तौ लहि साँस पेट महँअही । जौ लहि दसा जीउ कै रही॥
काल आउ देखराई साँटी । उठि जिउ चला छोड़ि कै माटी॥
काकर लोग,कुटुँब, घर बारू । काकर अरथ दरब संसारू॥
ओही घरी सब भयउपरावा । आपन सोइ जो परसा, खावा॥
अहे जे हितू साथ के नेगी । सबै लाग काढ़ै तेहि बेगी॥
हाथ झारि जस चलै जुवारी । तजा राज, होइ चला भिखारी॥
जब हुत जीउ, रतन सब कहा । भा बिनु जीउ, न कौड़ी लहा॥
गढ़ सौंपा बादल कहँ, गए टिकठि बसि देव।
छोड़ी राम अयोधया, जो भावै सो लेव॥1॥
(1) साँटी=छड़ी। आपन सोइ...खावा=अपना वही हुआ जो खाया और दूसरे को खिलाया। नेगी=पानेवाले। हुत=था। टिकठि=टिकठी, अरथी जिसपर मुरदा ले जाते हैं। देव=राजा। जो भावै सो लेव=जो चाहे सो ले।