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कविता

सेलोटैप

सरोज बल

अनुवाद - शंकरलाल पुरोहित


ये जिस सेलोटैप से
मैं जोड़ आया फटा ड्राइंग खाता
ठीक उसी टैप से
जुड़ सकेगा टूटा हुआ विश्वास

सारे रास्ते उड़ते फिर रहे
फटे कागज-सा इधर-उधर प्रेम

हाट-बजार में दरका अहंकार
यहाँ तक कि मंदिर आरती में
दरकी भक्ति घंटे से पीट कर
फिसल रही नीचे

संपर्क जोड़ने के लिए
इतना नेटवर्क रहते-रहते
गली-गली में क्यों इतने रक्त के छींटे

प्रेम के निषिद्धांचल से चाबी खुलने के बाद
मस्तिष्क में जो अजीब घमासान

अतः दुकान-दुकान पर खोजता फिरता
मैं रविवार भर,
एक सेलोटैप, मन जोड़ने के लिए
टूटे मनों को एक साथ जोड़ रखना
कोई खराब काम नहीं

कम से कम उन्हें फ्रेम में ढाँप
टाँगा जा सके इतिहास की भीत पर

पर बात यह है,
आज सब दुकानों पर ताला है।


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