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कविता

निजता के पक्ष में

यून्‍ना मोरित्‍स

अनुवाद - वरयाम सिंह


मुझे नहीं चाहिए दूसरे मेजों की धूल
नहीं चाहिए आँसू पराये आसमानों के,
अस्‍वीकार करती हूँ मैं उन्‍हें पूरी तरह।
कोने में खड़ी मेरी ओर देखती हैं
मेरी संवेदनाओं की आत्‍मा,
आत्‍मा मेरे शब्‍दों की, आत्‍मा मेरे व्‍यवहार की।
उसके बिना मैं जी न पाती एक भी दिन अधिक।
बचपन से चला आ रहा है यह
दूध के साथ प्रवेश किया उसने
और अटकी रह गयी गले में।
ठोंक दिया गया है उसे कील की तरह हथौड़े से,
उसे उड़ेला गया मेरे भीतर जैसे समुद्र में पानी।
मृत्‍यु के बाद ही निकलेगी वह
जब अलग होना पड़ेगा कापी से।
उड़ जाने से पहले, ओ आत्‍मा! बताना -
कौन है तू? सीपियों की चरमराहट?
सोन चिड़िया का मधुर गीत?
या लाल वेणी की तरह गुँथी हुई धूपचंदन की बेल।
साँस लूँगी मैं इस दुनिया में।
उड़ जाऊँगी एक और एक मात्र पंख के सहारे!
मुझे प्राप्‍त है पूरे-का-पूरा शिशिर
हिमनद के साथ बिताने को अपना सारा समय।

अँधेरी झीलों के बीच यह मुहल्‍ला-मेरा है
उद्यान की बाड़ के बीच
लोहे के फूल लिये यह श्‍याम-श्‍वेत वस्‍त्र मेरा है।
बाल्टिक सागर का सुनहला नमक-मेरा है,
मेरा है-समुद्र का दलदली तट,
अवसाद के साथ का यह भीषण आक्रमण भी-मेरा है
मेरा है यह सबसे ताजा दर्द
जिसे मैंने सहन किया है प्‍लेग की तरह।
और इस सबके बाद -
आरंभ होता है बर्फ की तरह सफेद आजादी का पीना।
ओ मेरी आत्‍मा! अपनी आँखों से देख -
कितना होना चाहिए मेरे पास मेरा अपना
कि अहसास बना रहे मुझे अपने वजूद का!

 


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