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कल रात
लेटे हुए सोच रही थी
अपनी आत्मा का घर कैसे खोजूँ
जल जहाँ प्यासा न हो
और रोटी का कौर पत्थर न हो
मेरे मन में ये बात आई
और मुझे नहीं लगता मैं गलत हूँ
कि कोई भी,
हाँ कोई भी
गुजर नहीं कर सकता है यहाँ अकेले।
अकेले, निपट अकेले
बिना किसी संगी साथी के
अकेले यहाँ कोई नहीं रह सकता है।
कुछ करोड़पति हैं
इतने पैसे वाले जिसे वे खर्च नहीं कर सकते
उनकी बीवियाँ प्रेतानियों सी भटकती हैं
बच्चे उदास गाने गाते हैं
महँगे डॉक्टर मिले हैं उन्हें
अपने पत्थरदिल के इलाज करने के लिए।
फिर भी
कोई भी
कोई भी नहीं
गुजर कर सकता है यहाँ अकेले।
अकेले, निपट अकेले
बिना किसी संगी साथी के
अकेले यहाँ कोई नहीं रह सकता है।
अब अगर ध्यान से सुनो
बताती हूँ तुम्हें जो मुझे पता है
तूफानी बादल घुमड़ रहे हैं
हवा बहने वाली है
मानवजाति पीड़ित है
और मैं कराह सुन सकती हूँ,
क्योंकि कोई भी,
कोई भी नहीं
गुजर कर सकता है यहाँ अकेले।
अकेले, निपट अकेले
बिना किसी संगी साथी के
अकेले यहाँ कोई नहीं रह सकता है।
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