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कविता

जी रही थी मैं

बेल्‍ला अख्‍मादूलिना


जी रही थी मैं अमिट कलंक में
फिर भी मन मेरा निर्मल रहा
एक महासागर था और वह मैं थी
और कोई नहीं

ओ तुम डरे हुए
शायद ही स्‍वयं तैर पाते तुम
यह तो मैं कोमल-सुकुमार लहर की तरह
तुमको निकाल ले आयी किनारे तक

दया कर बैठी हूँ मैं अपने साथ
कैसे भूल गयी मैं विपत्ति के उन क्षणों में
नीली मछली बन सकते थे
मेरे बैंजनी जल में तुम

मेरे साथ सिससकते
विलाप कर रहे हैं समुद्र
ओ मेरे अभागे शिशु
क्षमा करना मुझे तुम!

 


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