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मई के उस महीने में, मेरे उस महीने में
इतनी सहजता थी मेरे भीतर,
धरती के ऊपर चारों ओर फैलता
आकर्षित कर रहा था मुझे उड़ता मौसम।
मैं इतनी उदार थी, इतनी अधिक उदार
गीतों के सुखद आस्वादन में,
गंभीरता को ताक पर रख भड़कीले अंदाज में
मैंने पाँव भिगो डाले हवा में।
पर ईश्वर की कृपा से मेरी दृष्टि को
प्राप्त हुई ऐसी धार और इतनी कठोरता,
हर आह और हर उड़ान की
मुझे चुकानी पड़ती है भारी कीमत।
मैं भी जुड़ी हूँ दिन के रहस्यों से,
उसकी सब प्रक्रियाएँ मालूम हैं मुझे,
चारों ओर देखती हूँ मुड़-मुड़ कर
बूढ़े यहूदी की व्यंग्यपूर्ण मुस्कान से।
दिखाई देते हैं मुझे काँव काँव करते कव्वे
काली बर्फ पर लटके हुए,
दिखाई देती है ऊबी हुई औरतें
बुनने के लिए कुछ झुकी हुई।
क्यारियों पर से लापरवाही से चलता
भाग रहा है एक पराया बच्चा,
पिपिहरी बजाते हुए वह
उल्लंघन कर रहा है उनकी व्यवस्था का।
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