चित्रासेन चितउर गढ़ राजा । कै गढ़ कोट चित्रा सम साजा॥
तेहि कुल रतनसेन उजियारा । धानि जननी जनमा अस बारा॥
पंडित गुनि सामुद्रिक देखा । देखि रूप औ लखन बिसेखा॥
रतनसेन यह कुल निरमरा । रतन जोति मन माथे परा॥
पदुम पदारथ लिखी सो जोरी । चाँद सुरुज जस होइ ऍंजोरी॥
जस मालति कहँ भौंर बियोगी । तस ओहि लागि होइ यह जोगी॥
सिंघलदीप जाइ यह पावै । सिध्द होइ चितउर लेइ आवै॥
मोग भोज जस माना, विक्रम साका कीन्ह।
परखि सो रतन पारखी, सबै लखन लिखि दीन्ह॥1॥