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कविता

मेरी देह और दुनिया के बीच

मस्सेर येनलिए

अनुवाद - रति सक्सेना


मेरे बालों में, हालाँकि ये बढ़ते जा रहे हैं
इनकी जड़ों में मैं हूँ, तथापि
धरती की तरह मैं
दुनिया के केंद्र में कोमल हूँ

मैं अपनी यादों को एक तंबू में रखती हूँ
मेरी आँखे गायब होती जा रही हैं
जैसे कि मैं एक बीज की तरह बाहर जा रही हूँ
इसलिए मैं दुपहरी के चेहरे पर
घोड़े की नाल का पदचिह्न हूँ

मुझे अपनी देह और दुनिया के बीच
दूरी रखनी चाहिए

 


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