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कविता

भगवान जी से

अभिज्ञात


प्रभु! तुम्हारी छोटी सी मूर्ति के पास
ठीक नीचे रखे हैं झाड़ू और जूते-चप्पल
उन्हें तुम इग्नोर करना वे तुम्हारे लिए नहीं हैं

तुमसे अपील है कि तुम अपने काम से काम रखो
और वह जो फूल तुम्हारी मूर्ति के पास रखे हैं
और जली हैं अगरबत्तियाँ, जला है एक घी का दीया
बस वही तुम्हारे हैं, उतना ही है तुम्हारा तामझाम, माल-असबाब
तुम वहीं तक सीमित रहो, और उतने में ही मगन

यह छोटा सा घर है मेरा, उसी में तुम्हें भी जगह दी है यही क्या कम है?
सुबह से सिर पर रहते हैं कई काम, और उसी में इधर मार्निंग वॉक भी जरूरी हो गया है
थुलथुल होती पत्नी के कारण
सो तुम्हें याद करने के लिए वक्त कम निकलता है
वह भी कभी-कभी
तो भी तुमको एडजेस्ट करके चलना होगा
एक नन्ही सी जान, घर गृहस्थी के हजारों काम
उसी में तुम्हें भी शामिल किया है, यही क्या कम है!


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