hindisamay head


अ+ अ-

कविता

पदमावत

मलिक मुहम्मद जायसी

संपादन - रामचंद्र शुक्ल

अनुक्रम मानसरोदक खंड पीछे     आगे

एक दिवस पून्यो तिथि आई । मानसरोदक चली नहाई॥

पदमावति सब सखी बुलाई । जनु फुलवारि सबै चलि आई॥

कोइ चंपा कोइ कुंद सहेली । कोइ सु केत, करना, रस बेली॥

कोइ सु गुलाल सुदरसन राती । कोइ सोबकावरि-बकुचन भाँती॥

कोइ सु मौलसिरि, पुहपावती । कोइ जाही जूही सेवती॥

कोई सोनजरद, कोइ केसर । कोइ सिंगारहार नागेसर॥

कोइ कूजा सदबर्ग चमेली । कोई कदम सुरस रस बेली॥

चलीं सबै मालति सँग, फूलीं कवँल कुमोद।

बेधिा रहे गन गंधारब, बासपरमदामोद॥1॥

खेलत मानसरोवर गईं । जाइ पाल पर ठाढ़ी भईं॥

देखि सरोवर हँसैं कुलेली । पदमावति सौं कहहिं सहेली॥

ए रानी! मन देखु बिचारी । एहि नैहर रहना दिन चारी॥

जौ लगि अहै पिता कर राजू । खेलि लेहु जो खेलहु आजू॥

पुनि सासुर हम गवनब काली । कित हम, कित यह सरवर पाली॥

कित आवन पुनि अपने हाथा । कित मिलि कै खेलब एक साथा॥

सासु ननद बोलिन्ह जिउ लेहीं । दारुन ससुर न निसरै देहीं॥

पिउ पियार सिर ऊपर, पुनि सो करै दहुँ काह।

दहुँ सुख राखै की दुख, दहुँ कस जनम निबाह॥2॥

मिलहिं रहसि सब चढ़हिं हिंडोरी । झूलि लेहिं सुख बारी भोरी॥

झूलि लेहु नैहर जब ताईं । फिरि नहिं झूलन देइहिं साईं॥

पुनि सासुर लेइ राखिहि तहाँ । नैहर चाह न पाउब जहाँ॥

कित यह धाूप, कहाँ यह छाहाँ । रहब सखी बिनु मंदिर माहाँ॥

गुन पूछिहि और लाइहि दोखू । कौन उतर पाउब तहँ मोखू॥

सासु ननद के भौंह सिकोरे । रहब सँकोचि दुवौ कर जोरे॥

कित यह रहसि जो आउब करना । ससुरेइ अंत जनम दुख भरना॥

कित नैहर पुनि आउब, कित ससुरे यह खेल।

आपु आपु कहँ होइहि परब पंखि जस डेल॥3॥

सरवर तीर पदमिनी आई । खोंपा छोरि केस मुकलाई॥

ससिमुख, अंग मलयगिरि बासा । नागिन झाँपि लीन्ह चहुँ पासा॥

ओनई घटा परी जग छाहाँ । ससि कै सरन लीन्ह जनु राहाँ॥

छपि गै दिनहिं भानु कै दसा । लेइ निसि नखत चाँद परगसा॥

भूलि चकोर दीठि मुख लावा । मेघघटा महँ चंद देखावा॥

दसन दामिनी, कोकिल भाखी । भौंहैं धानुख गगन लेइ राखी॥

नैन ख्रजन दुइ केलि करेहीं । कुच नारँग मधाुकर रस लेहीं॥

सरवर रूप बिमोहा, हिये हिलोरहि लेइ।

पाँव छुवै मकु पावौं एहि मिस लहरहि देइ॥4॥

धारी तीर सब कंचुकि सारी । सरवर महँ पैठीं सब बारी॥

पाइ नीर जानौं सब बेली । हुलसहिं करहिं काम कै केली॥

करिल केस बिसहर बिस-भरे । लहरैं लेहिं कवँल मुख धारे॥

नवल बसंत सँवारी करी । होइ प्रगट जानहु रस भरी॥

उठी कोंप जस दारिवँ दाखा । भई उनंत पेम कै साखा।

सरिवर नहिं समाइ संसारा । चाँद नहाइ पैठ लेइ तारा॥

घनि सो नीर ससि तरई उईं । अब कित दीठ कमल औ कूईं॥

चकई बिछुरि पुकारै, कहाँ मिलौं, हो नाहँ।

एक चाँद निसि सरग महँ, दिन दूसर जल माहँ॥5॥

लागीं केलि करै मझ नीरा । हंस लजाइ बैठ ओहि तीरा॥

पदमावति कौतुक कहँ राखी । तुम ससि होहु तराइन्ह साखी॥

बादमेलि कै खेल पसारा । हार देह जो खेलत हारा॥

सँवरिहि साँवरि, गोरिहि गोरी । आपनि आपनि लीन्ह सो जोरी॥

बूझि खेल खेलहु एक साथा । हार न होइ पराए हाथा॥

आजुहि खेल, बहुरि कित होई । खेल गए कित खेलै कोई?॥

धानि सो खेल खेल सह पेमा । रउताई औ कूसल खेमा॥

मुहमद बाजी पेम कै, ज्यों भावै त्यों खेल।

तिल फूलहि के संग ज्यों होइ फुलायल तेल॥6॥

सखी एक तेइ खेल न जाना । भै अचेत मनिहार गवाँना॥

कवँल डार गहि भै बेकरारा । कासों पुकारौं आपन हारा॥

कित खेलै आइउँ एहि साथा । हार गँवाइ चलिउँ लेइ हाथा॥

घर पैठत पूँछब यह हारू । कौन उतर पाउब पैसारू॥

नैन सीप ऑंसू तस भरे । जानौ मोति गिरहिं सब ढरे॥

सखिन कहा बौरी कोकिला । कौन पानि जेहि पौन न मिला?॥

हार गँवाइ सो ऐसे रोवा । हेरि हेराइ लेइ जौं खोवा॥

लागीं सब मिलि हेरै, बूड़ि बूड़ि एक साथ।

कोइ उठी मोती लेइ, काहू घोंघा हाथ॥7॥

कहा मानसर चाह सो पाई । पारस रूप इहाँ लगि आई॥

भा निरमल तिन्ह पायँन्ह परसे । पावा रूप रूप के दरसे॥

मलय समीर बास तन आई । भा सीतल, गै तपनि बुझाई॥

न जनौं कौन पौन लेइ आवा । पुन्य दसा भै पाप गँवावा॥

ततखन हार बेगि उतिराना । पावा सखिन्ह चंद बिहँसाना॥

बिगसा कुमुद देखि ससि रेखा । भै तहँ ओप जहाँ जोइ देखा॥

पावा रूप रूप जस चहा । ससि मुख जनु दरपन होइ रहा॥

नयन जो देखा कवँल भा, निरमल नीर सरीर।

हँसत जो देखा हंस भा, दसन जोति नग हीर॥8॥

(1) केत=केतकी। करना=एक फूल। कूजा=सफेद जंगली गुलाब।

(2) पाल=बाँधा, भीटा, किनारा।

(3) चाह=खबर। डेल=बहेलिए का डला।

(4) खाेंपा=चोटी का गुच्छा, जूरा। मुकलाई=खोलकर। मकु=कदाचित्।

(5) करिल=काले। बिसहर=विषधार, साँप। करी=कली। कोंप=कोंपल। उनंत=झुकती हुई।

(6) साखी=निर्णयकर्ता, पंच। बादमेलि कै=बाजी लगाकर।

(7) रउताई=रावत या स्वामी होने का भाव, ठकुराई। फुलायल=फुलेल।

(8) चाह=खबर, आहट।


>>पीछे>> >>आगे>>