hindisamay head


अ+ अ-

कविता

नाक की लौंग

मार्तिन हरिदत्त लछमन श्रीनिवासी

अनुवाद - पुष्पिता अवस्थी


कविता के साथ यह शहर
रोशनी में आता है।
मैं तुमसे वह देखता हूँ
जो मुझसे अनजाना और अनभिज्ञ है।
गहराई से प्‍यारा और नाजुक है
वासंती हवा के साथ टहलती है गोरी लड़की
हम दोनों शब्‍द और आँख के साथ बैठते हैं अक्‍सर
मैं तुम्‍हारे कदमों की लय को गिनता हूँ
और समुद्री चिड़िया - 'स्‍नेपी' के कदमों की
रोशनी से तुलना करता हूँ
नाइकेरी के समुद्र-सबाना रेत तट पर

आज और कल के किनारे
तुम भविष्‍य के लिए टहलते हो हिम्‍मत से
तुम्‍हारे हाथ में बहुत समय से हँसुआ नहीं है
और नहीं मचैते और कुबरी

लेकिन आज सुबह तुम्‍हारे हाथ के साथ
क्रांतिकारी लाल विशाल हृदय के साथ
गहरे काले लाल रंग के झोले में
अद्भूत चमक का सौंदर्य मिला
सुबह का सूरज जिसकी चम‍क से ईर्ष्‍यादग्‍ध था
जो तुम्‍हारी गोरी चमकीली नाक की लौंग
में दमक रहा था।

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में मार्तिन हरिदत्त लछमन श्रीनिवासी की रचनाएँ