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कहाँ है वह चेहरे का चेहरा?
जरूरी है यह जानना
ताकि दूसरों के बीच
हम पहचान सकें अपना चेहरा।
अक्सर लोग यह नहीं जानते
कि कैसा है उनका अपना 'मैं'
हर कोई अपने आपका
बना फिरता है वकील।
कंजूस सोचता है कि वह उदार है
बुद्धिमान समझता है अपने को मूर्ख।
कभी ईश्वर कहता है : मैं कीड़ा हूँ
और कीड़ा कहता है : ईश्वर हूँ मैं।
गर्व के साथ बाहर निकलता है कीड़ा,
डरपोक चिल्लाने लगता है - मैं बहादुर हूँ,
सिर्फ आजाद इंसान कहता है अपने बारे में :
मैं तो गुलाम हूँ।
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