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दोहा
सच्चे नर जग में वही करैं बचन प्रतिपाल।
कहि कर बचन जो मेंटई नरक जाय तत्काल।। 1 ।।
मित्र बंधु सुत नारि धन नहिं आवै कुछ काम।
जो ईमान सच्चा रहे मिलै स्वर्ग महं धाम।। 2 ।।
सत्य सत्य सब कोई कहै सत्य गह्यो-नहिं कोय।
जो सत्वादी सत गह्यो वही देवता होय।। 3 ।।
अपने हित के कारने परधन लेवैं मार।
जन्मांतर सुख होय नहिं मुए नरक की धार।। 4 ।।
नेह तुडा़वहिं दुष्टजन सज्जन तेल करेय।
घाम सुखावै नीर सर फेर जलद भर देय।। 5 ।।
पालहु निज प्रिय धर्म तुम जो तुव पुरखन केर।
कितनेहु रिपु घालै छुरी गर्दन लीजौ फेर।। 6 ।।
नहिं मनियो साँची कबहुँ बक ध्यानी की बात।
धीरा पैर उठाय कर करिहै तुम पर घात।। 7 ।।
नहिं भलाई कर सकैं छलि कपटी ठग चोर।
मीठे बचन सुनाय कर सब धन लेवैं छोर।। 8 ।।
गढ़ गढ़ मीठी बात कहैं अपने हितहिं बनाय।
कपटी मित्र के चिन्ह यहि खटमल बनकर खाय।। 9 ।।
रहियो जग में सजग तुम चला कपट व्यवहार।
धर्म कर्म को छोड़कर लूटैं सरे बाजार।। 10 ।।
हिलियो मिलियो प्रेम से छोड़ कपट अभिमान।
रक्षा करिहैं ईश नित सत्य कथन रहमान।। 11 ।।
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