सूम लक्ष्मी पाय कर नहीं भजैं हरिनाम। उनका ईश्वर द्रव्य है नहीं दान से काम।। नहीं दान से काम पेट भर अन्न न खावैं। करैं दान कहिं भूल कर घर बैठे पछितावैं।। कहैं रहमान सूम धन खैहैं शैतान मचावैं धूम। द्यूत सुरा अरु बुरे कर्म में सब धन नाशै सूम।।
हिंदी समय में मुंशी रहमान खान की रचनाएँ