हमजातोव जब तक पहाड़ में था उसकी कविता अल्हड़ पहाड़िन की तरह थी इन दिनों वह एक मेट्रो सिटी में है सुना उसकी कविता सुंदर गुड़िया की तरह हो गई है खूब वाहवाही लूट रही है जिसके नाम से नाक-भौं सिकोड़ते थे लोग आज वह हर दूसरी पत्रिका में छाया है।
हिंदी समय में महेश चंद्र पुनेठा की रचनाएँ