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कविता संग्रह

अलंकार-दर्पण

धरीक्षण मिश्र

अनुक्रम 11 आक्षेप अलंकार पीछे     आगे


लक्षण (दोहा) :- कथित बचन का साथ में जहाँ निषेध लखात।
तीन भेद वाला उहाँ बा आक्षेप कहात।
 
उक्‍ताक्षेप अलंकार
लक्षण (सार) :- कथित बचन के जब सुन्‍दरतर अन्‍य विकल्‍प दियाला।
प्रथम भेइ अइसने जगह पर उक्‍ताक्षेप कहाला॥
या
कहि के कवनो बात पुन: ऊ गलत बतावल जाला।
बदला में ओसे बढि़ के कुछ नीमन बात कहाला॥
उहाँ उक्‍त आक्षेप कविन का द्वारा मानल जाला।
कुछ कवि का पंचम प्रतीप के ओहि में मिले मशाला॥
 
उदाहरण (सार छंद) :-
गाढ़ दूध जे चाहे पोसे साहीवाल नसल के गाय।
अथवा पोसे मुलतानी या हरियाना जौन कहाय॥
अथवा ई सब छोड़े राखे जमुना पारी भँइसि मँगाय।
या बरबरी बकरियों दीहें बिडियो साहब सुलभ कराय॥
सोचत बानीं स्‍वर्ग भेंटाए हेतु करीं कुछ ब्रत उपवार।
आ की आपन गाँव छोडि़ के चलीं करीं अब कासी बास॥
आकी राम-चन्द्रिका में अब रामचंद्र के पढ़ीं चरित्र।
जेहि में केशव के कविता के मिलत रही आनंद विचित्र॥
या तुलसी कृत रामायण के शुरू करीं बिहने से पाठ।
एसे कटि जाई सगरे जे रही पुराना पाप पुराठ॥
अथवा बालमीकि रामायण पढ़ीं जे बाटे अपना पास।
ओसे मिली स्‍वर्ग आ होई सुरबानी के कुछ अभ्‍यास॥
पहिले से सपराई बाटे अपना जाये के सुरधाम।
त पहिले के सुरबानी सीखल आयी उहवाँ बहुते काम॥
पढ़त न बाड़ऽ तू मिहनत से घूमत बाड़ऽ हाट-बजार।
एकर फल यदि कहीं त तोहरा बाउर लागी बात हमार॥
किन्‍तु सही फल एकर पहिले आ के बतलाई अखबार।
और बाद में सब केहु जानी हीत मीत आ जिला जवार॥
लोकतंत्र में जाति बनत बा सजी योग्‍यता के आधार।
कहि ना जाता होत योग्‍यता का साथे बा जे व्‍यवहार॥
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बड़हर रोपे के मन में बा कबे होत सपराई।
तब मन परत कि जामुन बाटे तब बड़हर के खाई?
लगी कार पार न तब कइसे कहाँ भेटाई पारन।
हारि पाछ के परि जायी तब जाये के चौपारन॥
गोरखपुर यदि जा तारऽ त अमरूद कीनि लेअइहऽ।
अपना हाथे बीनि-बीनि के पाकल खूब चढ़इहऽ॥
अथवा अमरुद छोड़ऽ ओसे आमे नीक बुझाता।
ई अपना बागे में बाटे जब चाहीं मिल जाता॥
 
वीर :-
मुख्‍य प्रचारक से प्रत्‍याशी कहले आपन एक विचार।
प्रतिद्वन्‍द्वी के बइठावे में केतना लागी दाम हमार॥
एकर जा के पता लगावऽ साफ साफ सब बात तिखार।
आ चाहे ई चर्चा छोड़ऽ ऊ मँगिहे मुँह ढ़ेर पसार॥
दुबरे छतिरी के धइ बान्‍हऽ सहजे में हो गवन बियाह।
उनके एगो जाति फोरि लऽ जे हो बोलतू आ गरिबाह॥
कम्‍बल कोट नया साइकिल दऽ रुपया दऽ दुइ चारि हजार।
उतरो ऊ चुनाव अँखरा में पैदल आपन करो प्रचार॥
लेकिन ना केहु जाने पावे कि एहि में बा मदद हमार।
एतने काम सम्‍हारऽ जाके होय निकंटक राह हमार॥
 
चौपई :- मालिक नौकर पर रिसियाय। पुछले कई बस्‍तु दिखलाय॥
कैसन ई आलू सरलाह। बोझल बाटे एक कराह॥
चप्‍पल कई पुरान अनेर। फुटहा बोतल के ई ढेर॥
घर में परल हवे बेकार। देखि देखि जिउ जरत हमार॥
तें बाड़े अति लापरवाह। तनिक सफाई के ना चाह॥
सगरे आज बहारि सोहारि। दूर कहीं दे फेंकि पबारि॥
नहीं नही मन में जनि माखु। ई सब बस्‍तु जोगा के राखु॥
रिस में निज सुबुद्धि भुलवाय। तोहके दिहनीं गलत अर्हाय॥
एक जगह दे सजी सजाय। हवे चुनाव गइल निगिचाय॥
भाषण और सभा प्रोग्राम। चले लगी तब आयी काम॥
तुलसीदास जयंती पाय। दुइ गो सभा गइल बिटुराय॥
दूँनूँ में मतभेद विशेष। अत: परस्‍पर मन में द्वेष॥
हमरा तऽ कुछ कहत न जाय। गइनीं दूओ जगह न्‍यवताय॥
भक्‍त सभा में पहिले जाय। दिहनीं निज वक्‍तव्‍य सुनाय॥
गोस्‍वामी जी तुलसीदास। हिंदी युग के वेदव्‍यास॥
प्रथम दृष्टि में भक्‍त कहाँय। सुकवि बाद में मानल जाय॥
तदनन्‍तर कबियन में जाय। कहनीं दोसर बात बनाय॥
भक्‍त सभा में के उद्गार। मानीं सगरे भूल हमार॥
अबसे जे कुछ इहाँ कहाय। उहे सजी पतियाइल जाय॥
गोस्‍वामी जी तुलसीदास। हिंदी युग के वेदव्‍यास॥
पहिले सुकवि महान कहाँय। भक्‍त बाद में मानल जाँय॥
 
निषेधाक्षेप अलंकार
 
लक्षण (दोहा) :- पहिले जौना बात के कइल जाय इंकार।
किंतु समर्थन ओकरे होखे खातिर कार॥
उहाँ निषेधाक्षेप बा अलंकार आ जात।
यानी जे आक्षेप बा ऊहे दूर फेकात॥
 
चौपई :- सही बात इन्‍कारल जाय। तब कुछ ऐसन बात कहाय॥
सही बात जे से प्रकटाय। तब निषेध आक्षेप कहाय॥
 
उदाहरण (सार) :- दुनियाँ के प्रपंच सब तजि के बानी अब हम सन्‍यासी।
गाँव प्रधान बने के बानी बनल आजकल प्रत्‍यासी॥
प्रतिद्वन्‍द्वी हमार हमरा से बाटे ज्‍यादे बीस पड़त।
खेत बेंचि के खूब जोर से बानीं अत: चुनाव लड़त॥
कवित्त :- बानी मृत्‍युलोक में त मूवे के परबे करी
एसे हम मृत्‍यु से ना तनिको डेराईले।
आम एक साल औरी खा के हम मू जइतीं
ईहे हर साल भगवान से मनाईले।
विद्यार्थी या परीक्षार्थी किछऊ ना बानीं हम
पढ़ला से ना कबें परंतु अगुताईले।
पुस्‍तक के बात जौन ना बुझाला ओके हम
केहुवे से पूछे में ना तनिक लजाईले॥
लोभी हम ना हईं पर पइसा बेकार एको
खर्च होई जात त विशेष पछताईले।
हँसुआ या खुरपी या सूई जो भुलाई जा तऽ
साल डेढ़ साल शोक ओहू के मनाईले।
हम ना चटोर हईं चीनी आ खटाई बिना
रोटी खाइले ना भोजन मिले जो पसन्‍द के तऽ
खैला पर बैठिये ना जात लेटि जाइले॥
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हम ना ईश्‍वर के भक्‍त हईं सब पन्‍थो से मन भागेला।
मुनि बाल्‍मीकि आ तुलसी का दुइ पुस्‍तक में मन लागेला॥
जब नया शब्‍द मिलि जाला ओके शबद कोष से जाँचीले।
प्रात: सादर दूनूँ पुस्‍तक हम नित्‍य नेम से बाँचीले॥
गहना के बड़ा विरोधी हम गहना से बहुत घिनाइले।
बिनु अलंकार आपन कविता लखि के लाजन गडि़ जाइले॥
हम हईं ना बाम्‍हन उपरोहिता घर घर न असीस सुनाइले।
हम बड़े बड़े लोगन का दुवरा जूठन नित्‍य गिराइले॥
आ तिउहारन पर सीधा का गठरी से हम लदि जाइले॥
तब हम कहीं कि ईतन हमरा बड़ा पुनि के मिलल सुफल बा।
अब हम कहीं पुन्नि के नाहीं महापाप के मिलल कुफल बा॥
 
सार :- मच्‍छर जाति हानिकर ना हऽ खून चूसि ले जाला।
बदला में कीटाणु रोग के उहाँ तुरत दे जाला॥
 
व्‍यक्‍ताक्षेप अलंकार
लक्षण (सार) :- आज्ञा जहवाँ प्रग‍त दिआ आ छिपल रहे मनहायी।
व्‍यक्‍ताक्षेप भेद तीसरा देला उहाँ दिखायी॥
या
जब सम्‍पति में या अनुमति में छिपल निषेध रहेला।
अलंकार ओके तब कवि सब व्‍यक्‍ताक्षेप कहेला॥
 
उदाहरण (सार) :- ए दुनियाँ के कवनो सुख ना जेकरा मन में भावे।
ऊ गांजा शराब सुरती में आपन चित्त रमावे॥
तब आठो पहर रही मस्‍ती में मजगर मौज मनायी।
और जल्दिये सरगो के सुख जाकर के अजमायी॥
जा जा बाहर करे कमाई करी न केहु मनहायी।
किंतु पिये के ई आदत उहवाँ तोहार छुटि जायी॥
अरे छात्र तू छात्र यूनियन के बनि जा अध्‍यक्ष।
मिली छात्र जीवन के एहि में सगरे सुख प्रत्‍यक्ष॥
भारी नेता बनला के बा देतायोग देखायी।
दुइ गो किंतु महीना बाउर आई जून जुलाई॥
आँसू आपन पोंछे के रखिहऽ रुमाल दुई चार।
आ मुँह लुकवावे खातिर खोतिह कतहीं जगह अन्‍हार॥
सूतऽ हे किसान सूतऽ भरि कातिक तनि गोड़ पसार।
माथे घाम हाथ में धूरा लगे वाला जनि करिहऽ कार॥
एसे फागुन तक सुख पइबऽ औरी पइबऽ एगो सीख।
चैत मास में खेत बेंचि के खइह चाहे मँगिहऽ भीख॥
घर में बा सम्‍मान खतम अब बाहर थोरे बाकी बा।
ओहू से कुछ लाभ उठवला में रहि गइल चलाकी बा॥
सुखमय जीवन के दुइये गो और महीना शेष हवे।
आगे फेरु मिली बैतरनी चिंता इहे विशेष हवे॥
चौबेजी ललकरले आ के बलगर बल देखलाओ।
ओहि दिन चलल जे लाठी ऊ सब लाठी एहिबर आओ॥
अन्‍हे कई बार गरियवलऽ मन निज और बढ़ावऽ
आजु आँखि का सोझा हमरा आ कर के गरियावऽ॥
हे त‍रणि ग्रीष्‍म में अति अगरा के आपन ताप लुटावऽ।
तरु तृण ताल तलैया निर्मम हो के सजी सुखावऽ॥
दुपहरिया में लूह चला के केतने लोग मुवावऽ।
जीव जन्‍तु सबके सत्ता के आपन धाक जमावऽ॥
जड़ जे जहाँ तहाँ रहि करि के आपन विपति गँवावे।
तूँ चेत न कि चेतन छाया का संग मौज उड़ावे॥
आपन शान बढ़ावऽ घरहूँ के सुधि लेकिन राखऽ।
हम ना मने करत बानीं जनि हमरा पर तूँ माखऽ॥
आपन ताप लुटा दऽ सगरे ना केहु रोके जाई।
लेकिन मन परले रहिहऽ कि पूस माघ पुनि आई॥
जब तूँ अति निस्‍तेज होइ के मनहीं में पछतइब।
आ पखवारा तक लाजे आपन मुँह ना कबे देखइब॥
 
चौपई :- वृक्षारोपण के सप्‍ताह। खूब मनावऽ ले उत्‍साह॥
महँगा कलम आम के कीन। रोपऽ माली राखि प्रवीन॥
एक बात जनि जाय भुलाय। लेंहड़ा के लेंहड़ा निलगाय॥
जे राष्‍ट्रीय जंतु कहलात। करत जियान कहल ना जात॥
यदि ओके केहु करी शिकार। जाई लेज कहत सरकार॥
 
वीर :- नेता कहें दरोगा जी से देखनीं केतने थानेदार।
लेकिन तोहरा अस ना देखनीं निज कर्तव्‍य सुपालनहार॥
सदा सत्‍य के ढ़ोवे वाला हरिश्‍चंद्र के तूँ अवतार।
करत रह कानून मुताबिक इहवाँ सबको से व्‍यवहार॥
जनि परवाह रखऽ कि केकर बाटे आजु बनल सरकार।
लेकिन आपन बोरिया बिस्‍तर रखले रहऽ बान्हि लइयार॥
गामा के मूवे का बेरा पत्रकार जे पहुँचल रहले।
दुनियाँ खातिर गामा उनसे आपन एक सनेसा कहले॥
पहलवान का पेशा के अतिमोहक फल सब केहुवे चाखो।
लेकिन अपना कफन हेतु सब दाम जुटाके पहिले राखो॥
 


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