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कविता

सप्तक

अभिज्ञात


मेरे जीवन में एक बड़ा विस्फोट था
बेटी का मेरे जीवन में आना
और उससे भी बड़ा
उसके काफी अरसे बाद
माँ-बाबूजी की जीवन में वापसी

इस प्रकार खत्म होने लगा
मेरे जीवन और कविताओं का इकहरापन

बेटी व माँ-बाप के बीच
बँधी है एक ऐसी महीन डोर
जिससे उड़ रही है मेरे जीवन की पतंग
बह रही हवा एक दिशा से आकर मुझसे होती हुई
निकल जाती है दूसरी ओर

मैं एक माध्यम भर हूँ
कर रहा हूँ एक की आँच का
दूसरे तक हस्तांतरण
एक की भाषा का अनुवाद दूसरी में

जीवन के दो सिरे हैं
इन्हीं दोनों के बीच है
मेरे जीवन का सप्तक
सा से सा के बीच।


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हिंदी समय में अभिज्ञात की रचनाएँ