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वैचारिकी

मेरे सपनों का भारत

मोहनदास करमचंद गांधी

अनुक्रम 73 भारत और विश्वशांति पीछे     आगे

दुनिया के सुविचारशील लोग आज ऐसे पूर्ण स्‍वतंत्र को नहीं चाहते जो एक-दूसरे से लड़ते हों, बल्कि एक-दूसरे के प्रति मित्रभाव रखने वाले अन्‍योन्‍याश्रित राज्‍यों के संघ को चाहते हैं। भले ही इस उद्देश्‍य की सिद्धि का दिन बहुत दूर हो। मैं अपने देश के लिए कोई भारी दावा नहीं करना चा‍हता। लेकिन यदि हम पूर्ण स्‍वतंत्रता के बजाय अन्‍योन्‍याश्रित राज्‍यों के विश्‍वसंघ की तैयारी जाहिर करें, तो इसमें हम न तो कोई बहुत भारी बात ही कहते हैं और न वह असंभव ही है।

मेरी आकांक्षा का लक्ष्‍य स्‍वतंत्रता से ज्‍यादा ऊँचा है। भारत की मुक्ति के द्वारा मैं पश्चिम के भीषण शोषण से दुनिया के कई निर्बल देशों का उद्धार करना चाहता हूँ। भारत के अपनी सच्‍ची स्थिति को प्राप्‍त करने का अनिर्वाय परिणाम यह होगा कि हर एक देश वैसा ही कर सकेगा और करेगा।

मेरा दृढ़ विश्‍वास है कि भारत अपनी स्‍वतंत्रता अहिंसक उपायों से प्राप्‍त करे, तो फिर वह बड़ी स्‍थलसेना, उतनी ही बड़ी जल सेना और उससे भी बड़ी वायु सेना रखने की इच्‍छा नहीं करेगा। यदि आजादी की अपनी लड़ाई में अहिंसक विजय प्राप्‍त करने के लिए उसकी आत्‍म-चेतना को जितनी ऊँचाई तक उठना चाहिए उतनी ऊँचाई तक‍ वह उठ सकी, तो दुनिया के माने हुए मूल्‍यों में परिवर्तन हो जाएगा और लड़ाइयों के साज-सामान का अधिकांश निरर्थक सिद्ध हो जाएगा। ऐसा भारत भले महज एक सपना हो, बच्‍चों की जैसी कल्‍पना हो। लेकिन मेरी राय में अहिंसा के द्वारा भारत के स्‍वतंत्र होने का फलितार्थ तो बेशक यही होना चाहिए। ऐसी स्‍वतंत्रता, वह जब भी आयगी जब... ब्रिटेन के साथ सज्‍जनोचित समझौते के जरिए आएगी। लेकिन तब जिस ब्रिटेन से हमारा समझौता होगा वह दुनिया में सर्वश्रेष्‍ठ स्‍थान लेने के लिए तरह-तरह की कोशिश करने वाला आज का साम्राज्‍यवादी और घमण्‍डी ब्रिटेन नहीं होगा, बल्कि मानव-जाजि की सुख-शांति के लिए नम्रतापूर्वक प्रयत्‍न करने वाला ब्रिटेन होगा।

तब भारत को ब्रिटेन के लूट-मार के युद्धों में ब्रिटेन के साथ आज की तरह लाचार होकर नहीं घिसटना होगा। तब उसकी आवाज दुनिया के सारे हिंसक बलों को नियंत्रण में रखने की कोशिश करने वाले एक शक्तिशाली देश की आवाज होगी।

मैं अत्‍यंत नम्रतापूर्वक यह सुझाने का साहस करता हूँ कि यदि भारत ने अपना लक्ष्‍य सत्‍य और अहिंसा की राहा से प्राप्‍त करने में सफलता पायी, तो उसकी यह सफलता जिस विश्‍वशांति के लिए दुनिया के तमाम राष्‍ट्र तड़प रहे हैं उसे नजदीक लाने में एक मूल्‍यवान कदम सिद्ध होगी; और तब यह भी कहा जा सकेगा कि ये राष्‍ट्र उसे स्‍वेच्‍छा पूर्वक जो सहायता पहुँचा रहे हैं, उस सहायता का उसने थोड़ा-बहुत मूल्‍य अवश्‍य चुकादिया है।

जब भारत स्‍वावलंबी और स्‍वाश्रयी बन जाएगा और इस तरह नतो खुद किसी की संपत्ति का लोभ करेगा और न अपनी संपत्ति का शोषण होने देगा, तब वह पश्चिम या पूर्व के किसी भी देश के लिए-उसकी शक्‍त कितनी भी प्रबल क्‍यों न हो-लालच का विषय नहीं रह जाएगा और तब वह खर्चीलें शस्‍त्रास्‍त्रों का बोझ उठाए बिना ही अपने को सुरक्षित अनुभव करेगा। उसकी यह भीतरी स्‍वाश्रयी अर्थ-व्‍यवस्‍था बाहरी आक्रमण के खिलाफ सुदृढ़तम ढाल होगी।

यदि मैं अपने देश के लिए आजादी की माँग करता हूँ, तो आप विश्‍वास कीजिए कि मैं यह आजादी इसलिए नहीं चाहता कि मेरा बड़ा देश, जिसकी आबादी संपूर्ण मानव-जाति का पाँचवाँ हिस्‍सा है, दुनिया की किसी भी दूसरी जाति का, या किसी भी व्‍यक्ति का शोषण करे। आज विश्‍वास कीजिए कि मैं अपनी शक्ति भर अपने देश को ऐसा अनर्थ नहीं करने दूँगा। यदि मैं अपने देश के लिए आजादी चाहता हूँ, तो मुझे यह मानना ही चाहिए कि प्रत्‍येक दूसरी सबल या निर्बल जाति को भी उस आजादी का वैसा ही अधिकार है। यदि मैं ऐसा नहीं मानता हूँ और ऐसी इच्‍छा नहीं करता हूँ, तो उसका यह अर्थ है कि मैा उस आजादी का पात्र नहीं हूँ।

मैं अपने हृदय की गइराई में यह महसूस करता हूँ। ... कि दुनिया रक्‍तपात से बिलकुल ऊब गई है। दुनिया इस असह्रा स्थिति से बाहर निकलने का रास्‍ता खोज रही हैं। और मैं वश्विास करता हूँ तथा उस विश्‍वास में सुख और गर्व अनुभव करता हूँ कि शायद मुक्ति के प्‍यासे जगत को यह रास्‍ता दिखाने का श्रेय भारत की प्राचीन भूमि को ही मिलेगा।

हिंदुस्‍तान की राष्‍ट्रीय सरकार क्‍या नीति अख्तियार करेगी सो मैं नहीं कह सकता। संभव है कि अपनी प्रबल इच्‍छा के रहते हुए भी मैं तब त‍क जीवित न रहूँ। लेकिन अगर उस वक्‍त तक मैं जिंदा रहा, तो अपनी अहिंसक नीति को यथासंभव संपूर्णता के साथ अमल में लाने की सलाह दूँगा। विश्‍व की शांति और नई विश्‍व-व्‍यवस्‍था की स्‍थापना में यहीं हिंदुस्‍तान का सबसे बड़ा हिस्‍सा भी होगा। मुझे आशा तो यह है कि चूँकि हिंदुस्‍तान में इतनी लड़ाकू जातियाँ हैं और चूँकि स्‍वतंत्र हिंदुस्‍तान की सरकार के निर्णय में उन सबका हिस्‍सा होगा, इसलिए हमारी राष्‍ट्रीय नीति का झुकाव मौजूदा सैन्‍यवाद से भिन्‍न किसी अन्‍य प्रकार के सैन्‍यवाद की तरफ होगा। मैं यह उम्‍मीद तो जरूर रखूँ गा कि एक राजनीतिक शस्‍त्र की हैसियत से अहिंसक की व्‍यावहारिक उपयोगिता का हमारा पिछला सारा… प्रयोग बिलकुल विफल नहीं जाएगा और सच्‍चे अहिंसावादियों का एक दल हिंदुस्‍तान में पैदा हो जाएगा।


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