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विमर्श

सार्वजनिक सत्यधर्म पुस्तक

जोतीराव गोविंदराव फुले


यशवंतराव : मानव प्राणियों में जातिभेद है या नहीं?

जोतीराव : मानव प्राणियों में मूल में जातिभेद नहीं है।

यशवंतराव : मानव प्राणियों में मूल में जातिभेद क्‍यों नहीं है।

जोतीराव : क्‍योंकि जानवरों, पंछियों में जातिभेद नहीं है। तो फिर मानव प्राणियों में जातिभेद कहाँ से होगा?

यशवंतराव : मानव प्राणियों में मूल में जातिभेद नहीं है, इसके बारे में आप यदि अच्‍छी तरह विश्‍लेषण कर सकें तो बहुत ही अच्‍छा होगा।

जोतीराव : जानवर-पंछी आदि इंद्रियों में पूरी तरह एक-दूसरे से भिन्‍न-भिन्‍न हैं। उसी प्रकार दो पाँव वाले मानव प्राणी इंद्रियों में चार पाँव वाले प्राणियों से भिन्‍न हैं। इसीलिए आर्य ब्राह्म ने अपनी इंद्रियों से सिर्फ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्‍य और शूद्र इस तरह के चार जातियों की (वर्णों की) उत्‍पत्ति की है। लेकिन मानवेतर गधे, कौए, घोड़े, बैल, कुत्ता, सुअर, चूहे, बिल्‍ली आदि प्राणियों में ब्राह्मण कौन है, क्या यह आप लोग मुझे बता सकते हैं?

यशवंतराव : गधे, कौए, घोड़े आदि मानवेतर प्राणियों में ब्राह्मण किसको कहें, यह सिद्ध करना एकदम असम्‍भव है। क्‍योंकि आर्य ब्राह्मण ऋषि जैसे लोग भी प्राचीन काल में जाहिरा तौर पर मांसाहारी थे। इसीलिए जानवर-पंछी आदि में जातिभेद है, यह सिद्ध करना एकदम असंभव है। सिर्फ मानव प्राणियों में ब्राह्म की इंद्रियों से चार जातियाँ (वर्ण) बनी हैं, यह बात उन्‍हीं के धर्मशास्‍त्रों में कही गई है।

जोतीराव : तो फिर जानवर-पंछी, गधे आदि सभी प्रकार के प्राणी ब्रह्मा के किस इंदिय्र से उत्‍पन्‍न हुए हैं।

यशवंत : ये सारी बातें हम ब्राह्मणों के धर्मशास्‍त्रों के आधार पर बोल रहे हैं।

जोतीराव : तुम लोगों ने स्‍वयं आर्य ब्राह्मणों के धर्मशास्‍त्रों को पढ़कर उसके बारे में सही खोज की है या नहीं?

यशवंत : नहीं, क्‍योंकि आर्य ब्राह्मण उन ग्रंथों को हमारी नजरों के सामने भी अपने नहीं देते और यदि हमने उस धर्मग्रंथों को पढ़ने की अपनी इच्‍छा व्‍यक्‍त की तो वे ब्राह्मण उन ग्रंथों को हमें सुनने भी नहीं देंगे।

जोतीराव : तो केवल ब्राह्मणों के धर्मग्रंथों के बारे तुम लोगों को निश्चित-खोजबीन करनी चाहिए। सिर्फ उनके मुँह की गप से जातिभेद वाली मक्‍कारी को तुम लोग अंधों की तरह आँखें मूँद करके क्‍यों मानते हो? यह तुम्हारी शूद्रों की सीधी मूर्खता है।

यशवंतराव : ब्राह्मण सो ब्राह्मण, शूद्र सो शूद्र-हमने कितनी भी कोशिश की तब भी लगा शूद्र ब्राह्मण नहीं हो सकेगा, उसी प्रकार ब्राह्मण शूद्र नहीं हो सकेगा।

जोतीराव : क्‍यों, यदि आर्य ब्राह्मण लोग शूद्र नहीं हो सकते तो महामुनि ख्रिस्‍ताचार्य के बंगले पर ये अतिशूद्र महार, मातंग आदि लोगों की पंक्ति में बैठकर मद्यपान क्‍यों करते हैं? या पाव-बिस्किट क्‍यों खाते हैं? इसके अलावा वे म्‍लेच्‍छ आदि अतिशूद्रों की लड़कियों के साथ ब्‍याह करके अपना संसार बसाते हैं या नहीं? इसलिए मेरा कहना यह है कि, 'ब्राह्मण: सर्वत्र पूज्‍य:' इस बात को तुम लोगों को अपने दिलो-दिमाग से निकाल देना चाहिए, इस वाक्‍य को तुम लोगों को अपने मन से हटा देना चाहिए, बस ठीक हो जाएगा।

यशवंतराव : तो इसी के आधार पर अपने इस अभागे बलिस्‍थान में जगविरोधी धनगर, माली, कुनबी आदि कई जातियाँ हैं, क्या वे सभी झूठी हैं?

जोतीराव : आपका यह सारा कहना विचार करने के बाद झूठ साबित होगा, ऐसा मुझे लगता है। मान लो, किसी एक आदमी को तीन बच्‍चे हैं और उनमें से एक बच्‍चे ने भेड़ पालने में अपनी सारी उम्र गँवा दी है, दूसरे ने फलों, सब्जियों आदि की खेती में अपनी सारी उम्र गँवा दी है और तीसरे ने खेत को जोतने, हल चलाने में, उसमें बोने, काटने में अपनी सारी उम्र गुजार दी है, तो आप इससे उन (पहला लड़का धनगर या गड़रिया, दूसरा माली और तीसरा कुनबी) तीनों लड़कों की तीन जातियाँ हैं, ऐसा कह सकते हैं?

यशवंतराव : उन्‍हें ऐसा कैसे ठहराया जाएगा?

जोतीराव : उसी प्रकार एक ब्राह्मण के तीन लड़के हैं, उनमें से एक लड़के ने अपने निर्वाह के लिए तबलजी का धंधा करने में अपनी सारी उम्र गँवा दी, दूसरे ने अपने निर्वाह के लिए वैद्य का (डाक्‍टरी) धंधा करके सभी लोगों की दवाइयाँ दीं, जाति का विधि निषेध नहीं रखा और लोगों के शवों को फाड़ने-सिलने में अपना सारा जीवन खर्च कर दिया, और तीसरे लड़के ने पेट के लिए घर-घर जाकर रसोइया का काम करके, रोटियाँ पकाने मे अपनी सारी उम्र गुजार दी। इस आधार पर क्या आप यह कह सकते हैं कि उसके पहले लड़के की गुरव जाति है, दूसरे की वैदू जाति है और तीसरे की रसोइया जाति है?

यशवंतराव : आप जैसा कहते हैं उस तरह कुछ साबित नहीं किया जा सकता। किंतु आपके इस सिद्धांत के अनुसार भंगिन (हलालखीर) की भी जाति नीच है या नहीं? क्‍योंकि वह हमेशा बहुत ही निचले स्‍तर का काम करती है।

जोतीराव : तुमको मालूम होगा कि हम दोनों के बचपन में हमारा पाखाना साफ करने का काम हम दोनों की माताओं ने किया है, फिर इस आधार पर उनको हलालखीरनी या भंगिन कहा जा सकता है?

यशवंतराव : हम दोनों की माताओं ने हमारे बचपन में हमारा पाखाना साफ किया है, यह सच है। लेकिन उनको नीच कौन कह सकता है? अपनी माँ को नीच कहनेवाला इस धरती पर शायद ही कोई होगा, लेकिन मानव प्राणियों में क्या उनके गुणों के आधार पर जातिभेद नहीं ठहराया जा सकता? इसके बारे में आपका क्या कहना है?

जोतीराव : मानव प्राणियों में उनके गुणों के आधार पर जातिभेद ठहराया नहीं जा सकता, क्‍योंकि मनुष्‍यों में कई लोग ऐसे हैं जो अपने बच्चों को अच्‍छी शिक्षा देते हैं। और वे अपने-अपने स्‍वभाव के अनुसार तेज बुद्धि के होने के कारण होशियार और गुणवानों के चुनाव के मौके पर सफल होकर बड़े-बड़े पदों को सँभालने लायक होते हैं। और कुछ लोग अपने बाल-बच्चों को अच्‍छी शिक्षा देने के लिए बहुत ही मेहनत करते हैं लेकिन उन लड़कों के स्‍वभाव से जड़ बुद्धि होने की वजह से वे मूर्ख और निष्क्रिय होकर हर तरह के गलत-सलत काम करने के लिए मजबूर होते हैं। इसी आधार पर हम कह सकते हैं कि अच्‍छे गुणों या बुरे गुणों का संबंध हमेशा खानदान या वंश परंपरा से नहीं होता। सद्गुणी बृहस्‍पति जैसे लोगों के बच्‍चे भी स्‍वभाव से कभी-कभी सद्गुणी नहीं होते। इसी प्रकार धूर्त आर्य ब्राह्मणों के बच्‍चे हमेशा ही शंकराचार्य जैसे बुद्धिमान पैदा नहीं होते। इसी तरह अतिशूद्र चमार और भंगी के सद्गुणी बच्‍चे अवसर पा गए तो शंकराचार्य से भी बढ़कर बुद्धिमान और महामुनि नहीं होंगे, ऐसा कोई भी समझदार आदमी नहीं कह सकता।

यशवंतराव : इससे इस अभागे बलिस्‍थान में जगविरोधी दुष्‍ट भेदभाव पैदा होकर ब्राह्मण और महार-मातंग में जातिभेद कैसे पैदा हुआ, इसके बारे में आप ही यदि अच्‍छी तरह विश्‍लेषण करके बताएँ तो बहुत ही अच्‍छा होगा।

जोतीराव : सारे बलिस्‍थान के क्षत्रिय का मतलब क्षेत्र के मूल मालिक आस्तिक, पिशाच, राक्षस, अहीर, दास, भील, केवट, मातंग, महार, चमार, भंगी आदि ब्राह्मण लोग पहले के जमाने में शस्त्र से लड़ने में बडे कुशल थे, शुर और योद्धा थे। वे सुखी थे और सभी प्रकार के अपने सुखों का उचित उपयोग करते थे। उनमें से कुछ लोगों के राज्‍य काफी समृद्ध थे और उनके राज्‍यों में सोने की भरमार थी। ऐसे समय ईरानी लोग, मतलब, आर्य लोगों में तीर-कमान चलाने की नई युद्ध कला निकली। फिर उनमें से कुछ भुक्‍खड़, साहसी, दंगेखोर, धनलोभी, ईरानी ब्राह्मणों, ईरानी क्षत्रियों और ईरानी वैश्‍यों ने एक होकर इस बलिस्‍थान पर सोने के लिए कई बार आक्रमण किए। उन्‍होंने यहाँ के मल निवासी समझदार क्षेत्रवासियों को कई बार परेशान किया और यहाँ तक कि उस सोने के लालच से कई शूर योद्धाओं के बदन की खाल छीलने पर उतारू हो गए। इसके बारे में उनके छुपाकर के रखे हुए वेदरूपी तवारीख (इतिहास) में आधार मिलता है। सारांश, ईरानियों ने यहाँ के अधिकांश मूलनिवासी क्षेत्रवासियों को पाताल अर्थात् अमेरिका में भगा दिया। और बाकी के बचे हुए क्षेत्रवासिायों को घृणा से (क्षुद्र) शूद्रादि-अतिशूद्र, दस्‍यु (लुटेरे) जैसे हलके और निंदासूचक नाम दिए। उनको हर तरह से परेशान करके अपने पीढ़ी-दर-पीढ़ी के दास-अनुदास बनाए। अंत में उन सभी शूद्र जातियों का चौथा वर्ग बनाकर अपने को ईरानी ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्‍य इन तीनों वर्गों में विभाजन किया और बलिस्‍थानों के मूल के क्षत्रियों को, मतलब, शूद्रादि-अतिशूद्रों के पढ़ने-लिखने पर इन आर्यों ने प्रतिबंध लगा दिया। उसी प्रकार आर्यों के पहले के कई ऋषियों ने अपने ग्रंथों में भयंकर और सख्‍त नियम बना करके रखे, ताकि शूद्रादि-अतिशूद्र पढ़ना-लिखना न सीख सकें। लेकिन आजकल पत्‍थर-मिट्टी की दीवार पर सवार होकर भैंसे के मुँह से वेद मंत्रोचार करवानेवाले ज्ञानेश्‍वर और शिष्‍यों की बेइज्‍जत करके उनकी परीक्षा करने वाले रामदास और मतलबी आर्यभट्ट साधु-संतों ने पहले लिखे गए ऋषियों के ग्रंथों पर बड़े-बड़े नए ग्रंथ लिखे। उन ग्रंथों में उन्‍होंने शूद्रादि-अतिशूद्रों को दास, गुलाम बनाने के बारे में एक शब्‍द भी आने नहीं दिया। इन शूद्रादि-अतिशूद्रों को पत्‍थर, धातु की मूर्तियों पर श्रद्धा रखने की बातें सिखाकर उन्‍होंने उनको ब्रह्मजाल में उलझाकर रखा। उसी तरह धूर्त आर्यों ने मातंग, महारों के बारे में धर्म की भयंकर दीवारें खड़ी कर दीं और अवरोधों का प्रचार करके अपने पक्ष में अलम में लाया। इसीलिए उनमें आज तक अनिष्‍टकारी मतभेद जैसे का तैसा ही कायम है। इतना सब अघोर कृत्‍य करने के बाद भी आर्यों को चैन नहीं मिला तब उन्‍होंने हम सभी के निर्माता की 'जी हुजूरी' करके स्‍वयं ही भूदेव और अहंब्रह्म हो गए, और सभी शूद्रादि-अतिशूद्रों को ब्रह्मानंद के पीछे पागल बनाकर तालियाँ बजाने के लिए मजबूर कर दिया।

यशवंतराव : सभी छोटे-बडे ब्राह्मणों की यह मान्‍यता है कि सिर्फ आर्य ब्राह्मण इस बलिस्‍थान में हैं, क्‍योंकि आर्य ब्राह्मण परशुराम ने जब बलिस्‍थान के मूल निवासी क्षत्रियों को क्षत्रियत्‍व से भ्रष्‍ट किया, उस समय से उनके सभी अधिकार समाप्‍त हो गए और तीसरे वर्ग के जो आर्य वैश्‍य थे, वे अपने-आप पूरी तरह समाप्‍त हो गए। इसी वजह से आज इस बलिस्‍थान में सिर्फ ब्राह्मण और शूद्र ही बचे हैं, इसके बारे में आपको क्या कहना है?

जोतीराव : आर्य ब्राह्मणों की इस तरह की मान्‍यता सही है। क्‍योंकि ईरान से आई हुई आर्य टोलियों में से कुछ आर्य पशुयज्ञ करने में अच्‍छे होशियार थे। या धर्म के सभी कर्मकांड करने वालों को ब्राह्मण कहा जाता था। कुछ आर्य लड़ने-भिड़ने का, देखरेख का, पहरेदारी का काम करते थे, इसलिए उनको क्षत्रिय कहा जाता था, और कुछ आर्य भेड़-बकरियाँ पालने-पोसने और चराने का काम करते थे, उनको वैश्‍य कहा जाता था। इसी तरह इस बलिस्‍थान में रहने वाले सभी मूल निवासियों को क्षत्रिय कहा जाता था। पहले आर्य ब्राह्मण, आर्य क्षत्रिय और आर्य वैश्‍य-इस तरह तीन प्रकार (वर्ग) के लोगों ने इकट्ठा होकर बार-बार इस बलिस्‍थान पर हमले किए उसमें यहाँ के (बलिस्‍थान) के मूल निवासी पराजित हुए। उनका इस क्षेत्र का स्‍वामित्‍व समाप्‍त कर दिया गया। बाद में ये तीनों प्रकार के ईरानी लोग एक विचार से अपने-आपको ब्राह्मण कहने लगे। और वे इस बलिस्‍थान के पराजित क्षेत्रवासियों को घृणा से शूद्रादि-अतिशूद्र कहने लगे, क्‍योंकि ईरानी लोग अपने सैनिक को क्षत्रिय कहते थे, किंतु बलिस्‍थान के लोग अपनी सारी प्रजा को क्षत्रिय कहते थे। सारांश क्षत्रिय शब्‍द के मूल में दो अर्थ होते हैं। इसलिए धूर्त आर्यों को इस तरह का संदेह पैदा करना संभव हुआ।

यशवंतराव : इसी तरह आर्य धर्म की गीता में आर्य ब्राह्मणों के स्‍वाभाविक गुणों का वर्णन किया गया है। उसमें केवल अज्ञानी लोगों की आँखों में धूल झोंक-कर उनको फँसाने के लिए किस्‍से, कूट प्रश्‍न, पहेलियाँ, बुझौवल, रूपक आदि का संग्रह किया गया होगा। जैसे :

श्‍मोदमस्‍तप: शौचं-क्षांतिरार्जवमेव च।
ज्ञानविज्ञानमास्तिक्‍यं ब्रह्मकर्म सवभावजम् ।।

यदि ऐसे कहा जाए तो विजयी साहसी धूर्त आर्यभट्ट ब्राह्मणों ने पराजित किए हुए सभी लाचार शूद्रादि-अतिशूद्रों को आज तक सभी क्षेत्रों में और हर तरह से घटिया, ओछा मानकर उनसे हमेशा घृणा क्‍यों करते हैं और उनको सभी मानवीय अधिकारों का उपभोग करने देने में स्‍वयं अड़ंगे क्‍यों खड़े करते हैं? इससे यही सिद्ध होता है कि चंड आर्य ब्राह्मणों में क्षमा नाम के गुण का गंध भी नहीं है। खैर, हम सभी का निर्माणकर्ता दया का सागर और परम न्‍यायी होने के बावजूद उसको सर्वहारा शूद्रादि-अतिशूद्रों पर दया क्‍यों नहीं आई?

जोतीराव : हम सभी के दयालू निर्माणकर्ता ने कृपालु होकर धूर्त आर्यभट्ट ब्राह्मणों की दासता से दुर्बल, सर्वहारा हुए शूद्रादि-अतिशूद्रों को मुक्‍त करने के लिए हम सभी को एक मानकर जातिभेद का समूल नाश करने वाले मुसलिम लोगों को इस देश में भेजा। लेकिन मुसलिम लोगों ने उसके उस उद्देश्‍य को ताक पर रख दिया और स्‍वयं सभी प्रकार पकवान खाने-खिलाने में, मौज-मस्‍ती में, नाच-गाने में, ऐशों-आराम में उलझ गए। वे वैभव की मस्‍ती में इतने चूर हो गए कि उनको आसमान केवल दो उँगल दिखाई देने लगा। इसलिए निर्माणकर्ता को उनसे नफरत होने लगी। उसने इस बलिस्‍थान के मुसलिम लोगों को मुँह की खिलाई और उनका सारा वैभव तबाह कर दिया।

यशवंतराव : लेकिन इस देश के सभी चैनी मुसलिमों का वैभव समाप्‍त करके हम सभी का निर्माता क्‍यों शांति से बैठ गया?

जोतीराव : अरे, वह शांति से नहीं बैठा, उसने वास्‍तव में भयंकर जंगली अवस्‍था से अंग्रेज लोगों को जगाया। उसने उनमें वीरता आदि गुणों के बीज बोए और सर्वहारा शूद्रादि-अतिशूद्र लोगों को धूर्त ब्राह्मणों की दासता से मुक्‍त कराने के लिए उनको जानबूझ करके इस देश में भेजा। उनमें से कुछ सज्‍जन अंगेज लोग अपने धर्म के एक सत्‍पुरुष से सद्बोध के अनुसार शूद्रादि-अतिशूद्रों को आर्य ब्राह्मणों के नकली धर्म की दासता से मुक्‍त कराने के लिए दिलो-जान से प्रयास कर रहे हैं।

यशवंतराव : लेकिन अंग्रेज लोग अपने धर्म के जिस सत्‍पुरुष के सद्बोध से प्रेरित होकर सर्वहारा, दुर्बल शूद्रादि-अतिशूद्रों को धूर्त आर्य ब्राह्मणों की दासता से मुक्‍त कराने के लिए प्रयास कर रहे हैं, उस महापुरुष का नाम क्या है? उनके बारे में हम लोगों को कुछ जानकारी दें तो बहुत ही अच्‍छा हो।

जोतराव : उस महान सत्‍पुरुष का नाम 'यशवंत' अर्थात 'येशु' है और उसका सद्बोध इस प्रकार है कि, "तुम लोग अपने शत्रु से भी प्रेम करो और उसका कल्‍याण करो।"

यशवंतराव : इस 'यशवंत' या 'येशु' नामक महान सत्‍पुरुष के बोध को सम्‍मान देकर पाखंडी, चंड, धूर्त ब्राह्मणों ने शूद्रादि-अतिशूद्रों को गुलाम बनाने के संबंध में जो धर्म ग्रंथ लिखे हैं उनको दूर रखने की बजाय दुनिया में व्‍यर्थ बदमाशी करने से कैसा और क्या परिणाम होगा, इसके बारे में आप कुछ भविष्‍य कथन कर सकेंगे?

जोतीराव : शूद्रादि-अतिशूद्रों को गुलाम करने के संबंध में आर्य ब्राह्मणों के जितने भी धर्मग्रंथ, धर्मशास्‍त्र हैं, उनको उन्‍हें समूल नष्‍ट कर देना चाहिए, वरना ईश्‍वर परम न्‍यायी है, वह पूरी तरह समर्थ है, वही कुछ दिनों में शूद्रादि-अतिशूद्रों के हाथ से धूर्त ब्राह्मणों का और उनके पाखंडी ग्रंथों का निषेध करेगा, यही मेरा भविष्‍य कथन है।

यशवंतराव : वेदों के कर्ता किस प्रकार के भले आदमी होने चाहिए, इसके बारे में और उनकी अच्‍छाई के बारे में मुझे कुछ संदेह ही है, इसलिए वेदों के बारे में आपको कुछ जानकारी हो तो उसका यहाँ उल्‍लेख करें, अगर ऐसा किया गया तो शूद्रादि-अतिशूद्रों पर आपका बहुत बड़ा उपकार होगा।

जोतीराव : इस देश में बृहस्‍पति नाम का एक महाविद्वान, शोधक सज्‍जन आदमी हुआ है। उसने वेदों के विरोध में जो कुछ भी लिखा है, उसमें से कुछ अंश आपकी जानकारी के लिए यहाँ दे रहा हूँ। वह इस प्रकार है :

"त्रयो वेदस्‍य कर्तारो भंड धूर्त निशाचरा:।।"

यशवंतराव : तो इन सब बातों से यह स्‍पष्‍ट होता है कि आज के आर्यभट्ट ब्राह्मण अंग्रेजी के बड़े-बड़े विद्वान हुए हैं, और वे बड़े-बड़े सरकारी जिम्‍मेदार पदों पर अपना अधिकार जतलाने के लायक हुए हैं। लेकिन उनके पूर्वजों ने जिन सर्वहारा शूद्रादि-अतिशूद्रों के अनगिनत पीढ़ियों को खाक में मिला दिया और उनके जीवन में जो ब्रह्मजाल फैलाया, उनको समूल नष्‍ट करने के लिए आप कुछ प्रयास क्‍यों नहीं कर रहे हैं? या सभी के निर्माणकर्ता अड़ंगा लगानेवाले इन धूर्त ब्राह्मणों की अकल ठिकाने लगाकर और इससे संबंधित उनकी आँखों का परदा हटा करके उनको दोषमुक्‍त करके सही रास्‍ते पर क्‍यों नहीं लाते?

जोतीराव : सारे सृष्टिक्रम से यह सिद्ध होता है कि आर्यों के ऋषिवर्य पूर्वजों द्वारा किए हुए नीच कर्मों के फल उनको नहीं भोगने पड़े, परंतु उनके दुष्‍टकर्मों के अनुमान के अनुसार उनकी संतानों को तो निश्चित रूप से भोगना ही पड़ेगा। इसीलिए आज के विद्वान आर्य ब्राह्मणों की इस बारे में आँखें खुलेंगी या वे होश में आयेंगे ऐसा नहीं लगता, बल्कि इसके लिए वे अपने ऊपर आनेवाले खतरों को टालने के लिए धर्म और राजनीति से संबंधित कई तरह के पाखंडी समाजों की स्‍थापना करेंगे। वे लोग अज्ञानी लोगों और सरकार की आँखों में धूल झोंककर अपने पापों को छुपाने के लिए तरह-तरह के दाँव पेच लड़ाएँगे, लेकिन उनके ये नकली दाँवपेच अंत में बेअसर सिद्ध होंगे, इसमें कोई संदेह नहीं। हम सभी का निर्माणकर्ता ऐसा नहीं है। वह आर्य ब्राह्मणों के काल्‍पनिक काले कृष्‍ण की तरह दूध-मक्‍खन की चोरी-चपाटी करके सोलह-सहस्र एक सौ आठ नारियों के साथ-साथ ग्‍वालों की बहकाई राधा के संग विषयासक्‍त होकर उनके बिस्‍तर पर लुढ़कने वाला नहीं है।


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