इंडियन नेशनल कांग्रेस देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय राजनीतिक संस्था है। उसने कई अहिंसक लड़ाइयों के बाद आजादी हासिल की है। उसे मरने नहीं दिया जा सकता। उसका खात्मा सिर्फ तभी हो सकता है जब राष्ट्र का खात्मा हो। एक जीविक संस्था या तो प्राणी की तरह लगातार बढ़ती रहती है या मर जाती है। कांग्रेस ने राजनीतिक आजादी तो हासिल कर ली है, मगर उसे अभी आर्थिक आजादी, सामाजिक आजादी और नैतिक आजादी हासिल करनी है। ये आजादियाँ चूँकि रचनात्मक हैं और भड़कीली नहीं हैं, इसलिए इन्हें हासिल करना राजनीतिक आजादी से ज्यादा मुश्किल है। जीवन के सारे पहलुओं को अपने में समा लेने वाला रचनात्मक काम करोड़ों जनता के सारे अंगों की शक्ति को जगाता है।
कांग्रेस को उसी आजादी का प्रारंभिक और जरूरी हिस्सा मिल गया है। लेकिन उसकी सबसे कठिन मंजिल आना अभी बाकी है। प्रजातंत्रीय व्यवस्था कायम करने के अपने मुश्किल मकसद तक पहुँचने में उसने अनिवार्य रूप से दलबंदी करने वाले गंदे पानी के गड़हों-जैसे मंडल खड़े किए हैं, जिनमें घूंसखोरी और बेईमानी फैली और ऐसी संस्थाएँ पैदा हुई हैं जो नाम की ही लोकप्रिय और प्रजातंत्रिय हैं। इन सब बुराइयों के जंगल से बाहर कैसे निकला जाए?
कांग्रेस को सबसे पहले अपने मेंबरों के उस खास रजिस्टर को अलग हटा देना चाहिए, जिसमें मेंबरों की तादाद तभी कभी भी एक करोड़ से आगे नहीं बढ़ी और तब भी जिन्हें आसानी से शनाख्त नहीं किया जा सकता था। उसके पास ऐसे करोड़ों का एक अज्ञात रजिस्टर इतना बड़ा होना चाहिए कि देश मतदाताओं की सूची में जितने पुरुषों और स्त्रियों के नाम हैं वे सब उसमें आ जाएँ। कांग्रेस का काम यह देखना होना चाहिए कि कोई बनावटी नाम उसमें शामिल न हो जाए और कोई जाएज नाम छूट जाए। उसके अपने रजिस्टर में उन सेवकों के नाम रहेंगे, जो समय-समय पर खुद को दिया हुआ काम करते रहेंगे।
देश के दुर्भाग्य से ऐसे कार्यकर्ता फिलहाल खास तौर पर शहरवालों में से ही लिए जावेंगे, जिनमें से ज्यादातर को देहातों के लिए और देहातों में काम करने की जरूरत होगी। मगर इस श्रेणी में ज्यादा और ज्यादा तादाद में देहाती लोग ही भरती किए जाने चाहिए।
इन सेवकों से यह अपेक्षा रखी जाएगी कि वे अपने-अपने हलकों में कानून के मुताबिक रजिस्टर में दर्ज किए गए मतदाताओं के बीच काम करके उन पर प्रभाव डालेंगे और उनकी सेवा करेंगे। कई व्यक्ति और पार्टियाँ इन मतदाताओं को अपने पक्ष में करना चाहेंगी। जो सबसे अच्छे होंगे उन्हीं की जीत होगी। इसके सिवा और कोई दूसरा रास्ता नहीं है, जिससे कांग्रेस देश में तेजी से गिरती हुई अपनी पहले की अनुपम स्थिति को फिर से हासिल कर सके। अभी तक कांग्रेस बेजाने देश की सेविका थी। वह खुदाई खिदमतगार थी-भगवान की सेविका है-न तो इससे ज्यादा है, न कम। अगर वह सत्ता हड़पने के व्यर्थ के झगड़ों में पड़ती है, तो एक दिन वह देखेगी कि वह कहीं नहीं है। भगवान को धन्यवाद है कि अब वह जनसेवा के क्षेत्र की एकमात्र स्वामिनी नहीं रही।
मैंने सिर्फ दूर का दृश्य आपके सामने रखा है। अगर मुझे वक्त मिला और मेरा स्वास्थ्य ठीक रहा, तो मैं इन कालमों में यह चर्चा करने की उम्मीद करता हूँ कि अपने मालिकों-सारे बालिग पुरुषों और स्त्रियों की-नजरों में अपने को ऊँचा उठाने के लिए देशसेवक क्या कर सकते हैं।
गांधीजी का आखिरी वसीयतनामा
(कांग्रेस के नए विधान का नीचे दिया जा रहा मसविदा गांधीजी ने 29 जनवरी, 1948 को अपनी मृत्यु के एक ही दिन पहले बनाया था। यह उनका अंतिम लेख था। इसलिए इसे उनका आखिरी वसीयतनामा कहा जा सकता हैं)
देश का बँटवारा होते हुए भी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा मुहैया किए गए साधनों के जरिए हिंदुस्तान को आजादी मिल जाने के कारण मौजूदा स्वरूप वाली कांग्रेस का काम अब खतम हुआ-यानी प्रचार के वाहन और धारासभा की प्रवृत्ति चलाने तंत्र के नाते उसकी उपयोगिता अब समाप्त हो गई है। शहरों और कस्बों से भिन्न उसके सात लाख गाँवों की दृष्टि से हिंदुस्तान की सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आजादी हासिल करना अभी बाकी है। लोकशाही के मकसद की तरफ हिंदुस्तान की प्रगति के दरमियान फौजी सत्त पर मुल्की सत्ता को प्रधानता देने की लड़ाई अनिवार्य है। कांग्रेस की हमें राजनीतिक पार्टियों और सांप्रदायिक संस्थाओं के साथ की गंदी होड़ से बचाना चाहिए। इन और ऐसे ही दूसरे कारणों से अखिल भारत कांग्रेस कमेटी नीचे दिए हुए नियमों के मुताबिक अपनी मौजूदा संस्था को तोड़ने और लोक-सेवा-संघ के रूप में प्रकट होने का निश्चय करे। जरूरत के मुताबिक इन नियमों में फेरफार करने का इस संघ को अधिकार रहेगा।
गाँव वाले या गाँव वालों के जैसी मनोवृत्ति वाले पाँच वयस्क पुरुषों या स्त्रियों की बनी हुई हर एक पंचायत एक इकाई बनेगी।
पास-पास की ऐसी हर दो पंचायतों की, उन्हीं में से चुने हुए एक नेता की रहनुमाई में, एक काम करने वाली पार्टी बनेगी।
जब ऐसी 100 पंचायतें बन जाएँ, तब पहले दरजे के पचास नेता अपने में से दूसरे दरजे का एक नेता चुनें और इस तरह पहले दरजे का नेता दूसरे दरजे के नेता के मातहत काम करे। दो सौ पंचायतों के ऐसे जोड़े कायम करना तब तक जारी रखा जाएँ, जब कि वे पूरे हिंदुस्तान को न ढक लें। और बाद में कायम की गई पंचायतों को हर एक समूह पहले की रिह दूसरे दरजे का नेता चुनता जाए। दूसरे दरजें के नेता सारे हिंदुस्तान के लिए सम्मिलित रीजि से काम करें और अपने-अपने प्रदेशों में अलग-अलग काम करें, और वह मुखिया चुनने वाले चाहें तब तक सब समुहों को व्यवस्थित करके उनकी रहनुमाई करें।
(प्रांतों या जिलों की अंतिम रचना अभी तय न होने से सेवकों के इन समूह को प्रांतीय या जिला समितियों में बाँटने की कोशिश नहीं की गई है। और, किसी भी वक्त बनाए हुए समूहों को सारे हिंदुस्तान में काम करने का अधिकार रहेगा। यह याद रखा जाए कि सेवकों के इस समुदाय को अधिकार या सत्ता अपने उन स्वामियों से यानी सारे हिंदुस्तान की प्रजा से मिलती है, जिसकी उन्होंने अपनी इच्छा से और होशियारी से सेवा की है।)
1. हर एक सेवक अपने हाथ-काते सूत की या चरखा-संघ द्वारा प्रमाणित खादी हमेशा पहनने वाला और नशीली चीजों से दूर रहने वाला होना चाहिए। अगर वह हिंदू है तो उसे अपने में से और अपने परिवार में से हर किस्म की छूआ छूत दूर करनी चाहिए और जातियों के बीच एकता के, सब धर्मों के प्रति समभाव के और जाति, धर्म या स्त्री-पुरुष के किसी भेदभाव के बिना सबके लिए समान अवसर और समान दरजे के आदर्श में विश्वास रखले वाला होना चाहिए।
2. अपने कार्यक्षेत्र में उसे एक गाँव वालें के निजी संसर्ग में रहना चाहिए।
3. गाँव वालों में से वह कार्यकर्ता चुनेगा और उन्हें तालीम देगा। इन सबका वह रजिस्टर रखेगा।
4. वह अपने रोजाना के काम का रेकार्ड रखेगा।
5. वह गाँवों की इस तरह संगठित करेगा कि वे अपनी खेती और गृह-उद्योगों द्वारा स्वयंपूर्ण और स्वावलंबी बनें।
6. गाँव वालों को वह सफाई और तंदुरुस्ती की तालीम देगा और उनकी बीमारी व रोगो को रोकने के लिए सारे उपाय काम में लाएगा।
7. हिंदुस्तानी तालीमी संघ की नीति के मुताबिक नई तालीम के आधार पर वह गाँव वालों पैदा होने से करने तक की सारी शिक्षा का प्रबंध करेगा।
8. जिनके नाम मतदाताओं की सरकारी यादी में ने आ पाए हों, उनके नाम वह उसमें दर्ज करयेगा।
9. जिन्होंने मत देने के अधिकार के लिए जरूरी योग्यता हासिल न की हो, उन्हें वह योग्यता हासिल करने के लिए प्रोत्साहन देगा।
10. ऊपर बताए हुए और समय-समय पर बढ़ाए हुए उद्देश्यों को पूरा करने के लिए, योग्य कर्त्तव्य-पालन करने की दृष्टि से, संघ के द्वारा तैयार किए गए नियमों के अनुसार वह स्वयं तालीम लेगा और योग्य बनेगा।
संघ नीचे की स्वाधीन संस्थाओं को मान्यता देना :
1. अखिल भारत चरखा-संघ
2. अखिल भारत ग्रामोद्योग संघ
3. हिंदुस्तानी तालीम संघ
4. हरिजन-सेवक-संघ
5. गोसेवा-संघ
संघ अपना मकसद पूरा करने के लिए गाँव वालों से और दूसरों से चंदा लगा गरीब। लोगों का पैसा इकटठा करने पर खास जोर दिया जाएगा।