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कविता

वृक्ष की टहनी पर

मार्तिन हरिदत्त लछमन श्रीनिवासी

अनुवाद - पुष्पिता अवस्थी


असल में
विश्‍व मेरा घर है
इसलिए मैं
सबके बीच जीता हूँ
कई देशों के मौसम का
स्‍वाद लेकर
पूरी पृथ्‍वी के ऊपर
मेरी यात्रा की
वापसी होती है
एक चिड़िया की तरह
वृक्ष की टहनी पर
संध्या बेला में

प्रतिबिंबन के लिए
दुल्‍हनिया परिधान में
धीरे-धीरे मैं
यात्रा की कड़ियों के करीब
होता हूँ
तब तक
मेरे भीतर की रोशनी
बची-बनी रहती है।

 


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