राजा बाउर बिरह बियोगी । चेला सहस तीस सँग जोगी॥
पदमावति के दरसन आसा । दँडवत कीन्ह मँडप चहुँ पासा॥
पुरुष बार होइ कै सिर नावा । नावत सीस देव पहँ आवा॥
नमो नमो नारायन देवा । का मैं जोग करौं तोरि सेवा॥
तूँ दयाल सबके उपराहीं । सेवा केरि आस तोहि नाहीं॥
ना मोहि गुन, न जीभ रस बाता । तूँ दयाल, गुन निरगुन दाता॥
पुरवहु मोरि दरस कै आसा । हौं मारग जोवौं धारि साँसा॥
तेहि विधिा विनै न जानौं, जेहि विधिा अस्तुति तोरि।
करहु सुदिस्टि मोहिं पर, हींछा पूजै मोरि॥1॥
कै अस्तुति जब बहुत मनावा । सबद अकूत मँडप महँ आवा॥
मानुष पेम भयउ बैकुंठी । नाहिं त काह, छार भरि मूठी॥
पेमहिं माँह बिरह रस रसा । मैन के घर मधाु अमृत बसा॥
निसत धााइ जौं मरै त काहा । सत जौं करै बैठि तेहि लाहा॥
एक बार जौं मन देइ सेवा । सेवहि फल प्रसन्न होइ सेवा॥
सुनि कै सबद मँडप झनकारा । बैठा आइ पुरुष के बारा॥
पिंड चढ़ाइ छार जति ऑंटी । माटी भयउ अंत जो माटी॥
माटी मोल न किछु लहै, औ माटी सब मोल।
दिस्टि जौं माटी सौं करे, माटी होइ अमोल॥2॥
बैठ सिंघछाला होइ तपा । 'पदमावति पदमावति' जपा॥
दीठि समाधिा ओही सौं लागी । जेहि दरसन कारन बैरागी॥
किंगरी गहे बजावै झूरै । भोर साँझ सिंगी निति पूरै॥
कंथा जरै, आगि जनु लाई । विरह धाँधाार जरत न बुझाई॥
नैन रात निसि मारग जागे । चढ़े चकोर जानि ससि लागे॥
कुंडल गहे सीस भुइँ लावा । पाँवरि होउँ जहाँ ओहि पावा॥
जटा छोरि कै बार बहारौं । जेहि पथ आव सीस तहँ वारौं॥
चारिहु चक्र फिरौं मैं, डँड न रहौं थिर मार।
होइ कै भसम पौन संग, (धाावौं) जहाँ परान अधाार॥3॥
(1) निरगुन=बिना गुणवाले का।
(2) अकूत=आपसे आप, अकस्मात्। मैन=मोम। लाह=लाभ। पिंड=शरीर। जेति=जितनी। ऑंटी=ऍंटी, हाथ में समाई। माटी सौ दिस्टि करै=सब कुछ मिट्टी समझे या शरीर मिट्टी में मिलाए। माटी=शरीर।
(3) तपा=तपस्वी। झूरै=व्यर्थ। धाँधाार=लपट। रात=लाल। पाँवरि=जूती। पावा=पैर। बहारौं=झाड़ू लगाऊँ। थिर मार=स्थिर होकर।