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कविता

यह जीवन और जीना है जगकर

अमरसिंह रमण


यह जीवन और जीना है जगकर
यह जीवन और जीना है जगकर
सुंदर एक कल्‍पना

ना जग अपना, ना संग अपना
यह है सिर्फ, सपनों का सपना
जगत में नहीं कोई है अपना

बाप-भाई और बेटा-बेटी
सब कर्मों की खेती है,
भूला-सा प्राणी इसमें डोले
अपना-अपना कहता बोले
ना यह अपना, ना वह अपना
यह है एक सपनों का सपना
जगत में कोई नहीं है अपना

खेती-बारी माल खजाना
जीने का है एक बहाना
जो कहता है अपना-अपना
वह भूला है जीवन-सपना
ना यह अपना, ना वह सपना
यह है एक सपनों का सपना
जगत में कोई नहीं है अपना

 


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