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कविता

इस्लामी कुंडलियाँ-मुस्लिम

मुंशी रहमान खान


मुस्लिम वही सराहिए मानहिं खुदा रसूल।
दें ज़कात खैरात बहु पाँच में रहें मशगूल।।
पाँच में रहें मशगूल हज काबह कर आवैं।
चलैं कुरान हदीस मग भूलेन राह बतावैं।।
कहैं रहमान सदा हित करहिं बेवा रंक यतीमम।
रोज हशर में जिन्‍नत पैहैं वही हकीकी मुस्लिम।।

 


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