hindisamay head


अ+ अ-

कविता

वापसी

मार्तिन हरिदत्त लछमन श्रीनिवासी

अनुवाद - पुष्पिता अवस्थी


मैं डरता हूँ
कहीं मुझसे

और अधिक देर न हो जाए
और वापसी में लौटने पर
टूटा हुआ मौन
दोपहर में चोट करने लगे
घास देखेगी
अपना उगना
और अचानक बढ़ना
पुन: छँटने से पहले
समुद्र तटी देशों में होने वाले
और खासकर ग्रेवयार्ड में लगाए जाने वाले
बहुत ऊँचे 'किंग पार्म' पेड़ की
ऊँचाई के नीचे सिमट्री में
सुनी गई पादरी के गीतों की धुन के बीच
हो जैसे वह आवाज

मैं डरता हूँ
कहीं मुझसे और अधिक
देर न हो जाए दोस्‍त !
मौत जो मेरे पीछे
पीछा कर रही है
कहीं, मेरे पास आकर
मुझे दु:ख के आश्‍चर्य में
न फँसा दे।

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में मार्तिन हरिदत्त लछमन श्रीनिवासी की रचनाएँ