहे वह आर्यभट्ट भिक्षुक ब्राह्मण हो या अमेरिका का इंडियन मतलब वहाँ का आदिवासी हो या जिसको आप नीच मानते हैं ऐसा कोई मृतप्राय आदमी हो, वे सभी अन्‍नदान लेने के योग्‍य हैं, यही समझना चाहिए और ऐसे ही आदमी को अन्‍नदान करना निर्माता को अर्पण करने के समान है क्‍योंकि सभी मानव प्राणियों का निर्माणकर्ता वही है।

अनुष्‍ठान

बलवंतराव : अनुष्‍ठान करने से या जप करने से निर्माता को कुछ संतोष होगा या नहीं?

जोतीराव : नहीं, इससे कुछ भी होने वाला नहीं। क्‍योंकि अज्ञान रूप अंधकार में डूबे हुए बहनों और भाइयों को लूटकर खाने के लिए बहुरूपिया धूर्त ठग ही ऐसा नकली स्‍वाँग रचते हैं।

बलवंतराव : तो फिर अनुष्‍ठान करके जप-तप कैसे करना चाहिए?

जोतीराव : निर्माता ने इस दुनिया की सभी चीजों को पैदा किया है, उनमें से हर एक चीज का किस-किस जगह और किस-किस प्रकार से उपयोग करना चाहिए, इसके लिए रात-दिन मेहनत करके अपना कर्तव्‍य निभाते हुए निर्माता के ध्‍यान में डूबकर उसके बारे में विचार करते रहने से निर्माता की अथाह शक्ति, अपार चतुराई और अगाध लीला का आभास होता है।

स्‍वर्ग

मनाजी बोलूजी मगर : दुनिया के सभी अज्ञानी लोग यह कहते हैं और मानते हैं कि स्‍वर्ग नाम की कोई चीज है, और उस स्‍वर्ग में पुण्‍यवान लोगों को सदैव सुख मिलता है। वैसे ही अधार्मिकों को उनके कर्म के अनुसार नरक में सदैव के लिए तरह-तरह की विपदाएँ सहन करनी पड़ती हैं, इसके बारे में आपका क्या कहना है?

जोतीराव फुले : बहुत प्राचीन काल में जब कहीं भी किसी को यह मालूम नहीं था कि सुधारकिस पदार्थ का नाम है, तो कुछ होशियार लोगों ने स्‍वर्ग का बखेड़ा खड़ा कर दिया जिस तरह से मालियों द्वारा खेतों में, बागों में हांडी को सिंदूर लगाकर पुतले की तरह बिलूखा या इसी प्रकार की कोई वस्‍तु जानवरों-पंछियों को डराने के लिए इस्‍तेमाल की जाती है उन्‍होंने स्‍वर्ग को ऐसे ही एक हौआ के रूप में रखा था। बाद में आगे-पीछे कई क्षेत्रों में काल के अनुसार सुधार हुआ है। लेकिन स्‍वर्ग के बारे में किसी ने कोई सोच-विचार नहीं किया है और न उसका पता लगाने की कोशिश की है।

मनाजी : इससे आप क्या यही कहना चाहते हैं न कि स्‍वर्ग नाम की कोई चीज ही नहीं है?

जोतीराव : इसमें भी कोई संदेह है? वैसे ही सभी धर्मग्रंथों में यह लिखा गया है कि स्‍वर्ग है। लेकिन इस धरती पर रहने वाले किसी भी व्‍यक्ति ने अभी तक यह नहीं बताया कि मैंने स्‍वर्ग को स्‍वयं देखा है। काल्‍पनिक पुराणों के शब्‍दों पर ध्‍यान देकर पौराणिक कथाओं पर विश्‍वास रखने के बजाय कोई आदमी स्‍वर्ग देखने के लिए गया हो और फिर वह लौटकर आ गया हो, ऐसा कोई उदाहरण हमारे पास नहीं है। इस तरह स्‍वर्ग से लौटकर आया हुआ कोई आदमी इस धरती के धरातल पर नहीं मिल सकेगा तो उसे वास्‍तविक या यथार्थ नहीं माना जा सकता।

नर-नारी

बलवंतराव : निर्माता ने इस अपनी धरती पर जल में जलजंतु, जमीन पर रहने वाले प्राणी और खच्‍चर आदि जीवों की तीन जातियाँ पैदा की हैं, उनमें सबसे श्रेष्‍ठ कौन है?

जोतीराव : इन सभी प्राणियों में मानव प्राणी श्रेष्‍ठ है और इनमें नर और नारी इस तरह के दो भेद हैं।

बलवंतराव : इन दो नर-नारियों में सबसे ज्‍यादा श्रेष्‍ठ कौन है?

जोतीराव : इन दोनों में सबसे ज्‍यादा श्रेष्‍ठ नारी है।

बलवंतराव : इन दोनों में सबसे ज्‍यादा श्रेष्‍ठ नारी ही क्‍यों हैं?

जोतीराव : इसका कारण है। निर्माता द्वारा निर्मित अनोखा मोह उत्‍पन्‍न करने वाले इस भवसागर में तैरकर मजा लेने वाले क्षणिक नर और नारी मानव प्राणी हैं। उनमें भी स्‍वभाव से नारी जाति लज्‍जालु है। इसलिए नारी सबसे पहले एक नर को मेलजोल करने के लिए पहल करने का अवसर देती है और उस मेलजोल को संभोग की इच्‍छा रखने वाला यह धूर्त नर इतना बढ़ाता है कि अंत में नारी स्‍वयं ही उसको अपना मददगार, राहगीर, साथी बनाती है। और वही नारी प्रकृति के नियमों के अनुसार अपने ही बच्चों का नहीं, बल्कि ब्राह्मणों के धोखेबाज ब्राह्मचारी शंकराचार्य जैसे बच्चों का भी बिना शिकायत के चुपचाप नौ माह तक रात और दिन लगातार अपने पेट में बोझ ढ़ोती रहती है। वही हम सभी को जन्‍म देने वाली है। वही हमारा मल-मूत्र साफ करके हम सभी को पाल-पोसकर हमारी देखभाल करने वाली है। जब हम सभी दुर्बल होते हैं, अबोध होते हैं उस समय वही हमारी चिंता करती है और उसी ने हम सभी को बोलने के लिए तथा चलने के लिए सिखाया है। इसी की वजह से सभी की जुबान पर एक विश्‍व प्रसिद्ध कहावत है कि 'सभी के उपकारों से मुक्‍त हो सकते हैं लेकिन अपने को जन्‍म देने वाली माँ के उपकारों से मुक्‍त होना असंभव है' इसीलिए मैं यह कह सकता हूँ कि नर से नारी श्रेष्‍ठ है।

बलवंतराव : इसके अलावा नारियों की विशेषता क्या है?

जोतीराव : इसके अलावा नारी अपने बहन-भाइयों की चहेती होने की वजह से वह उनका नि:स्‍वार्थ भाव से समर्थन करती है। इसके अलावा नारी के बिना घर शोभा नहीं देता, यह तो आप जानते ही हैं। इसके बारे में एक कहावत है कि, 'न गृहं गृहमित्‍याहुर्गृहिणी गृहमुच्‍यते।'

बलवंतराव : नारी पुरुषों को ज्‍यादा प्‍यार करती है, इसका कारण क्या है?

जोतीराव : जिस समय किसी नारी का पति मर जाता है, उस समय वह बहुत दुखी होती है, आगे उसको भारी कठिनाइयाँ बर्दाश्‍त करनी पड़ती है। मरते दम तक सारा समय रंडापे में गुजारना पड़ता है। इतना ही नहीं, पहले के जमाने में कई औरतें सती भी हो जती थीं। लेकिन यदि स्‍त्री मर जाए तो उसका पति उसके मर जाने के दुख से दुखी होकर वह भी 'सता' हो गया हो, क्या इस तरह का एक भी उदाहरण मिल सकेगा? वह चाहे जितनी शादियाँ कर सकता है, लेकिन औरतों के बारे में ऐसा नहीं है।

बलवंतराव : औरतों पर पुरुषों का कम प्‍यार होता है, इसका कारण क्या है?

जोतीराव : घर में महापतिव्रता नारी होने के बावजूद अत्‍यंत लोभी आदमी उसकी छाती पर फिर-फिर शादियाँ करके दो-दो, तीन-तीन औरतों का बोझ डाल देता है, लेकिन औरतें एक व्‍यक्ति के साथ शादी करने के बाद उसके घर में रहते हुए दूसरे किसी आदमी के साथ दुबारा शादी करके उसी के घर में उसको अपने पति का 'सौता' या 'सपति' बनाकर नहीं रहती।

बलवंतराव : इस प्रकार से पुरुषों में अन्‍याय करने की प्रवृत्ति कैसे पैदा होती है?

जोतीराव : नारी जाति बड़ी अबला होती है, इसलिए इन स्‍वार्थी और साहसी पुरुषों ने बड़ी चालाकी से यह तय-सा कर दिया कि किसी भी काम में नारी जाति की स्‍वीकृति लेना जरूरी नहीं है। उन्‍होंने हर क्षेत्र में अपने ही वर्चस्‍व को बढ़ाया। नारी को अपने मानवी हक समझ में न आएँ, इसलिए उन्‍होंने नारी को पढ़ाने-लिखाने से वंचित कर दिया। सभी नारियों पर इस तरह की स्थिति आई है।

बलवंतराव : हम किस आधार पर नारियों को अबला मानते हैं?

जोतीराव : नारी लगातार रात और दिन नौ माह तक हम सभी का बोझ अपने पेट में सँभालती है, लेकिन उसमें किसी भी लोभी-स्‍वार्थी पुरुष की तरह छक्‍के-पंजे खेलने की प्रवृत्ति नहीं है, साहस भी नहीं है, इसीलिए नारी को अबला कहा जाता है।

बलवंतराव : इस तरह करने का परिणाम क्या होता है?

जोतीराव : सारी दुनिया में सबसे पहले पुरुषों के अत्‍यंत लोभ और स्‍वार्थ की वजह से मत्‍सर, घृणा, छल-धोखा और कई तरह के दोष पैदा हुए और हर तरह के अपराध होने लगे।

बलवंतराव : तो फिर सारी दुनिया के सभी मानव प्राणियों को अपने पाप और पुण्‍य की जामा-तलाशी देनी पड़ेगी या नहीं?

जोतीराव : सारी दुनिया के मानव प्राणी अपने पाप और पुण्‍य के स्‍वरूप के आधार पर यहीं (इस लोक में) प्रत्‍यक्ष हिसाब चुकता करते हैं, उनको और कहीं जाने की जरूरत नहीं पड़ती। वे यहीं, इसी जन्‍म में अपने आगे बढ़ने वाले सभी संतान रूप पेड़ों को पानी सींचते हैं या मार डालते हैं। उस प्रकार उन पर या उनकी संतान पर उस पाप का या पुण्‍य का परिणाम होता है। इसीलिए ईश्‍वर ने परलोक को साक्षात् इहलोक में ही बनाया है।

बलवंतराव : फिर आप इसके बारे में कुछ पुरुषों के अत्‍यंत लोभ के बारे में कुछ मिसालें पेश करें तो बहुत अच्‍छा हो, बड़ी मेहरबानी हो। उसी प्रकार मेरा और अन्‍य सज्‍जनों का विश्‍वास बन जाएगा।

जोतीराव : कई बुरी चीजों के आदी लोग अपनी स्‍त्री से धोखा करके ज्‍यादा सुख भोगने की लालसा से उसकी छाती पर दो-दो, तीन-तीन शादियाँ करके सौत के रूप में औरतें बिठा देते हैं और उनके साथ रात और दिन अपनी काम-वासना तृप्‍त करने में मशगूल हरते हैं। इसी सबको लेकर पहली औरत के मन में नफरत की भावना पैदा होती है और वह मन से उससे घृणा करने लगती है। तब सबसे पहले परिवार में कलह पैदा होने के लिए पुरुष का लोभी स्‍वभाव ही मूल कारण है। ज्‍यादा वासनालिप्‍त रहने से पुरुषों में कई प्रकार के भयंकर रोग पैदा होते हैं और आज वे रोग ऐसे ही पुरुषों के चलते सारी दुनिया में फैले हुए हैं। कई शौकीन लोग वासना से इतनी मस्‍ती में आ जाते हैं कि रजस्‍वला स्‍त्री से भी अपनी कामवासना तृप्‍त करने में परहेज नहीं करते हैं, तब उन दोनों स्‍त्री-पुरुष को महाभयंकर रोग होते हैं। इतना ही नहीं, उनकी संतानों में भी वही रोग कुछ समय तक कायम रहते हैं।

बलवंतराव : आपने पहले कहा कि सभी औरतों को उनके मानवी हक का पता न चलने पाए, इसी इरादे से लोभी पुरुषों ने उनको पढ़ने-लिखने से दूर रखा, उनकी शिक्षा पर रोग लगा दी, इस तरह स्त्रियों पर कई जुल्‍म और ज्‍यादतियाँ हुई हैं, उनमें से नमूने के लिए कुछ मिसाले दें, यह अच्‍छा होगा।

जोतीराव : देखिए, पहले के जमाने में साठ-सत्तर साल के जर्जर हुए पोपले मरियल बूढ़े आर्य भट्ट ब्राह्मण पहली औरत के मरते ही अल्‍प उम्र की सुदंर लड़की से दोबारा ब्‍याह करके उस अबला की जवानी को मिट्टी में मिला देते थे किंतु नाबालिग अवस्‍था में अज्ञानी लड़की के विधवा हो जाने पर किसी भी हालत में दुबारा विवाह नहीं करना चाहिए, इसलिए कड़े प्रतिबंध लगाए गए थे। उसके परिणाम निम्‍न प्रकार से हुए हैं - पवित्रता का खोखला दिखावा करनेवाले भयंकर बेशर्म आर्य ब्राह्मण अपनी अबला और दुर्बल भौजाई और बहू के यौवनावस्‍था आते ही रात और दिन ऐसे उनका इतना पीछा करते हैं कि स्‍वाभाविक रूप से उनके कदम गलत रास्‍ते पर पड़ जाते हैं, और जब इस तरह से होता है तब उनको अपनी इज्‍जत बचाने के लिए मजबूर होकर गर्भपात करके भ्रूण हत्‍या करनी पड़ती है। इसी से आप अंदाज लगा सकते हैं कि धूर्त आर्य ब्राह्मण जाति में कितनी मात्रा में गर्भपात और भ्रूण हत्‍याएँ होती होंगी! इस सबके बारे में सही-सही कोई कुछ कह नहीं सकता।

बलवंतराव : मैं इस विकराल पाप का अनुमान करके बताने में पूरी तरह असमर्थ हूँ किंतु इस भयावह परंपरा को आर्य ब्राह्मणों ने आज तक अपनी जाति में क्‍यों बरकरार रखा? लगता तो यही है कि इस तरह पैशाचिक परंपरा को कायम रखने से धूर्त आर्य ब्राह्मण जाति का अपने-आप विनाश होगा, ये लोग निर्वंश होकर नष्‍ट हो जाएँगे। फिर ये लोग इस अघोर परंपरा को अपनी जाति से क्‍यों नहीं निकाल देते?

जोतीराव : इसका कारण है। नारी जाति को नीच समझने की उनकी परंपरा है और इसके समर्थन में कई धूर्त, चालाक ऋषियों ने धर्मशास्‍त्रों को लेकर कई संहिताएँ, स्‍मृतियाँ आदि रचकर पुरुषों को सबल आधार प्रदान किया इसकी वजह से उन्‍होंने आज तक इस अघोर, नीच परंपरा को कायम रखा है। आप ही सोचिए कि आर्य ब्राह्मणों ने इस अघोर परंपरा को समाज में प्रचारित करके भोले-भाले अज्ञानी कुलकर्णी (कुलवाड़ी) सुनार आदि जाति के लोगों को भी अपनी नकल के लिए प्रेरित किया। और उन्‍होंने भी ब्राह्मणों की तरह ही अपनी बहू-बेटियों को उसी प्रकार की कठिनाइयों में डाला है। इस अन्‍याय को देखकर भी हम सभी के परमन्‍यायी और दयालु निर्माणकर्ता को उनके अघोर दुष्‍ट आचरण पर क्या गुस्‍सा नहीं आता होगा? आता होगा।

बलवंतराव : फिर आर्यभट्ट ब्राह्मणों की बहू-बेटियों द्वारा इस तरह के गर्भपात और बालहत्‍याएँ करके भी आर्य ब्राह्मण निर्वंश न हों, वे अपने अपराध-दोष से बच जाएँ इसके लिए जिन वेदों को पवित्र या त्राणकर्ता मानते हैं, उनमें कहीं भी इसके बारे में निषेध किया गया है या नहीं?

जोतीराव : आर्य ब्राह्मणों के पवित्र वेदों में यह बात कहीं नहीं मिलती कि नारियों का पुरुषों के साथ दूसरा संबंध स्‍थापित हो। इसलिए गर्भपात और बाल-हत्‍या के बारे में अनेक वेदों में कहाँ लिखा हुआ मिलेगा? किंतु वेदों के काल में एक आर्य ब्राह्मण का भाई यदि मर जाता है तो वह अपनी भौजाई के साथ पुनर्विवाह का किसी भी प्रकार की विधि किए बगैर उससे संतान पैदा करने के बहाने उसके साथ अपनी औरत की तरह मजा भोगता था। इसके आधार पर यह अनुमान किया जा सकता है कि आज के धूर्त भट्ट ब्राह्मणों की तरह उनमें गर्भपात और बाल हत्‍याएँ नहीं होती होंगी।


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