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कविता

घमंड

मुंशी रहमान खान


अति घमंड नाशै पुरुष चारेहु युग परमान।
मद आते जर्मन रहे कियो यूरुप संग्राम।।
कियो यूरुप संग्राम ग्राम पुर देश जराये।
मिली न एकौ इंच जिमीं धन प्राण गँवाये।।
कियो नाश सिंहासन अपना रह गए मलते हाथ मंद मति।
कहैं रहमान गुमान न करते रहते धन जन पूर सुखी अति।।

 


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हिंदी समय में मुंशी रहमान खान की रचनाएँ