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कविता

पवित्र आत्माा

मार्तिन हरिदत्त लछमन श्रीनिवासी

अनुवाद - पुष्पिता अवस्थी


साँस लेकर
जीती रहो वैसे ही
जैसे अब तक जीती रही

माँ जानती है जैसा तुम्‍हें
जैसे पिता मैं तुम्‍हारा-जानता हूँ तुम्‍हें
और दिल में हमेशा पकड़ रखी है तुमने
मेरी विशेष प्‍यारी शुभकामनाएँ

और वर्षों बाद तुमसे
मेल-मुलाकात तो होगी
पता नहीं शायद-यादों और सोच में
इस पर आशा करते हैं
और विश्‍वास रखते हैं

कि आज की तरह ही देखेंगे
तुम्‍हारी दोनों आँखों में
पिता परमेश्‍वर को
पवित्र आत्‍मा के साथ

 


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