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कविता

वसंत का अनुष्ठान

सीमस हीनी

अनुवाद - सरिता शर्मा


सर्दियों ने अपनी मुट्ठी कस ली और उसे पंप में फँसा दिया
गोताखोर ने ढेर को बर्फ से ढक दिया
अपने गले में, बर्फ ने गलाया खुद को लोहे पर
हत्था एक कोण पर ठप्प हो गया
फिर गेहूँ के तिनकों को मरोड़कर बुनी रस्सियाँ
उन्हें जोर से कसा तने और थूथन के चारों ओर,
और फिर आग सुलगाई जिसने पंप में लौ पहुँचाई
वह ठंडा हुआ हमने उसकी कुंडी को उठाया
पंप प्रवेश द्वार गीला था और भेद्य था

 


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