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पंद्रह लड़के, संभव है, इससे भी अधिक
या संभव हैं पंद्रह से भी कम
सहमी-सहमी आवाज में
कह रहे थे मुझसे :
''आओ, सिनेमा चलें या चलें ललितकला संग्रहालय''
मैंने उन्हें लगभग ऐसा उत्तर दिया :
''वक्त नहीं है जरा भी।''
पंद्रह लड़कों ने भेंट किये मुझे बर्फ के फूल।
पंद्रह लड़के टूटी आवाज में
कह रहे थे मुझसे :
''कभी न होगा ऐसा जब प्रेम न करूँ मैं तुझसे।''
मैंने उन्हें लगभग ऐसा उत्तर दिया :
''देखेंगे।''
पंद्रहों लड़के अब जी रहे हैं अमन-चैन से।
फूल भेंट करने, पत्र लिखने और निराश होने का
निभा लिया है कर्तव्य उन्होंने।
उन्हें प्रेम करती है लड़कियाँ
कुछ मुझसे कहीं अधिक सुंदर
कुछ मुझसे कम।
पंद्रह लड़के अत्याधिक खुलेपन से
और कभी-कभी कुटिल प्रसन्नता से
मिलने पर अभिवादन करते हैं मेरा,
अभिवादन करते हैं मेरे भीतर
अपनी मुक्ति, स्वस्थ निद्रा और भोजन का।
व्यर्थ ही चले आ रहे हो तुम,
ओ अंतिम लड़के!
तेरे भेंट किये फूल को
डाल दूँगी मैं गिलास में,
जड़ों और तनों को ढक देंगे रुपहले बुलबुले'''
देखना, तुम भी बंद कर दोगे प्रेम करना मुझे
अपनी भावनाओं पर काबू रखकर
रोब झाड़ने लगोगे मुझ पर
जैसे मुझे भी काबू कर लिया हो तुमने,
लेकिन मैं चल दूँगी अपनी राह'''
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