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कविता

तोड़ने की शक्ति

अभिज्ञात


जाने क्यों अच्छी लगती हैं टूटने की आवाजें
जबकि बार-बार मुझे इनकार है ऐसी आवाजों को सुनने से

क्या हममें बसी है कोई पुरातन धुन
जिसकी लय देती है हमारी धमनियों को नई गति
और दिमाग को एक अजब सा सुकून

क्योंकि आखिरकार वही और वही है हमारी नियति

हालाँकि यह भी सच है कि हर समय हर घड़ी
नहीं होता शुभ
किसी वस्तु का टूटने से रह जाना

यह टूटना ही वह सत्य है जिससे हमें होते जाना होता है

परिचित

न चाहते हुए भी
टूटने की क्रिया की स्वाभाविकता से हमें होना होता है बार-बार
दो चार
दरअसल अपने अंदर टूटने की विवशता ही
हमें खुद करती है प्रेरित कुछ न कुछ तोड़ने को
यदि नहीं कर पाते हम वैसा
तो हो जाते हैं किसी टूटने की खुशी में शरीक

टूटते जाना एक उत्सव है
टूटना है एक संगीत
अर्थ का अंतिम बिंदु
अनर्थ का चरम
दरअसल हमारा होना
टूटते जाने की एक क्रिया है

इस क्रिया में हमारा दिल बहलाव है कुछ न कुछ तोड़ते रहना
हम एक सच को खेल में तब्दील करते रहते हैं

जो अपने टूटने से जितना खाता है खौफ
तोड़ता है उतनी ही चीजें
वह उस बेचैनी को अभिव्यक्ति देता है जो है
उसके भीतर
हालाँकि जब-जब वह खुश होता है अपनी किसी सफलता पर
वह नापता है अपनी ऊँचाई
तोड़ने का शक्ति परीक्षण कर
वह इस बात को अनचाहे ही स्वीकार करता है
कि तोड़ने की शक्ति ही उसकी कुल उपलब्धि है

जो विस्तार है
उसके भय का।


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