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कविता संग्रह

अलंकार-दर्पण

धरीक्षण मिश्र

अनुक्रम 02 अन्योरक्ति अलंकार पीछे     आगे

लक्षण :-
         अन्‍य उक्ति केहु कहत बा केहू के सिर डारि।
         अलंकार अन्‍योक्ति तब कवि सब कहत बिचारि॥

उदाहरण :-
          बेटिहा का घर से बर-बरात हो गइल बिदा दिन गइल चारि।
         लेकिन उनके कुछ हीत मीत तब तक ले ना छोड़ल दुवारि॥
         जूठा पत्तल पुरवा दुवरा पर जगह-जगह कुछ परल रहे।
         ई देखि-देखि बेटिहा मालिक के जिउ पहिले से जरल रहे॥
         तब खरहर ले बेटिहामालिक आपन दुवार झारे लगलें।
         कुक्‍कुर दु चारि बैठल देखलें उनके उहवें मारे लगलें॥|
         कहलें कि अब एह कुकुरन के देखला पर रिस बरि जात हवे।
         मन में बा होत कुफुत लमहर का कहीं न किछू कहात हवे॥
         एकनी दुवार से टकसे के एकनी का तनिको नांव ना बा॥
         रातो दिन बा ईहे दुवार कवरा खातिर लरियाये के।
         एकनी का बा बस इहे कार खाये के और पटाये के॥
         ई बतिया एक जने पाहुन अपने पर सजी घटा गइलें।
         कोहना के घरे चले लगलें रिस में किरिया कहटा खइलें॥


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