hindisamay head


अ+ अ-

आत्मकथा

सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा
चौथा भाग

मोहनदास करमचंद गांधी

अनुवाद - काशीनाथ त्रिवेदी

अनुक्रम 35. भले-बुरे का मिश्रण पीछे     आगे

टॉल्सटॉय आश्रम में मि. केलनबैक ने मेरे सामने एक प्रश्न खड़ा किया। उनके उठाने से पहले मैंने उस प्रश्न पर विचार नहीं किया था।

आश्रम के कुछ लड़के ऊधमी और दुष्ट स्वभाव के थे। कुछ आवारा थे। उन्ही के साथ मेरे तीन लड़के थे। उस समय पले हुए दूसरे भी बालक थे। लेकिन मि. केलनबैक का ध्यान तो इस ओर ही था कि वे आवारा युवक और मेरे लड़के एकसाथ कैसे रह सकते थे। एक दिन वे बोल उठे, 'आपका यह तरीका मुझे जरा भी नहीं जँचता। इन लड़कों के साथ आप अपने लड़कों को रखे, तो उसका एक ही परिणाम आ सकता है। उन्हें इन आवारा लड़कों की छूत लगेगी। इससे वे बिगड़ेंगे नहीं तो और क्या होगा? '

मुझे इस समय तो याद नहीं है कि क्षणभर सोच में पड़ा था या नहीं, पर अपना जवाब मुझे याद है। मैंने कहा था, 'अपने लड़कों और इन आवारा लड़कों के बीच मैं भेद कैसे कर सकता हूँ? इस समय तो मैं दोनों के लिए समान रूप से जिम्मेदार हूँ। ये नौजवान मेरे बुलाए यहाँ आए है। यदि मैं इन्हें पैसे दे दूँ, तो आज ही ये जोहानिस्बर्ग जाकर वहाँ पहले की तरह फिर रहने लग जाएँगे। यदि ये और इनके माता पिता यह मानते हो कि यहाँ आकर इन्होंने मुझ पर मेहरबानी की है, तो इसमें आश्चर्य नहीं। यहाँ आने से इन्हें कष्ट उठाना पड़ रहा है, यह तो आप और मैं दोनों देख रहे है। पर मेरा धर्म स्पष्ट है। मुझे इन्हे यहीं रखना चाहिए। अतएव मेरे लड़के भी इनके साथ रहेंगे। इसके सिवा, क्या मैं आज से अपने लड़कों को यह भेदभाव सिखाऊँ कि वे दूसरे कुछ लड़कों की अपेक्षा ऊँचे है? उनके दिमाग में इस प्रकार के विचार को ठूँसना ही उन्हें गलते रास्ते ले जाने जैसा है। आज की स्थिति में रहने से वे गढ़े जाएँगे, अपने आप सारासार की परीक्षा करने लगेंगे। हम यह क्यों न माने कि यदि मेरे लड़कों में सचमुच कोई गुण है, तो उल्टे उन्हीं की छूत उनके साथियों को लगेगी? सो कुछ भी हो, पर मुझे तो उन्हें यहीं रखना होगा। और यदि ऐसा करने में कोई खतरा भी हो, तो उसे उठाना होगा।'

मि. केलनबैक ने सिर हिलाया।

यह नहीं कहा जा सकता कि इस प्रयोग का परिणाम बुरा निकला। मैं नहीं मानता कि उससे मेरे लड़कों को कोई नुकसान हुआ। उल्टे, मैं यह देख सका कि उन्हें लाभ हुआ। उनमें बड़प्पन का कोई अंश रहा हो, तो वह पूरी तरह निकल गया। वे सबके साथ घुलना-मिलना सीखे। उनकी कसौटी हुई।

इस और ऐसे दूसरे अनुभवों पर से मेरा यह विचार बना है कि माता-पिता की उचित देखरेख हो, तो भले और बुरे लड़कों के साथ रहने और पढ़ने से भलों की कोई हानि नहीं होती। ऐसा कोई नियम तो है ही नहीं कि अपने लड़कों को तिजोरी में बंद रखने से वे शुद्ध रहते है और बाहर निकलने से भ्रष्ट हो जाते है। हाँ, यह सच है कि जहाँ अनेक प्रकार के बालक और बालिकाएँ एकसाथ रहती और पढती है, वहाँ माता-पिता की और शिक्षकों की कसौटी होती है, उन्हें सावधान रहना पड़ता है।


>>पीछे>> >>आगे>>