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1. प्रेम
2. निष्ठा
3. इस शहर में
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प्रेम
अनजाने परों पर आसीन
मैं
स्वप्न के अंतिम सिरे पर
वहाँ मेरी खिड़की है
रात्रि की शुरूआत जहां से होती है
और
वहाँ दूर तक मेरा जीवन फैला हुआ है
वे सभी तथ्य मुझे घेरे हुए हैं
जिनके बारे में मैं सोचना चाहती हूं
तल्ख
घने और निशब्द
पारदर्शी क्रिस्टल की तरह आर पार चमकते हुए
मेरे अंदर स्थित शून्य को लगातार सितारों ने भरा है
मेरा हृदय इतना विस्तृत इतना कामना खचित
कि वह
मानो उसे विदा देने की अनुमति मांगता है
मेरा भाग्य मानो वही
अनलिखा
जिसे मैंने चाहना शुरू किया
अनचीता और अनजाना
जैसे कि इस अछोर अपरास्त विस्तृत चरागाह के
बीचोंबीच मैं सुगंधों भरी सांसों के आगे-पीछे झूलती हुई
इस भय मिश्रित आह्वान को
मेरी इस पुकार को
किसी न किसी तक पहुंचना चाहिये
जिसे साथ साथ बदा है किसी अच्छाई के बीच लुप्त हो जाना
और बस।
निष्ठा
मेरी आँखें निकाल दो
फिर भी मैं तुम्हें देख लूंगा
मेरे कानों में सीसा उड़ेल दो
पर तुम्हारी आवाज़ मुझ तक पहुँचेगी
पगहीन मैं तुम तक पहुंचकर रहूंगा
वाणीहीन मैं तुम तक अपनी पुकार पहुंचा दूंगा
तोड़ दो मरे हाथ,
पर तुम्हें मैं फिर भी घेर
लूंगा और अपने ह्दय से इस प्रकार पकड़ लूंगा
जैसे उंगलियों से
ह्दय की गति रोक दो और मस्तिष्क धड़कने लगेगा
और अगर मेरे मस्तिष्क को जलाकर खाक कर दो-
तब अपनी नसों में प्रवाहित रक्त की
बूंदों पर मैं तुम्हें वहन करूंगा।
(अनुवाद- धर्मवीर भारती )
इस शहर मे
इस शहर के अंत में
वह अकेला पर
इतना अकेला
मानो वह दुनिया में स्थित बिल्कुल अकेला घर हो
गहराती हुई रात्रि के अंदर शनै: शनै: प्रविष्ट होता हुआ राजमार्ग
जिसे
सह नन्हा शहर रोक सकने में सक्षम नहीं
यह छोटा सा शहर मात्र एक गुज़रने की जगह
दो विस्तृत जगहों के बीच
चिंतित और डरा हुआ
पुल के बदले में घरों के बगल से गुज़रता हुआ रास्ता
जो शहर छोड़ जाते हैं
एक लंबे रास्ते पर
भटकन के बीच गुम हो जाते हैं
और
शायद कई
सड़कों पर
प्राण त्याग देते हैं।
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