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कविता

8. आठ

त्रिन सूमेत्स

अनुवाद - राजलक्ष्मी


मैं खो गई हूँ
हर रास्ता उसी मंजिल तक पहुँचता है
स्वर्ग के रास्ते, जमे हुए सितारे के परे वो दरवाजा
दूर है? या समीप
ये सब निर्भर है गति पर
घनत्व पर
आयतन पर
असंभव लगता है खो जाना
हर रास्ता सही है
हर अहसास सच है
हर गलती सही है
उनकी हमे जरूरत है
अन्यथा ये सब नही घटता


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