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कविता

नींद की शहादतें

अभिज्ञात


मेरे जागने में
मेरा सोना शामिल है
मेरे हर काम में
मिल जाएगी
मेरी थोड़ी-थोड़ी नींद

थोड़ी सी नींद
मेरी हँसी में
मेरी गर्मजोशी में
सजगता में

मेरी जीत में छिपी है मेरी नींद की शहादतें

नींद जब हो जाती है पूरी
तो बिस्तर फेंकने लगता है शरीर
उछाल देना चाहता है बल्लियों
हमेशा-हमेशा के लिए
बिस्तर लगने लगता है
एक फालतू सी शै
जैसे ख्वामख्वाह जगह घेर रखी हो उसने
घर के महत्वपूर्ण कोनों में

नींद जब हो जाती है पूरी
वह बजने लगती है हमारी धमनियों में
सितार की तरह

पूरी हुई नींद का उजाला
फैलने लगता है चारसू
हम यूँ देखते हैं पूरी दुनिया को
जैसे पहले पहल देख रहे हों
कुदरत का करिश्मा
नींद फिर लौट आती है
चमत्कार की तरह
उसकी आहट के आगे
धीमी पड़ने लगती है बाकी आवाजें
आश्चर्य की यह दुनिया
धीरे-धीरे जाने लगती है हमसे दूर
खोने लगती है हमारी याददाश्त
फीका पड़ने लगता है हर स्वाद
हम जाने लगते हैं एक और अनजानी दुनिया में
लेकिन हमें नहीं होती कत्तई तकलीफ
नींद जब आती है
तो बस आती है
सब कुछ छीन लेती है
और हम अपने को कर देते हैं उसके हवाले
बगैर किसी झिझक के
पूरे इतमीनान के साथ

काश मौत भी
होती हमारे लिए एक नींद!


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