जिस प्रकार बच्चों को माता-पिता की सूरत-शकल विरासत में मिलती है, उसी प्रकार उनके गुण-दोष भी उन्हें विरासत में मिलते है। अवश्य ही आस-पास के वातावरण के कारण इसमें अनेक प्रकार की घट-बढ़ होती है, पर मूल पूँजी तो वहीं होती है जो बाप-दादा आदि से मिलती है। मैंने देखा कि कुछ बालक अपने को ऐसे दोषों की विरासत से बचा लेते हैं। यह आत्मा का मूल स्वाभाव है, उसकी बलिहारी है।
माँ-बाप अपने बालकों को जो सच्ची संपत्ति समान रूप से दे सकते हैं, वह है उनका अपना चरित्र और शिक्षा की सुविधाएँ। ... माता-पिता को अपने लड़कों और लड़कियों को स्वावलंबी बनाने की, शरीर-श्रम के द्वारा निर्दोष जीविका कमाने लायक बनाने की कोशिश करनी चाहिए।
मैं पूरी तरह यह मानता हूँ कि बालक जन्म से बुरा नहीं होता। यदि माता-पिता बालक के जन्म के पहले और जन्म के पश्चात् जिस समय वह बड़ा हो रहा हो सदाचार का पालन करें, तो यह जानी-मानी बात है कि बालक स्वाभावत: सत्य और प्रेम के नियमों का ही पालन करेगा। ... और मेरा विश्वास कीजिए कि सैकड़ों-या कहूँ कि हजारों-बालकों के अनुभव पर से मैं यह जानता हूँ कि बालकों में हमारी और आपकी अपेक्षा धर्माचार का ज्यादा सूक्ष्म ज्ञान होता है। यदि हम अना अहंकार छोड़कर कुछ नम्र बन जाएँ, तो जीवन बड़े-से-बड़ पाठ हम बुजुर्गों और विद्वानों से नहीं बल्कि जिन्हें अज्ञानी माना जाता है उन बालकों से सीख सकते हैं। ज्ञान बालकों के मुँह से प्रगट होता है, भगवान ईसा के इस वचन में जो सत्य है उससे ज्यादा उदात्ता या ऊँचा दूसरा सत्य उन्होंने शायद ही कहा हो। मैं इस वचन को स्वीकार करता हूँ। मैंने खुद ही देखा है कि यदि हम बच्चों के पास नम्र होकर जाएँ, तो हम उनके ज्ञान पा सकते हैं। मैंने तो यह एक पाठ सीखा हे कि मनुष्य के लिए जो असंभव है, भगवान के लिए वह बच्चे का खेल है; और यदि हमारा उस विधाता में, जो अपनी सृष्टि के क्षुद्रतम जीव के भी भाग्य पर दृष्टि रखता है, विश्वास हो, तो मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि सब बातें संभव हैं। और इसी आशा के आधार पर मैं अपना जीवन यापन कर रहा हूँ और उसकी इच्छा का पालन करने का प्रयत्न कर रहा हूँ। यदि हमें इस दुनिया में सच्ची शांति प्राप्त करना है और यदि हमें युद्ध के खिलाफ सचमुच युद्ध चलाना है, तो हमें अपने कार्य का आरंभ बालकों से करना होगा। और यदि बालक अपनी स्वाभाविक पवित्रता कायम रखते हुए बड़े होते हैं, तो हमें अपने उद्देश्य के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ेगा, निरर्थक और निष्फल सिद्ध होने वाले प्रस्ताव पास नहीं करने पड़ेंगे। तब हम प्रेम की दिशा में, शांति से ज्यादा शांति की दिशा में अनायास बढ़ते चले जाएँगे और अंत में हम देखेंगे कि इस छोर से उस छोर तक सारी दुनिया उस शांति और प्रेम से प्लावित हो गई है, जिसके लिए जाने-अनजाने वह तरस रही है।