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कविता

परमानंद

सर्जिओ इन्फेंते

अनुवाद - रति सक्सेना


पेटुओं की तरह नहीं
पुरातन रसज्ञों की भाँति
हमे लिखने दो भविष्य।

यह जानते हुए भी कि वह होगा
आखिरी दिन
हमें अंतिम नीरसता की करने दो प्रतीक्षा।

भय उपजाती घुमंतू उड़ान वाला लाल घुन
पंखों में लिए आग
क्रमशः बढ़ रहा है,
सुरक्षित घोंसले और बोधि वृक्ष से दूर
सिमर्ग* से भेंटने की त्वरा से बचो,
चिंता करो कि बचा रहे अपना अधिशेष।

मातृदेवी के सहयोग से
अटल के प्रतिरोध में निहित है सुख और आनंद।

आपनी आस्तीनों में छुपाकर पाँसे
भव्यता को निगीर्ण कर
कल हमें मिलेंगे केवल
धूम्राछिन्न कबाड़ के पर्वत।

मत खाओ विश्व को बड़े-बड़े ग्रासों में
रोक लो एक बार में भक्षण की चाह,
क्रमशः करो इसका सेवन
चम्मच दर चम्मच
अपूर्व-आनंदमय दही-चीनी की तरह

*सिमर्ग - पुराकथाओं में वर्णित आधे श्वान और आधे पक्षी के शरीर वाला एक जीव

 


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