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वैचारिकी

मेरे सपनों का भारत

मोहनदास करमचंद गांधी

अनुक्रम 53 विद्यार्थियों के लिए अनुशासन के नियम पीछे     आगे

1. विद्यार्थियों को दलबंदी राजनीति में कभी शामिल नहीं होना चाहिए। विद्यार्थी विद्या के खोजी और ज्ञान की शोध करने वाले है, राजनीति के खिलाड़ी नहीं।

2. उन्‍हें राजनीतिक हड़तालें न करनी चाहिए। विद्यार्थी वीरों की पूजा चाहे करें, उन्‍हें करनी चाहिए; लेकिन जब उनके वीर जेलों में जाए, या मर जाएँ, या यों कहिए कि उन्‍हें फाँसी पर लटकाया जाए, तब उनके प्रति अपनी भक्ति प्रकट करने के लिए उनको उन वीरों के उत्‍त्‍म गुणों का अनुकरण करना चाहिए, हड़ताल नहीं। ऐसे मौकों पर विद्यार्थियों का शोक असह्म हो जाए और हर एक विद्यार्थी की वेसी भावना बन जाए, तो अपनी संस्‍था के अधिकारी की सम्‍मति से स्‍कूल और कॉलेज बंद राखे जाएँ। संस्‍था के अधिकारी विद्यार्थियों की बान न सुनें, तो उन्‍हें छूट है कि वे उचित रीति से, सभ्‍यतापूर्वक, अपनी-अपनी संस्‍थाओं से बाहर निकल आएँ और तब वापस न जाएँ जब त‍क संस्‍था के व्‍यवस्‍था पक पछताकर उन्‍हें वापस न बुलाएँ। किसी भी हालत में और किसी भी विचार से उन्‍हें अपने से भिन्‍न मत रखने वालो विद्यार्थीयों या स्‍कूल-कॉलेज के अधिकारियों के साथ जबरदस्‍ती न करनी चाहिए। उन्‍हें यह विश्‍वास हाना चाहिए कि अगर वे अपनी मर्यादा के अनुरूप व्‍यवहार करेंगे और मिलकर रहेंगे तो जीत उन्‍हीं की होगी।

3. सब विद्यार्थियों को सेवा के खातिरशास्‍त्रीय तरीके से कातना चाहिए। कताई के अपने साधनों और दूसरे औजारों को उन्‍हें हमेशा साद्य-सुथरा, सुव्‍यवस्थित और अच्‍छी हालत में रखना चाहिए। संभव हो तो वे अपने हथियारों, औजारों या साधनों को खुद ही बनाना सीख लें। अलबत्‍ता, उनका काता हुआ सूत सबसे बढ़िया होगा। कताई-संबंधी सारे साहित्‍य का और उसमें छिपे आर्थिक, सामाजिक, नैतिक और राजनीतिक सब रहस्‍यों का उन्‍हें अध्‍ययन करना चाहिए।

4. अपने पहनने-ओढ़ने के लिए वे हमेशा खादी का ही उपयोग करे, और गाँवों में बनी चीजों के बदलें परदेश की या यंत्रों की बनी वैसी चीजों को कभी न बरतें।

5. वंदेमातरम् गाने या राष्‍ट्रीय झंडा फहराने के मामलें में वे दूसरों पर जबरदस्‍ती न करें। राष्‍ट्रीय झंडे के बिल्‍ले वे खुद अपने बदन पर चाहे लगाएँ, लेकिन दूसरों को उसके लिए मजबूर न करें।

6. तिरंगे झंडे के संदेश को अपने जीवन में उतारकर दिल में सांप्रदायिकता या अस्‍पृश्‍यता को घुसने न दें। दूसरे धर्मों वाले विद्यार्थियों और हरिजनों को अपने भाई समझकर उनके साथ सच्‍ची दोस्‍ती कायम करें।

7. अपने दु:खी-दर्दी पड़ोसियों की सहायता के लिए वे तुरंत दौड़ जाएँ; आस-पास के गाँवों में सफाई का और भंगी का काम करें और बड़ी उमरवालें स्‍त्री-पुरुषों का बच्‍चों को पढ़ावें।

8. आज हिंदुस्‍तान का जो दोहरा स्‍वरूप तय हुआ है, उसके अनुसार उसकी दोनों शैलियों और दोनों लिपियों के साथ वे राष्‍ट्रभाषा हिंदुस्‍तानी सीख लें, ताकि जब हिंदी या उर्दू बोली जया अथवा नागरी या उर्दू लिपि लिखी जाए, तब उन्‍हें वह नई न मालूम हो।

9. विद्यार्थी जो भी कुद नया सीखें, उस सबकों अपनी मातृभाषा में लिख लें; और जब वे हर हफ्ते आस-पास के गाँवों में दौरा करने निकलें,तो उसे अपने साथ लें जाएँ और लोगों त‍क पहुँचाएँ।

10. वे लुक-छिपकर कुछ न करे; जो करें खुल्‍लम-खुल्‍ला करें। अपने हर काम में उनका व्‍यवहार बिलकुल शुद्ध हो। अपने जीवन को संयमी और लिर्मल बनाएँ। किसी चीज से न डरें और निर्भर रहक अपने कमजोर साथियों की रक्षा करने में मुस्‍तैद रहें; और दंगों के अवसर पर अपनी जान की परवाह न करके अहिंसक रीति से उन्‍हें मिटाने को तैयार रहें। और जब स्‍वराज्‍य की आखिर लड़ाई छिड़ जाए, तब अपनी शिक्षण-संस्थाएँ छोड़कर लड़ाई में कूद पड़ें और जरूरत पड़ने पर देश की आजादी के लिए अपनी जान कुरबान कर दें।

11. अपने साथ पढ़ने वालें विद्यार्थिनी बहनों के प्रति वे अपना व्‍यवहार बिलकुल शुद्ध और सभ्‍यतापूर्ण रखें।

ऊपर विद्यार्थियों के लिए कार्यक्रम सुझाया है, उस पर अमल करने के लिए उन्‍हें समय निकालना होगा। मैं जानता हूँ कि वे अपना बहुत-सा-समय यों ही बरबाद कर देते हैं। अपने समय में सख्‍त काट-कसर करके वे मेरे द्वारा सुझाए गए काम के लिए कई घंटों का समय निकाल सकते है। लेकिन किसी भी विद्यार्थी पर मैं बेजा बोझ लादना नहीं चाहता। इसलिए देश से प्रेम रखने वालें विद्यार्थियों को मेरी यह सलाह है कि वे अपने अभ्‍यास के समय में से एक साल का समय इस काम के लिए अलग लिकाल लें, मैं यह नहीं कहता कि एक ही बार में वे सारा साल दे दें। मेरी सलाह यह है कि वे अपने समूचे अभ्‍यास-काल में इस साल को बाँटलें और थोड़ा-थोड़ा करके पूरा करें। उन्‍हें यह जानकर आश्‍चर्य होगा कि इस तरह बिताया हुआ साल व्‍यर्थ नहीं गया। इस समय में की गई मेहनत के जरिए वे देश की आजादी की लड़ाई में अपना ठोस हिस्‍सा अदा करेंगे, और साथ ही अपनी मानसिक, नैतिक और शक्तियाँ भी बहुत-कुछ बढ़ा लेंगे।

पश्चिम की भद्दी नकल और शुद्ध तथा परिष्‍कृत अँग्रेजी बोलने व सिखने की योग्‍यता से स्‍वतंत्रता देवी के मंदिर की रचना में एक भी ईट नहीं जुड़ेगी। विद्यार्थी-जगत को आज जो शिक्षा मिल रही है, वह भूखे-नंगे भारत के लिए बेहद महँगी है। उसे बहुत ही थोड़े लोग प्राप्‍त करने की आशा रख सकते है। इसलिए विद्यार्थियों से यह आशा रखी जाती है कि वे राष्‍ट्र के लिए अपना जीवन तक न्‍यौछावर करके अपने को उस शिक्षा के याग्‍य बनाएँगे। विद्यार्थियों को समाज की रक्षा करने वालें सुधार-कार्य में अगुआ बनना ही चाहिए। वे राष्‍ट्र में जो कुछ अच्‍छा है उसकी रक्षा करें और समाज में बेशुमार बुराइयाँ घुस गई है उनसे निर्भयतापूर्वक समाज को मुक्‍त करें।

विद्यार्थियों को देश के करोड़ो मूक लोगों पर असर डालना होगा। उन्‍हे किसी प्रांत, नगर, वर्ग या जाति की दृष्टि से नहीं, बल्कि एक महाद्वीप और करोड़ों मनुष्‍यों की दृष्टि से सोचना सीखना चाहिए। इन करोड़ों लोगों से अछूत शराबी,गुंडे और वेश्‍यायें भी शामिल हैं, हमारे बीच जिनके अस्तित्‍व के लिए हम सभी जिम्‍मेदार हैं। प्रचीन काल में विद्यार्थी ब्रह्मचारी अर्थात ईश्‍वर के साथ और उससे डरकर चलने वाले कहलाते थे। राजा और बड़े-बूढ़े लोग उनकी इज्‍जत करते थे। राष्‍ट्र खुशी-खुशी उनका खर्च बरबाद करता था और बदले में वे राष्‍ट्र को सौ गुनी बलवान आत्‍माएँ, सौ गुने बलवान मस्तिष्‍क और सौ गुनी बल्ष्ठि भुजाएँ देते थे। आधुनिक संसार में गिरे हुए राष्‍ट्रों के विद्यार्थी उन राष्‍ट्रों के आशादीप समझे जाते हैं और जीवन के हर क्षेत्र में वे सुधारों के त्‍यागी नेता बन गए हैं। भारत में भी ऐसे विद्यार्थियों के उदाहरण मौजूद हैं। परंतु वे इने-गिने हैं। मेरा कहना इतना ही ही है कि विद्यार्थी-सम्‍मेलनों को इस प्रकार के संगठित कार्यों की हिमायत करनी चाहिए, जो ब्रह्मचारियों की प्रतिष्‍ठा के योग्‍य हों।

विद्यार्थियों को अपनी सारी छुट्टियाँ ग्रामसेवा में लगानी चाहिए। इसके लिए उन्‍हें मामूली रास्‍तें पर घूमने जाने के बजाय उन गाँवों में जाना चाहिए, जो उनकी संस्‍थाओं के पास हों। वहाँ जाकर उन्‍हें गाँव के लोगों की हालत का अध्‍ययन करना चाहिए और उनसे दोस्‍ती करनी चाहिए। इन आदत से वे देहात वालों के संपर्क में आएँगे। और जब विद्यार्थी सचमुच उनमें जाकर रहेंगे तब पहलें के कभी-कभी के संपर्क के कारण गाँव वाले उन्‍हें अपना हितैषी समझकर उनका स्‍वागत करेंगे, न कि अजनबी मानकर उन पर संदेह करेंगे। लंबी छुटिटयों में विद्यार्थी देहात में ठहरें, प्रौढ़ शिक्षा के वर्ग चलाएँ, ग्रामवासियों को सफाई के नियम सिखाएँ और मामूली बीमारियों के बीमारों की दवा-दारू और देखभाल करें। वे उनमें चरखा भी जारी करें और उन्‍हें अपने हर फालतू समय का उपयोग करना सिखाएँ। यह काम कर सकने के लिए विद्यार्थियों और शिक्षकों को छुटिटयों में उपयोग करने के बारे में अपने विचार बदलने होंगे। अक्‍सर विचारहीन शिक्षक छुटिटयों में घर करने के लिए विद्यार्थियों को पढा़ई का काम दे देते हैं। मेरा राय में यह आदत हर तरह से बुरी है। छुटिटयों का समय ही तो ऐसा होता है, जब विद्यार्थियों का मन पढ़ाई के राजमर्रा के कामकाज से मक्‍त रहना चाहिए। मैंने जिस ग्रामसेवा का जिक्र किया है, वह मनोरंजन का और बोझ न मालूम होने वाली शिक्षा का उत्‍तम रूप है। स्‍पष्‍ट ही यह सेवा पढा़ई पूरी करने के बाद केवल ग्रामसेवा के काम में लग जाने की सबसे अच्‍छी तैयारी है।

अपनी योग्‍यताओं को रुपया-आना-पाई में भुनाने के बजाय देश की सेवा में अर्पित करो। यदि तुम डॉक्‍टर हो तो देश में इतनी बीमारी है कि उसे दूर करने में तुम्‍हारी सारी डॉक्‍टरी विद्या काम आ सकती है। यदि तुम वकील हो तो देश में लड़ाई-झगड़ों की कमी नहीं है। उन्‍हें बढ़ाने के बजाय तुम लोगों में आपसी समझौता कराओं और इस तरह विनाशक मुकदमेंबाजी को दूर करके लोगों की सेवा करो। यदि तुम इंजीनियर हो तो अपने देशवासियों की आवश्‍यकताओं के अनुरूप आदर्श घरों का निर्माण करो। ये घर उनके साधनों की सीमा के अंदर होने चाहिए और फिर भी शुद्ध हवा और प्रकाश से भरपूर तथा स्‍वास्‍थ्‍यप्रद होने चाहिए। तुमने जो भी सीखा है उसमें ऐसा कुछ नहीं है, जिसका देश की सेवा काम में सदुपयोग न हो सके।

विद्यार्थी और राजनीति

विद्यार्थियों को अपनी राय रखने और उसे प्रगट करने की पूरी आजादी होनी चाहिए। उन्‍हें जो भी राजनीतिक दल अच्‍छा लगता हो, उसके साथ वे खुले तोर पर सहानुभूति रख सकते हैं। लेकिन मेरी राय में जब तक वे अध्‍ययन कर रहे है, तब तक उन्‍हें कार्य की स्‍वतंत्रता नहीं दी जा सकती। कोई विद्यार्थी अपना अध्‍ययन भी करता रहे और साथ ही सक्रिय राजनीतिक कार्यकर्ता भी हो यह शक्‍य नहीं है।

विद्यार्थियों का दलगत राजनीति में पड़ने से काम नहीं चल सकता। जैसे वे सब प्रकार की पुस्‍तकें पढ़ते हैं, वैसे सब दलों की बात सुन सकते हैं। परंतु उनका काम यह है कि सबकी सच्‍चाई को हजम करें और बाकी को फेंक दें। यही एकमात्र उचित रवैया है जिसे वे अपना सकते हैं।

सत्‍ता की राजनीति विद्यार्थी-संसार के लिए अपरिचित होनी चाहिए। वे ज्‍यों ही इस तरह से काम में पड़ेंगे, त्‍यों ही विद्यार्थी के पद से च्‍युत हो जाएँगे और इसलिए देश के संकट-काल में उसकी सेवा करने में असफल होंगे।


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