चितउर आइ नियर भा राजा । बहुरा जीति इंद्र अस गाजा॥
बाजन बाजहिं होइ ऍंदोरा । आवहिं बहल हस्ति औ घोरा॥
पदमावति चंडोल बईठी । पुनि गइ उलटि सरग सौं दीठी॥
यह मन ऐंठा रहै न सूझा । बिपति न सँवरै सँपति अरूझा॥
सहस बरिस दुख सहै जो कोई । घरी एक सुख बिसरै सोई॥
जोगी इहै जानि मन मारा । तौहुँ न यह मन मरै अपारा॥
रहा न बाँधाा बाँधाा जेही । तेलिया मारि डार पुनि तेही॥
मुहमद यह मन अमर है, केहुँ न मारा जाइ।
ज्ञान मिलै जौ एहि घटै, घटतै घटत बिलाइ॥1॥
नागमती कहँ अगम जनावा । गई तपनि बरखा जनु आवा॥
रही जो मुइ नागिनि जसि तुचा । जिउ पाएँ तन कै भइ सुचा॥
सब दुख जस केंचुरि गा छूटी । होइ निसरी जनु बीरबहूटी॥
जसि भुइँ दहि असाढ़ पलुहाई । परहिं बूँद औ सोंधिा बसाई॥
ओहि भाँतिपलुही सुख बारी । उठी करिल नइ कोंप सँवारी॥
हुलसि गंग जिमि बाढ़िहि लेई । जोबन लाग हिलोरैं देई॥
काम धानुक सर लेइ भइ ठाढ़ी । भागेउ बिरह रहा जो डाढ़ी॥
पूछहिं सखी सहेलरी, हिरदय देखि अनंद।
आजु बदन तोर निरमल, अहै उवा जस चंद॥2॥
अब लगि रहा पवन, सखि ताता । आजु लाग मोहिं सीअर गाता॥
महि हुलसै जस पावस छाहाँ । तस उपना हुलास मन माहाँ॥
दसवँ दावँ के गा जो दसहरा । पलटा सोइ नाव लेइ महरा॥
अब जोबन गंगा होइ बाढ़ा । औटन कठिन मारि सब काढ़ा॥
हरियर सब देखौं संसारा । नए चार जनु भा अवतारा॥
भागेउ बिरह करत जो दाहू । भा मुख चंद छूटिगा राहू॥
पलुहे नैन बाँह हुलसाहीं । कोउ हितु आवै जाहि मिलाहीं॥
कहतहि बात सखिन्ह सौं, ततखन आवा भाँट।
राजा आइ निअर भा, मँदिर बिछावहु पाट॥3॥
सुनि तेहि खन राजा कर नाऊँ । भा हुलास सब ठाँवहिं ठाऊँ॥
पलटा जनु बरषा ऋतु राजा । जस असाढ़ आवै दर साजा॥
देखि सो छत्रा भई जग छाहाँ । हस्ति मेघ ओनए जग माहाँ॥
सेन पूरि आई घन घोरा । रहस चाव बरसै चहुँ ओरा॥
धारति सरग अब होइ मरावा । भरीं सरित औ ताल तलावा॥
उठी लहकि महि सुनतहि नामा । ठावहिं ठावँ दूब अस जामा॥
दादुर मोर कोकिला बोले । हुत जो अलोप जीभ सब खोले॥
होइ असवार जो प्रथमै मिलै चले सब भाइ।
नदी अठारह गंडा मिलीं समुद कहँ जाइ॥4॥
बाजत गाजत राजा आवा । नगर चहूँ दिसि बाज बधाावा॥
बिहँसि आइमाता सौं मिला । राम जाइ भेंटी कौसिला॥
साजे मदिर बंदनवारा । होइ लाग बहु मंगलचारा॥
पदमावति कर आवं बेवानू । नागमती जिउ महँ भा आनू॥
जनहुँ छाँह महँ धाूप देखाई । तैसइ भार लागि जौ आई॥
सही न जाइ सवति कै झारा । दुसरे मंदिर दीन्ह उतारा॥
भई उहाँ चहुँ खंड बखानी । रतनसेन पदमावति आनी॥
पुहुप गंधा संसार महँ, रूप बखानि न जाइ।
हेम सेत जनु उघरि गा, जगत पात फहराइ॥5॥
बैठ सिंहासन लोग जोहारा । निधानी निरगुन दरव बोहारा॥
अगनितदान निछावरि कीन्हा । मँगतन्ह दान बहुत कै दीन्हा॥
लेइ कै हस्ति महाउत मिले । तुलसी लेइ उपरोहित चले॥
बेटा भाइ कुँवर जत आवहिं । हँसि हँसि राजा कंठ लगावहिं॥
नेगी गए, मिले अरकाना । पँवरिहि बाजै घहरि निसाना॥
मिले कुँवर, कापर पहिराए । देह दरब तिन्ह घरहिं पठाए॥
सबकै दसा फिरी पुनि दुनी । दान डाँग सबही जग सुनी॥
बाजैं पाँच सबद निहित, सिध्दि बखानहिं भाँट।
छतिस कूरि, षट दरसन, आइ जुरे ओहि पाट॥6॥
सब दिन राजा दान दिआवा । भइ निसि, नागमती पहँ आवा॥
नागमती मुख फेरि बईठी । सौंह न करै पुरुष सौं दीठी॥
ग्रीषम जरत छाँड़ि जो जाई । सो मुख कौन देखावै आई?॥
जबहिं जरै परबत बन लागे । उठी झार पंखी उठि भागे॥
जब साखा देखै औ छाहाँ । को नहिं रहसि पसारै बाहाँ॥
को नहिं हरषिबैठ तेहि डारा । को नहिं करै केलि कुरिहारा?॥
तू जोगी होइगा बैरागी । हौं जरि छार भएउँ तोहि लागी॥
काह हँसौ तुम मोसौं, किएउ और सौं नेह।
तुम्ह मुख चमकै बीजुरी, मोहि मुख बरिसै मेह॥7॥
नागमती तू पहिलि बियाही । कठिन प्रीति दाहै जस दाही॥
बहुतै दिनन आव जो पीऊ । धानि न मिलै धानि पाहन जीऊ॥
पाहन लोह पोढ़ जग दोऊ । तेउ मिलहिं जौ होइ बिछोऊ॥
भलेहि सेत गंगाजल दीठा । जमुन जो साम, नीर अति मीठा॥
काह भएउ तन दिस दस दहा । जौ बरषा सिर ऊपर अहा॥
कोइ केहु पास आत कै हेरा । घनि ओहि दरस निरास न फेरा॥
कंठ लाइ कै नारि मनाई । जरी जो बेलि सींचि पलुहाई॥
फरे सहस साखा होइ, दारिउँ, दाख, जँभीर।
सबै पंखि मिलि आइ जोहारे, लौटि उहै भइ भीर॥8॥
जौ भा मेर भएउ रँग राता । नागमती हँसि पूछी बाता॥
कहहु कंत! ओहि देस लोभाने । कस धानि मिली, भोग कस माने॥
जौ पदमावति सुठि होइ लोनी । मोरे रूप कि सरवरि होनी?॥
जहाँ राधिाका गोपिन्ह माहाँ । चंद्रावलि सिर पूज न छाहाँ॥
भँवर पुरुष अस रहै न राखा । तजै दाख, महुआ रस चाखा॥
तजि नागेसर फूल सोहावा । कँवल बिसैंधाहिं सौं मन लावा॥
जौ अन्हवाइ भरै अरगजा । तौहुँ बिसायँधा वह नहिं तजा॥
काह कहौं हौं तोसौं, किछु न हिये तोहि भाव॥
इहाँ बात मुख मोसौं, उहाँ जीउ ओहि ठाँव॥9॥
कहि दुख कथा जो रैनि बिहानी । भयउ भोर जहँ पदमावतिरानी॥
भानु देख ससि बदन मलीना । कँवल नैन राते, तनु खीना॥
रैनि नखत गनि कीन्ह बिहानू । बिकल भई देखा जब भानू॥
सूर हँसै, ससि रोइ डफारा । टूट ऑंसु जनु नखतन्ह मारा॥
रहै न राखी होइ निसाँसी । तहँवा जाहु जहाँ निसि बासी॥
हौं कै नेह कुऑं महँ मेली । सींचौ लागि झुरानी बेली॥
नैन रहे होइ रहँट क घरी । भरी ते ढारी, छूँछी भरी॥
सुभर सरोवर हंस चल, घटतहि गए बिछोह।
कँवल न प्रीतम परिहरै, सूखि पंक बरु होइ॥10॥
पदमावति तुइँ जीउ पराना । जिउ तें जगत पियार न आना॥
तुइँ जिमि कँवल बसीहिय माहाँ । हौं होइ अलि बेधाा तोहि पाहाँ॥
मालति कली भँवर जो पावा । सो तजि आन फूल कित भावा?॥
मैं हौं सिंघल कैं पदमावति । सरि न पूज जंबू नागिनी॥
हौं सुगंधा निरमल उजियारी । वह विषभरी डेरावनि कारी॥
मोरी बास भँवर सँग लागहिं । ओहि देखत मानुष डर भागहिं॥
हौं पुरुषन्ह कै चितवन दीठी । जेहिक जिउ अस अहौं पईठी॥
ऊँचे ठाँव जो बैठे, करै न नीचहिं संग।
जहँ सो नागिनि हिरकै, करिया करै सो अंग॥11॥
पलुही नागमती कै बारी । सोने फूल फूलि फुलवारी॥
जावत पंखि रहे सब दहे । सबै पंखि बोलत गहगहे॥
सारिउँ सुवा महरि काकिला । रहसत आइ पपीहा मिला॥
हारिल सबद महोखसोहावा । काग कुराहर करि सुख पावा॥
भोग बिलास कीन्ह कै फेरा । बिहँसहिं, रहसहिं करहिं बसेरा॥
नाचहिं पंडुक मोर परेवा । बिफल न जाइ काहुकै सेवा॥
होइ उजियार सूर जस तपै । खूसट मुख न देखावै छपै॥
संग सहेली नागमति, आपनि बारी माहँ।
फूल चुनहिं, फल तूरहिं, रहसि कूदि सुख छाँह॥12॥
(1) ऍंदोरा=अंदोर, हलचल, शोर (आंदोल)। चंडोल=पालकी। सरग सौं=ईश्वर से। तेलिया=सींगिया विष। तेलिया=तेही=चाहे उसे तेलिया विष से न मारे। केहुँ=किसी प्रकार।
(2) तुचा=त्वचा, केंचली। सुचा=सूचना, सुधा, खबर। सोंधिा=सोंधी। सोंधिा बसाई=सुगंधा से बस जाती है या सोंधाी महकती है। करिल=कल्ला। कोंप=कोंपल।
(3) ताता=गरम। दसवँ दावँ=दशम दशा, मरण। महरा=सरदार। औटन=ताप। नए चार=नए सिर से।
(4) दर=दल। रहस चाव=आनंद, उत्साह। लहकि उठी=लहलहा उठी। हुत=थे। अठारह गंडा नदी=अवधा में जनसाधारण के बीच यह प्रसिध्द है कि समुद्र में अठारह गंडे (अर्थात् 72) नदियाँ मिलती हैं।
(5) बेवान=विमान। जिउ महँ भा आनू=जी में कुछ और भाव हुआ। झार=(क) लपट, (ख)र् ईष्या, डाह। जौ=जब। उतारा। दीन्ह=उतारा हेम सेत=सफेद पाला या बर्फ।
(6) बहुत कै=बहुत सा। जत=जितने। अरकाना=अरकाने दौलत, सरदार, उमरा। दूनी=दुनिया में। डाँग=डंका। पाँच सबद=पंच शब्द, पाँच बाजे-तंत्राी, ताल, झाँझ, नगाड़ा और तुरही । छतिस कूरि=छत्ताीसों कुल के क्षत्रिाय। षट दरसन=(लक्षण्ा से) छह शास्त्राों के वक्ता।
(7) दिआवा=दिलाया। कुरिहारा=कलरव, कोलाहल।
(8) पोढ़=दृढ़, मजबूत, कड़े। फरे सहस...भीर=अर्थात् नागमती में फिर यौवनश्री और रस आ गया और राजा के अंग-अंग उससे मिले।
(9) मेर=मेल, मिलाप। लोनी=सुगढ़। नागेसर=अर्थात् नागमती। कँवल=अर्थात् पद्मावती। बिसैधाा=बिसायँधा गंधावाला, मछली की सी गंधावाला। भाव=प्रेम भाव।
(10) देख=देखा। भानू=(क) सूर्य, (ख) रत्नसेन। डफारा=ढाढ़ मारती है। मारा=माला। कुऑं महँ मेली=मुझे तो कुएँ में डाल दिया, अर्थात् किनारे कर दिया। झुरान=सूखी। घरी=घड़ा। सुभर=भरा हुआ।
(11) बेधाा तोहि पाहाँ=तेरे पास उलझ गया हूँ। डेरावनि=डरावनी। हिरकै=सटे। करिया=काला।
(12) पलुही=पल्लवित हुई, पनपी। गहगहे=आनंदपूर्वक। कुराहर=कोलाहल। जस=जैसे ही। खूसट=उल्लू। तूरहिं=तोड़ती हैं।