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कविता

घास

ताद्यूश रोजेविच

अनुवाद - अशोक वाजपेयी


मैं उग आती हूँ
दीवारों के कोनों पर
जहाँ वे जुड़ती हैं
वहाँ जहाँ वे मिलती हैं
वहाँ जहाँ वे धनुषाकार होती हैं

वहाँ मैं रोप देती हूँ
एक अंधा बीज
हवा में बिखराया हुआ

धीरज से फैल जाती हूँ
खामोशी की दरारों में
मैं प्रतीक्षा करती हूँ
दीवारों के धराशायी होने
और धरती पर लौटने की

तब मैं ढाँप लूँगी
नाम और चेहरे।

 


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