एक ओर समाज सेवा का वह काम हो रहा था, जिसका वर्णन मैंने पिछले प्रकरणों में किया है और दूसरी ओर लोगों के दुःखों की कहानियाँ लिखने का काम उत्तरोत्तर बढ़ते पैमाने पर हो रहा था। हजारों लोगों की कहानियाँ लिखी गई। उनका कोई असर न हो, यह कैसी संभव था? जैसे जैसे मेरे पड़ाव पर लोगों की आमद रफ्त बढ़ती गई वैसे वैसे निलहों का क्रोध बढ़ता गया, उनकी ओर सो मेरी जाँच को बंद कराने के प्रयत्न बढ़ते गए।
एक दिन मुझे बिहार सरकार का पत्र मिला। उसका आशय इस प्रकार था, 'आपकी जाँच काफी लंबे समय तक चल चुकी है और अब आपको उसे बंद करके बिहार छोड़ देना चाहिए।' पत्र विनय पूर्वक लिखा गया था, पर उसका अर्थ स्पष्ट था। मैंने लिखा कि जाँच का काम तो अभी देर तक चलेगा और समाप्त होने पर भी जब तक लोगों के दु:ख दूर न होगे, मेरा इरादा बिहार छोड़ने कर जाने का नहीं है। मेरी जाँच बंद कराने के लिए सरकार के पास एक समुचित उपाय यही था कि वह लोगों की शिकायतों को सच मान कर उन्हें दूर करे, अथवा शिकायतों को ध्यान में लेकर अपनी जाँच समिति नियुक्त करे। गवर्नर सर एडवर्ड गेट में मुझे बुलाया और कहा कि वे स्वयं जाँच समिति नियुक्त करना चाहते है। उन्होंने मुझे उसका सदस्य बनने के लिए आमंत्रित किया। समिति के दूसरे नाम देखने के बाद मैंने साथियों से सलाह की और इस शर्त के साथ सदस्य बनना कबूल किया कि मुझे अपने साथियों से सलाहमशविरा करने की स्वतंत्रता रहनी चाहिए और सरकार को समझ लेना चाहिए कि सदस्य बन जाने से मैं हिमायत करना छोड़ न दूँगा, तथा जाँच पूरी हो जाने पर यदि मुझे संतोष न हुआ तो किसानों का मार्गदर्शन करने की अपनी स्वतंत्रता को मैं हाथ से जाने न दूँगा।
सर एडवर्ड गेट ने इस शर्तों को उचित मानकर इन्हे मंजूर किया। स्व. सर फ्रेंक स्लाई समिति के अध्यक्ष नियुक्त किए गए थे। जाँच समिति ने किसानों की सारी शिकायतों को सही ठहराया और निलहे गोरों ने उनसे जो रकम अनुचित रीति से वसूल की थी, उसका कुछ अंश लौटाने और 'तीन कठिया' के कानून को रद्द करने की सिफारीश की।
इन रिपोर्ट के सांगोपांग तैयार होने और अंत में कानून के पास होने में सर एडवर्ड गेट का बहुत बड़ा हाथ था। यदि वे दृढ़ न रहे होते अथवा उन्होंने अपनी कुशलता का पूरा उपयोग न किया होता, तो जो सर्वसम्मत रिपोर्ट तैयार हो सकी वह न हो पाती और आखिर में जो कानून पास हुआ वह भी न हो पाता। निलहों की सत्ता बहुत प्रबल थी। रिपोर्ट पेश हो जाने पर भी उनमें से कुछ ने बिल का कड़ा विरोध किया था। पर सर एडवर्ड गेट अंत कर दृढ़ रहे और उन्होंने समिति की सिफारिशों पर पूरा पूरा अमल किया। इस प्रकार सौ साल से चले आनेवाले 'तीन कठिया' के कानून के रद्द होते ही निलहे गोरों का राज्य का अस्त हुआ, जनता का जो समुदाय बराबर दबा ही रहता था उसे अपनी शक्ति का कुछ भान हुआ और लोगों का यह वहम दूर हुआ कि नील का दाग धोए धुल ही नहीं सकता।
मैं तो चाहता था कि चंपारन में शुरू किए गए रचनात्मक काम को जारी रखकर लोगों में कुछ वर्षों तक काम करूँ, अधिक पाठशालाएँ खोलूँ और अधिक गाँवों में प्रवेश करूँ। पर ईश्वर ने मेरे मनोरश प्रायः पूरे होने ही नहीं दिए। मैंने सोचा कुछ था और दैव मुझे घसीट कर ले गया दूसरे ही काम में।