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कविता

मन

राजा पुनियानी

अनुवाद - कालिका प्रसाद सिंह


1.

गाँठ पड़ने का डर है
फिर भी वह किसी को बताती नहीं
एकदम से बता नहीं पाती
मन की बात

जीवन की एक सच्चाई है
अच्छी तरह से पता है उसे -
कि बात कहने पर भी टीसती है मन में
नहीं कहने पर भी

वह सोचती है
छोड़ो - पड़नी है तो पड़े गाँठ
गाँठों में गाँठ बन कर रह जाए जीवन

उस के बंद मन के बक्से में
क्या हो सकता है
पता है किसी को?


2.

एक रात
तालाब में उतरा बादल

वह रात
निर्वाण की एक सुंदर रात थी

तालाब में उतरे बादल में
छिपा था
सफेद गुलाब सा एक चाँद
तालाब के एक टुकड़े में चाँद का चेहरा है
जिसे देख किनारे के पेड़ पर बैठी कोयल
कविता की तरह कुछ बोलती रहती

पता है मुझे - नहीं दे पाऊँगा
पर मन ही मन
तालाब का एक टुकड़ा चाँद तो
मैं तुम्हें कब का सौगात दे चुका हूँ

 


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