इहाँ राज अस सेन बनाई । उहाँ साह कै भई अवाई॥
अगिले दौरे आगे आए । पहिले पाछ कोस दस छाए॥
साह आइ चितउरगढ़ बाजा । हस्ती सहस बीस सँग साजा॥
ओनइ आए दूनौ दल साजे । हिन्दू तुरक दुवौ रन गाजे॥
दुवौ समुद दधिा उदधिा अपारा । दूनौ मरु खिखिंद पहारा॥
कोपि जुझार दुवौ दिसि मेले । औ हस्ती हस्ती सहुँ पेले॥
ऑंकुस चमकि बीजु अस बाजहिं । गरजहिं हस्ति मेघ जनु गाजहिं॥
धारती सरग एक भा, जूहहि ऊपर जूह।
कोई टरै न टारे, दूनौ बज्र समूह॥1॥
हस्ती सहुँ हस्ती हठि गाजहिं । जनु परबत सौं परबत बाजहिं॥
गरू गयंद न टारे टरहीं । टूटहिं दाँत, माथ गिरि परहीं॥
परबत आइ जो परहिं तराहीं । दर महँ चाँपि खेह मिलि जाहीं॥
कोई हस्ती असवारहि लेहीं । सूँड़ समेटि पायँ तर देहीं।
कोइ असवार सिंघ होइ मारहिं । हनि के मस्तक सूँड़ उपारहिं॥
गरब गयंदन्ह गगन पसीजा । रुहिर चुवै धारती सब भीजा॥
कोइ मैमंत सँभारहिं नाहीं । तब जानहिं जब गुद सिर जाहीं॥
गगन रुहिर जस बरसै, धारती बहै मिलाइ।
सिर धार टूटि बिलाहिं तस, पानी पंक बिलाइ॥2॥
आठौं बज्र जूझ जस सुना । तेहि तें अधिाक भएउ चौगुना॥
बाजहिं खड़ग उठै दर आगी । भुइँ जरि चहै सरग कहँ लागी॥
चमकहिं बीजु होइ उजियारा । जेहि सिर परै होइ दुइ फारा॥
मेघ जो हस्ति हस्ति सहुँ गाजहिं । बीजु जो खड़ग खड़ग सौंबाजहिं॥
बरसहिं सेल बान होइ काँदो । जस बरसै सावन औ भादों॥
झपटहिं कोपि, परहिं तरवारी । औ गोला ओला जस भारी॥
जूझे बीर कहौं कहँ ताईं । लेइ अछरी कैलास सिधााईं॥
स्वामि काज जो जूझे, सोइ गए मुख रात।
जो भागे सत छाँड़ि कै, मसि मुख चढ़ी परात॥3॥
भा संग्राम न भा अस काऊ । लोहे दुहुँ दिसि भए अगाऊ॥
ससि कंधा कटि कटि भुइँ परे । रुहिर सलिल होइ सायर भरे॥
अनँद बधााव करहिं मसखावा । अब भख जनम जनम कहँ पावा॥
चौंसठ जोगिनि खप्पर पूरा । बिग जंबुक घर बाजहिं तूरा॥
गिध्द चील सब माँड़ों छावहिं । काग कलोल करहिं औ गावहिं॥
आजु साह हठि अनी बियाही । पाई भुगुति जैसि चित्ता चाही॥
जेइँ जस माँसू भखा परावा । तस तेहि कर लेइ औरन्ह खावा?
काहू साथ न तन गा, सकति मुए सब पोखि।
ओछ पूर तेहि जानब, जो थिर आवत जोखि॥4॥
चाँद न टरै सूर सौं कोपा । दूसर छत्रा सौंह कै रोपा॥
सुना साह अस भएउ समूहा । पेले सब हस्तिन के जूहा॥
आजु चाँद तोर करौं निपातू । रहै न जग महँ दूसर छातू॥
सहस करा होइ किरिन पसारा । छेंका चाँद जहाँ लगि तारा॥
दर लोहा दरपन भा आवा । घट घट जानहु भानु देखावा॥
अस क्रोधिातकुठार लेइ धााए । अगिनि पहार जरत जनु आए॥
खड़ग बीजु सब तुरुक उठाए । ओड़न चाँद काल कर पाए॥
जगमग अनी देखि कै, धााइ दिस्टि तेहि लागि।
छुए होइ जो लोहा, माँझ आव तेहि आगि॥5॥
सूरुज देखि चाँद मन लाजा । बिगसा कँवल1 कुमुद भा राजा॥
भलेहि चाँद बड़ होइ निसि पाई । दिन दिनअर सहुँ कौन बड़ाई॥
अहे जो नखत चंद सँग तपे । सूर के दिस्टि गगन महँ छपे॥
कै चिंता राजा मन बूझा । जो होइ सरग न धारती जूझा॥
गढ़पति उतरि लड़ै नहिंधााए । हाथ परै गढ़ हाथ पराए॥
गढ़पति इंद्र गगन गढ़ गाजा । दिवस न निसर रैनि कर राजा॥
चंद रैनि रह नखतन्ह माँझा । सुरुज के सौंह न होइ चहँ साँझा॥
देखा चंद भोर भा, सूरुज के बड़ भाग।
चाँद फिरा भा गढ़पति, सूर गगन गढ़ लाग॥6॥
कठक असूझ अलाउदिं साही । आवत कोइ न सँभारैं ताही॥
उदधिा समुद्र जस लहरैं देखी । नयन देख मुख जाइ न लेखी॥
केते तजा चितउर कै घाटी । केते बजावत मिलि गए माटी॥
केतेन्ह नितहिं देह नव साजा । कबहुँ न साज घटै तस राजा॥
लाख जाहिं आवहिं दुइ लाखा । फरै झरै उपनै नव साखा॥
जो आवै गढ़ लागै सोई । थिर होइ रहै न पावै कोई॥
उमरा मीर रहे जहँ ताईं । सबहीं बाँटि अलँगैं पाईं॥
लाग कटक चारिहु दिसि, गढ़हि परा अगिदाहु।
सुरुज गहन भा चाहै, चाँदहिं भा जस राहु॥7॥
अथवा दिवस, सूर भा बासा । परी रैनि, ससि उवा अकासा॥
चाँद छत्रा देइ बैठा आई । चहुँ दिसि नखत दीन्ह छिटकाई॥
नखत अकासहि चढ़े दिपाहीं । टुटि टुटि लूक परहिं, न बुझाहीं॥
परहिं सिला जस परै बजागी । पाहन पाहन सौं उठ आगी॥
गोला परहिं कोल्हुढरकाहीं । चूर करत चारिउ दिसि जाहीं॥
ओनई घटा बरसि झरि लाई । आला टपकहिं, परहि बिछाई॥
तुरुक न मुख फेरहिं गढ़ लागे । एक मरै, दूसर होइ आगे॥
परहिं बान राजा के, सकै को सनमुख काढ़ि।
ओनई सेन साह कै, रही भोर लगि ठाढ़ि॥8॥
भएउ बिहानु, भानु पुनि चढ़ा । सहसहु करा दिवस बिधिा गढ़ा॥
भा धाावा गढ़ कीन्ह गरेरा । कोपा कटक लाग चहुँ फेरा॥
बान करोर एकमुख छूटहिं । बाजहिं जहाँ फोंक लहि फूटहिं॥
नखत गगन जिस देखहिं घने । तस गढ़ कोटन्ह बानन्ह हने॥
बान बेधिा साही कै राखा । गढ़ भा गरुड़ फुलावा पाँखा॥
ओहि रँग केरि कठिन है बाता । तौ पै कहै होइ मुख राता॥
पीठि न देहिं घाव के लागे । पैग पैग भुइँ चाँपहिं आगे॥
चारि पहर दिन जूझ भा, गढ़ न टूट तस बाँक।
गरुअ होत पै आवै, दिन दिन नाकहि नाक॥9॥
छेंका कोट जोर अस कीन्हा । घुसि कै सरग सुरँग तिन्ह दीन्हा॥
गरगज बाँधिा कमानैं धारीं । बज्र आगि मुख दारू भरी॥
हबसी, रूमी और फिरंगी । बड़ बड़ गुनी और तिन्ह संगी॥
जिन्हके गोट कोट पर जाहीं । जेहि ताकहिं चूकहिं तेहि नाहीं॥
अस्ट धाातु के गोला छूटहिं । गिरहिं पहार चून होइ फूटहिं॥
एक बार बसछूटहिं गोला । गरजै गगन, धारति सब डोला॥
फूटहिं कोटफूट जनु सीसा । औदरहिं बुरुज जाहिं सब पीसा॥
लंका रावट जस भई, दाह परी गढ़ सोइ।
रावन लिखा जरै कहँ, कहहु अजर किमि होइ॥10॥
राजगीर लागे गढ़ थवई । फूटै जहाँ सँवारहिं सबई॥
बाँके पर सुठि बाँक करेहीं । रातिहि कोट चित्रा कै लेहीं॥
गाजहिं गगन चढ़ा जस मेघा । बरिसहिं बज्र, सीस को ठेघा?॥
सौ सौ मन के बरसहिं गोला । बरसहिं तुपक तीर जस ओला॥
जानहुँ परहिं सरग हुत गाजा । फाटै धारति आइ जहँ बाजा॥
गरगज चूर चूर होइ परहीं । हस्ति घोर मानुष संघरहीं॥
सबै कहा अब परलै आई । धारती सरग जूझ जनु लाई॥
आठौ बज्र जुरे सब, एक डुंगवै लागि।
जगत जरै चारिउ दिसि, कँसेहु बुझै न आगि॥11॥
तबहूँ राजा हिये न हारा । राज पौरि पर रचा अखारा॥
सोह साह कै बैठक जहाँ । समुहें नाच करावै तहाँ॥
जंत्रा पखाउज औ जत बाजा । सुर मादर रबाब भल साजा॥
बीना बेनु कमाइच गहे । बाजे अमृत तहँ गहगहे॥
चंग उपंग नाद सुर तूरा । महुअर बँसि बाज भरपूरा॥
हुड़ुक बाज डफ बाजगँभीरा । औ बाजहिं बहु झाँझ मजीरा॥
तंत बितंत सुभर घनतारा । बाजहिं सबद होइ झनकारा॥
जग सिंगार मनमोहन, पातुर नाचहिं पाँच।
बादसाह गढ़ छेंका, राजा भूला नाच॥12॥
बीजानगर केर सब गुनी । करहिं अलाप जैस नहिं सुनी॥
छबौ राग गाए सँग तारा । सगरी कटक सुनै झनकारा॥
प्रथम राग भैरव तिन्ह कीन्हा । दूसर मालकोस पुनि लीन्हा॥
पुनि हिंडोल राग भल गाए । मेघ मलार मेघ बरिसाए॥
पाँचवँ सिरी राग भल किया । छठवाँ दीपक बरि उठ दिया॥
ऊपर भए सो पातुर नाचहिं । तर भए तुरुक कमानैं खाँचहिं॥
गढ़ माथे होइ उमरा झुमरा । तर भए देख मीर औ उमरा॥
सुनि सुनि सीस धाुनहिं सब, कर मलि मलि पछिताहिं।
कब हम माथ चढ़हिं ओहि, नैनन्ह कै दुख जाहिं॥13॥
छवौ राग गावहिंपातुरनी । औ पुनि छत्ताीसौ रागिनी॥
औ कल्यान कान्हराहोई । राग बिहाग केदारा सोई॥
परभाती होइ उठै बँगाला । आसावरी राग गुनमाला॥
धानासिरी औ सूहा कीन्हा । भएउ बिलावल, मारू लीन्हा॥
रामकली, नट, गौरी गाई । धाुनि खंमाच सो राग सुनाई॥
साम गूजरीपुनि भल भाई । सारँग औ बिभास मुँह आई॥
पुरबी, सिंधाी, देस, बरारी । टोड़ी, गौड़ सौं भई निरारी॥
सबै राग औ रागिनी, सुरै अलापहिं ऊँच।
तहाँ तीर कहँ पहुँचै, दिस्टि जहाँ न पहूँच?॥14॥
जहँवाँ सौंह साहकै दीठी । पातुरि फिरत दीन्ह तहँ पीठी॥
देखत साह सिंहासनगूँजा । कब लगि मिरिच चाँद तोहि भूजा1॥
छाँड़हिं बान जाहिंउपराहीं । का तैं गरब करसि इतराहीं?॥
बोलत बान लाख भए ऊँचे । कोइ कोट, कोइ पौरि पहूँचे॥
जहाँगीर कनउज करनाजा । ओहि क बान पातुरि के लागा॥
बाजा बान, जाँघ तस नाचा । जिउ गा सरग, परा भुइँ साँचा॥
उड़सा नाच, नचनियामारा । रहसे तुरुक बजाइ कै तारा॥
जो गढ़ साजै लाख दस, कोटि उठावै कोट।
बादशाह जब चाहै छपै, न कौनिउ ओट॥15॥
राजै पौरि अकास चढ़ाई । परा बाँधा चहुँ फेर लगाई॥
सेतुबंधा जस राघव बाँधाा । परा फेर, भुइँ भार न काँधाा॥
हनुवँत होइ सब लाग गोहारू । चहुँ दिसि ढाइ ढोइ कीन्ह पहारू॥
सेत फटिक अस लागै गढ़ा । बाँधा उठाइ चहूँ गढ़ मढ़ा॥
ख्रड ख्रड ऊपर होइ पटाऊ । चित्रा अनेक, अनेक कटाऊ॥
सीढ़ी होति जाहिं बहु भाँती । जहाँ चढ़ै हस्तिन कै पाँती॥
भा गरगज कस कहत न आवा । जनहुँ उठाइ गगन लेइ आवा॥
राहु लाग जस चाँदहि, तस गढ़ लागा बाँधा।
सरब आगि अस बरि रहा, ठाँव जाइ को काँधा?॥16॥
राजसभा सब मतै बईठी । देखि न जाइ, मूँदि गई दीठी॥
उठा बाँधा, चहुँ दिसि गढ़ बाँधाा । कीजै बेगि भार जस काँधाा॥
उपजै आगि आगि जस बोई । अब मत कोइ आन नहिं होई॥
भा तेवहार जौचाँचरि जोरी । खेलि फाग अब लाइय होरी॥
सम द फागमेलिय सिर धाूरी । कीन्ह जो साका चाहिय पूरी॥
चंदन अगर मलयगिरि काढ़ा । घर घर कीन्ह सरा रचि ठाढ़ा॥
जौहर कहँ साजा रनिवासू । जिन्ह सत हिये कहाँ तिन्हँ ऑंसू॥
पुरुषन्ह खड़ग सँभारै, चंदन खेवरे देह।
मेहरिन्ह सेंदुर मेला, चहहिं भई जरि खेइ॥17॥
आठ बरिस गढ़ छेंकारहा । धानि सुलतान कि राजा महा॥
आइ साह ऍंबराव जोलाए । फरे झरे पै गढ़ नहिं पाए॥
जौ तोरौं तौ जौहर होई । पदमावति हाथ चढ़ै नहिं सोई॥
एहि बिधिा ढील दीन्ह, तब ताईं । दिल्ली तैं अरदासैं आईं॥
पछिउँ हरेव दीन्हि जोपीठी । सो अब चढ़ा सौंह कै दीठी॥
जिन्ह भुइँ माथ गगन तेइ लागा । थाने उठे, आव सब भागा॥
उहाँ साह चितउर गढ़ छावा । इहाँ देस अब होइ परावा॥
जिन्ह जिन्ह पंथ न तृन परत बाढ़े बेर बबूर।
निसि ऍंधिायारी जाइ तब, बेगि उठै जौ सूर॥18॥
(1) बाजा=पहुँचा। गाजे=गरजे। दधिा=दधिासमुद्र। उदधिा=पानी का समुद्र। खिखिंद=किष्ंकिधाा पर्वत। सहुँ=सामने। पेले=जोर से चलाए। जूह=यूथ, दल।
(2) तराहीं=नीचे। दर=दल। चाँपि=दबकर। गरब=मदजल। गुद=सिर का गूदा। मिलाइ=धाूल मिलाकर।
(3) आठौं बज्र=आठों वज्रों का (?) दर=दल में। फारा=फाल, टुकड़ा। । काँदो=कीचड़। मुख रात=लाल मुख लेकर, सुर्खरू होकर। मसि=कालिमा, स्याही। परात=भागते हुए।
(4) काऊ=कभी। लोहे=हथियार। अगाऊ=आगे, सामने। तूरा=तुरही। माँड़ो=मंडप। अनी=सेना। सकति=शक्ति भर, भरसक। पोखि=पोषण करके। ओछ=ओछा, नीच। पूर=पूरा। जोखि आवत=विचारता आता है। जो थिर आवत जोखि=जो ऐसे शरीर को स्थिर समझता आता है।
(5) चाँद=राजा। सूर=बादशाह। समूहा=शत्राु सेना की भीड़। छातू=छत्रा। दर लोहा=सेना के चमकते हुए हथियार। ओड़न=ढाल, रोकने की वस्तु। ओड़न चाँद...पाए=चंद्रमा के बचाव के लिए समयविशेष (रात्रिा) मिला जब कि सूर्य सामने नहीं आता। जगमग=झलमलाती हुई। जगमग लागि=राजा ने गढ़ पर से बादशाह की चमकती हुई सेना को देखा। छुए...आगि=यदि लोहा सूर्य के सामने होने से तपता जाता है तो जो उसे छुए रहता है उसके शरीर में भी गरमी आ जाती है अर्थात् सूर्य के समान शाह की सेना का प्रकाश देख शस्त्राधाारी राजा को जोश चढ़ आया।
(6) कँवल=बादशाह। कुमुद=कुमद समान संकुचित। दिन...बड़ाई=दिन में सूर्य के सामने उसकी क्या बड़ाई है? तपे=प्रतापयुक्त थे। जो होइ सरग...जूझा=जो स्वर्ग (ऊँचे गढ़) पर हो वह नीचे उतरकर युध्द नहीं करता। हाथ परै गढ़=लूट हो लाय गढ़ में (मुहा.)। भा गढ़पति=किले में हो गया अर्थात् सूर्य के सामने नहीं आया।
(7) उदधिा समुद=पानी का समुद्र। केतेन्ह...साजा=न जाने कितनों को (जो नए भरती होते जाते हैं) नए-नए सामान देता है। तस राजा=ऐसा बड़ा राजा वह अलाउद्दीन है। अलंगैं=बाजू, सेना का एक-एक पक्ष। अगिदाहु=अग्निदाह। सुरुज गहन...राहु=सूर्य (बादशाह) चंद्रमा (राजा) के लिए ग्रहण रूप हुआ चाहता है, वह चंद्रमा (राजा के लिए राहु रूप हो गया है।
1. पाठांतर-'कवँल'।
(8) भा बासा=अपने डेरे में टिकान हुआ। नखत=राजा के सामंत और सैनिक। लूक=अग्नि के समान बाण। उठ=उठती है। कोल्हु=कोल्हू। ढरकाहीं=लुढ़काए जाते हैं। सकै को...काढ़ि=उन बाणों के सामने सेना को कौन आगे निकाल सकता है?
(9) गरेरा=घेरा। एक मुख=एक ओर। बाजहिं=पड़तेहैं। फोंक=तीर का पिछला छोर जिसमें पर लगे रहते हैं। बाजहिं जहाँ... फूटहिं=जहाँ पड़ते हैं पिछले छोर तक फट जाते हैं, ऐसे जोर से वे चलाए जाते हैं। रँग=रणरंग। नाक=नाका, मुख्य स्थान।
(10) सुरँग=सुरंग, जमीन के नीचे खोदकर बनाया हुआ मार्ग (यह शब्द महाभारत में आया है और यूनानी 'सिरिंगस' से बना हुआ अनुमान किया गया है। श्री चिंतामणि वैद्य के अनुसार 'भारत' को 'महाभारत' के नाम से परिवधर्िात रूप सिकंदर के आने पर दिया गया है)। गरगज=परकोटे का वह बुर्ज जिसपर तोप चढ़ाई जाती है। कमानैं=तोपें। दारू=बारूद। फिरंगी=पुर्तगाली (फारस में यह शब्द रोम से आया जहाँ 'धार्मयुध्द' के समय योरप से आए हुए 'फ्रांक' लोगों के लिए पहले पहल व्यवहृत हुआ। फारस से यह शब्द हिंदुस्तान में आया और सबसे पहले आए पुर्तगालियों के लिए प्रयुक्त हुआ)। गोट=गोले। ओदरहिं=ढह जाते हैं। रावट=महल। अजर=जो न जले।
(11) थवई=मकान बनानेवाले (सं. स्थापित)। चित्रा=ठीक, दुरुस्त। तुपक=बंदूक। बाजा=पड़ते हैं। धारती सरग=आकाश और पृथ्वी के बीच। डुंगवा=टीला।
(12) समुहें=सामने। मादर=मर्दल, एक प्रकार का ढोल? रबाब=एक बाजा। कमाइच=(फा. कमानचा) सारंगी बजाने की कमान। उपंग=एक बाजा। तूरा=तूर, तुरही। महुअर=सूखी तुमड़ी का बना बाजा जिसे प्राय: सँपेरे बजाते हैं। हुड़ुक=डमरू की तरह का बाजा जिसे प्राय: कहार बजाते हैं। तंत=तंत्राी। घनतार=बड़ा झाँझ।
(13) ऊपर भए, तर भए=ऊपर से, नीचे से (पंचमी विभक्ति के स्थान पर 'भए' का प्रयोग अब तक पूरबी हिंदी में होता है)। गढ़ माथे=किले के सिरे पर। उमरा झुमरा=झूमर, नाच।
(14) पहुँच=पहुँचती है।
(15) फिरत=फिरते हुए। सिंघासन=सिंहासन पर। गूँजा=गरजा। मिरिग=मृग अर्थात् मृगनयनी। भूजा=भोग करेगा। भए ऊँचे=ऊपर की ओर चलाए गए। साँचा=शरीर। उड़सा=भंग हो गया। तारा=ताल, ताली।
(16) अकास चढ़ाई=और ऊँचे पर बनवाई। चहुँ फेर लगाई=चारों ओर लगाकर। मढ़ा=घेरा। पटाऊ=पटाव। गनेन लेइ=आकाश तक। ठाँव...काँधा=उस जगह जाने का भार कौन ऊपर ले सकता है?
1. पाठांतर-'देखै चाँद, सूर भा भूजा' अर्थात् चंद्रमा तो नाच देखे और सूर्य भुजवा हो गया कि उसकी ओर पीठ फेरी जाय।
(17) मतै=सलाह करने के लिए। कीजै बेगि...काँधाा=जैसा भारी युध्द आपने लिया है उसी के अनुसार कीजिए यही सलाह सबने दी। समदि=एक दूसरे से अंतिम बिदा लेकर। साका कीन्ह=कीर्ति स्थापित की है। चाहिय पूरी=पूरी होनी चाहिए। सरा=चिता। जौहर=गढ़ घिर जाने पर जब राजपूत गढ़ की रक्षा नहीं देखते थे तब स्त्रिायाँ शत्राु के हाथ में न पड़ने पाएँ इसके लिए पहले से ही चिता तैयार रखते थे। (जब गढ़ से निकलकर पुरुष लड़ाई में काम आ जाते थे तब स्त्रिायाँ चट चिता में कूद पड़ती थीं। यही जौहर कहलाता था)। खेवरे=खौर लगाई। मेहरिन्ह=स्त्रिायों ने। खेह=राख।
(18) आइ साह ऍंबराव...पाए=बादशाह ने आकर जो आम के पेड़ लगाए वे बड़े हुए, फलकर झड़ भी गए पर गढ़ नहीं टूटा। जो तोरौं=बादशाह कहता है कि यदि गढ़ को तोड़ता हूँ तो। अरदासैं=अर्जदाश्त, प्रार्थनापत्रा। हरेव=हेरात प्रदेश का पुराना नाम। थाने उठे=बादशाह की जो स्थान-स्थान पर चौकियाँ थीं वे उठ गईं। जिन्ह...बबूर=जिन जिन रास्तों में घास भी उगकर बाधाक नहीं हो सकती थी उनमें अब बादशाह के न रहने से बेर और बबूल उग आए हैं।