कविता
कैसे रहता वहाँ ? रक्षक नायक अनुवाद - शंकरलाल पुरोहित
जिस पेड़ तले खड़े हो सूर्योदय से मैं सिंहरण करता मुझे चौंका कर वह पेड़ बोला जानते हो, षड्यंत्र चल रहा मेरे खिलाफ फॉरेस्ट डाक बंगले में, मैं तो पेड़, और कर भी क्या सकता पेड़ ने झूठ नहीं कहा पता चला उस ट्रक की कोख में लिए जाने के बाद। जिस पहाड़ से मैं सुनता हूँ इतिहास साँझ ढलने पर, उसने एक दिन कहा मेरा अंकित कर दो चित्र मैं इतिहास बनने जा रहा हूँ मेरे लिए जापान में ब्लास्ट फर्निस जल रहा। पहाड़ ने कही थी मुझे अपनी देखी बात केवल उसका इतिहास बाकी था जो उसने कहा था केवल चित्र बन मेरी ड्राइंग कापी में रह गया।। जिस नदी को मैंने नदी समझा प्रेम करता, कि मुझे अपना मुहाना दिखाया, उसने चुपके-चुपके कहा मैं घर्षिता होने जा रही योजना चल रही मेरे घर्षण की कंपनी गेस्ट हाउस में। देखा उसके थन से विष झर रहा था कुछ दिन बाद। मैं कैसे रहता वहाँ वे सिर्फ समझते मेरी भाषा, कैसे रहता उनके जाने के बाद? वहाँ राज करते देख एक भी आदमी किसी एक ने भी भूल से कभी पूछा नहीं मुझे क्या हुआ है? तुम्हारे माथे पर इतना पसीना?
हिंदी समय में रक्षक नायक की रचनाएँ